Bihar Election: बिहार में सभी दलों ने जीतने के लिए जताया जातीय समीकरण पर भरोसा, सभी ने बिछाये अपने हिसाब से चौसर
By एस पी सिन्हा | Published: October 18, 2020 05:06 PM2020-10-18T17:06:13+5:302020-10-18T17:06:13+5:30
बिहार विधानसभा चुनाव में सामाजिक गणित बैठाते हुए जातिगत खेमेबंदी की गई है, ताकि उनकी जीत के लिए यह बेहद अहम आधार बन सके.
पटना: बिहार में चुनाव हो और जाति की बात न हो, ऐसा शायद संभाव नही है. हालांकि चुनाव में विकास की बजा जरूर बजाई जाती है, लेकिन विकास के नाम पर जाति हावी हो जाती है. शायद यही कारण है कि इस विधानसभा चुनाव मेम भी हर दल ने मैदान-ए-जंग में जातिगत योद्धाओं को ही उतारने की हर संभव कोशिश की है.
सामाजिक गणित बैठाते हुए जातिगत खेमेबंदी की गई है, ताकि उनकी जीत के लिए यह बेहद अहम आधार बन सके. इस क्रम में भाजपा, जदयू समेत एनडीए के सभी घटक दलों ने मिल कर 74 सवर्णों को टिकट दिया है, जो करीब 30 फीसदी है, जबकि शेष 169 यानी करीब 70 फीसदी टिकट पिछडा, अति पिछडा व एससी-एसटी को दिया गया है. इनमें करीब 35 अति पिछडे व 27 एसी-एसटी हैं.
वहीं, महागठबंधन में राजद, कांग्रेस और वामदलों ने मिल कर 49 सवर्ण उम्मीदवार उतारे हैं, जो 20 फीसदी हैं, जबकि शेष 80 फीसदी टिकट पिछडा, अति पिछडा व एससी-एसटी को दिया गया है. एनडीए में भाजपा ने तीनों चरणों में अपने कोटे की 110 सीटों में 50 पर अगडी जाति को टिकट दिया है, जो करीब 45 प्रतिशत है, जबकि जदयू ने अपने कोटे की 115 सीटों में 19 और हम ने सात में एक सवर्ण को टिकट दिया है.
भाजपा ने पहले चरण की 29 सीटों में 18, दूसरे चरण की 46 सीटों में 22 और तीसरे चरण में 35 सीटों में 10 पर सवर्ण उम्मीदवारों को टिकट दिया है. इस तरह से भाजपा ने इस बार के टिकट बंटवारे में अपने कोर वोटरों अगडी जातियों को खुश करने के साथ ही सभी पिछडी और दलित जातियों के भी साधने की पूरजोर कोशिश की है.
वहीं, जदयू ने अपने कोटे के 115 सीटों में से 19 पर सवर्ण और 26 पर अति पिछडे को उम्मीदवार बनाया है, जबकि 11 मुस्लिमों को टिकट दिया है. एनडीए में एकमात्र जदयू ने जिसने मुस्लिमों को टिकट दिया है. इस तरह अगर पूरे एनडीए की बात करें, तो उसने अगडी जातियों पर ज्यादा भरोसा जताया है. साथ ही सबसे बड़े वोट बैंक पिछड़े और अति पिछडे के वोट बैंक में भी सेंध लगाने की पूरी कोशिश की गई है.
महागठबंधन के सबसे बड़े घटक दल राजद ने सबसे अधिक 58 यादव उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. दूसरी बड़ी संख्या अति पिछडों की है, जिन्हें 23 सीटें दी गई हैं, जिनमें नोनिया जाति के चार, धानुक चार, मल्लाह के तीन, चौरसिया के दो, चंद्रवंशी, ततमा, व लोहार जाति से एक-एक और अन्य अति पिछडी जातियों से पांच प्रत्याशी बनाये गये हैं. इसके अलावा राइन जाति से पहली बार उम्मीदवार बनाया गया है.
इसके साथ ही राजद में तीसरी बडी संख्या अल्पसंख्यकों की है, जिन्हें 18 सीटें दी गई है. राजद ने अपने कोटे की 144 सीटों में 13 पर सवर्ण को टिकट दिया है, जिनमें आठ राजपूत, चार ब्राह्मण व एक भूमिहार हैं. पिछली दफा एकमात्र ब्राह्मण राहुल तिवारी राजद से उम्मीदवार थे.
उसी तरह से महागठबंधन की दूसरी बडी पार्टी कांग्रेस ने अपने कोटे की 70 सीटों में 31 अगडी जाति को टिकट दिया है, जबकि वाम दलों को मिली 29 सीटों में चार अगड़ी जाति के प्रत्याशी बनाये हैं. कांग्रेस कोटे की 70 सीटों में 32 अगडी जाति के उम्मीदवार बनाये गये हैं. इनमें सबसे अधिक भूमिहार 11, राजपूत जाति के नौ, ब्राह्मण आठ और चार कायस्थ उम्मीदवार हैं.
यादव बिरादरी के पांच उम्मीदवार हैं. मुसलमान उम्मीदवारों की संख्या 12 और 10 सीटों पर दलित प्रत्याशी हैं. वैश्य व कुर्मी से दो और कुशवाहा से एक प्रत्याशी बनाये गये हैं. वहीं, महिला प्रत्याशियों की बात करें, तो जदयू ने सबसे ज्यादा 22 महिलाओं को चुनावी मैदान में उतारा है.
इसके बाद राजद ने 15 और भाजपा ने 13 महिलाओं को मैदान में उतारा है. कांग्रेस ने पांच, हम और वीआइपी ने एक-एक महिलाओं को उम्मीदवार बनाया है. इस तरह एनडीए ने इस बार के विधानसभाओं में 37 महिलाओं को टिकट दिया है, जबकि महागठबंधन के सभी घटक दलों ने करीब 19 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. इस तरह से एनडीए ने सबसे ज्यादा महिला और सवर्ण उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है.