बिहार: मुजफ्फरपुर समेत कई जिलों के डॉक्टरों ने अपनी सुरक्षा के लिए बनवाई क्विक रिस्पॉन्स टीम, खुद ही उठाते हैं खर्च
By एस पी सिन्हा | Published: June 25, 2019 08:22 PM2019-06-25T20:22:22+5:302019-06-25T20:22:22+5:30
मुजफ्फरपुर में चमकी या एईएस (एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम) की चपेट में आकर कई बच्चों की मौत हो गई. वहीं, कई पीड़ित बच्चे इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती है. इनके परिजनों के साथ आए दिन डॉक्टरों की बहस भी होती दिख रही है. इसके लिए जिले के डॉक्टरों ने मिलकर क्यूआरटी बनाई है. ये टीम डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए तैनात रहेगी.
डॉक्टरों के साथ मरीज के परिजनों द्वारा की जा रही हिंसा को ध्यान में रखते हुए मुजफ्फरपुर में भी डॉक्टर डरे हुए हैं. इसके लिए उन्होंने खुद के पैसे इकठ्ठे कर क्विक रिस्पॉन्स टीम तैयारी की है. क्यूआरटी टीम जिले के कई जगहों पर तैनात की गई है. डॉक्टरों के मुताबिक कई बार ऐसा होता है कि सूचना के बाद पुलिस काफी देर से पहुंचती है, तब तक हालात काफी बिगड़ चुके होते हैं. ऐसी स्थिति में क्विक रिस्पॉन्स टीम उनकी सुरक्षा करेगी.
यहां बता दें कि मुजफ्फरपुर में चमकी या एईएस (एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम) की चपेट में आकर कई बच्चों की मौत हो गई. वहीं, कई पीड़ित बच्चे इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती है. इनके परिजनों के साथ आए दिन डॉक्टरों की बहस भी होती दिख रही है. इसके लिए जिले के डॉक्टरों ने मिलकर क्यूआरटी बनाई है. ये टीम डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए तैनात रहेगी. क्यूआरटी में 20 से 25 सुरक्षाकर्मी हैं. 60 डॉक्टरों ने पैसा एकत्र कर ये टीम बनाई है. ये सुरक्षाकर्मी डॉक्टरों की एक कॉल पर तुरंत रिस्पांस करेंगे. इस टीम में आर्मी के रिटायर जवान होंगे. सिक्योरिटी एजेंसी द्वारा ये रिटायर जवान डॉक्टरों की सुरक्षा करेंगे. इसके लिए इन्हें बाइक भी मुहैया कराई गई है. जैसे ही किसी डॉक्टर पर खतरे की सूचना इन्हें मिलेगी ये तत्काल मौके पर मौजूद होंगे. ये मरीजों के परिजनों की हिंसा से डॉक्टरों की सुरक्षा करेंगे.
यहां तक कि छोटे अस्पतालों ने भी मोबाइल 'क्विक रिऐक्शन टीम' या क्यूआरटी हायर कर रखा है, जिसके लिए उन्होंने काफी पैसा खर्च किया है. इस क्यूआरटी में गनमैन, बॉडी बिल्डर और लाठी से लैस युवा शामिल हैं जो 24 घंटे एक फोन पर उपलब्ध हो जाते हैं. यही वजह है कि डॉक्टरों पर कोई हमला नहीं कर सकता. मोतिहारी के डॉक्टर सीबी सिंह ने बताया कि, 'पुलिस थानों में 6 से 8 पुलिसकर्मी होते हैं जो ट्रैफिक और अपराध जैसी अपनी प्राथमिक ड्यूटी में काफी फंसे रहते हैं. वे लोग कैसे एक डॉक्टर की जान बचा सकते हैं, जिस पर हमला हुआ है? वे अक्सर तब आते हैं जब क्लिनिक को तोड़ दिया जाता है और डॉक्टरों की पिटाई कर दी जाती है.'
मोतिहारी में भी मुजफ्फरपुर के मॉडल को अपनाया गया है. उन्होंने बताया कि डॉक्टरों ने अपनी सुरक्षा का अनोखा और बड़ा ही कारगर रास्ता निकाल लिया है. सभी बड़े अस्पतालों और निजी कॉलेजों में जहां अपने सुरक्षा गार्ड तैनात हैं तो वहीं छोटे अस्पतालों ने मोबाइल 'क्विक रिऐक्शन टीम' या क्यूआरटी हायर कर रखा है. जिसके लिए उन्होंने काफी पैसा खर्च किया है. मुजफ्फरपुर में 50 से 60 हॉस्पिटल, नर्सिंग होम और क्लिनिक हर महीने 10 हजार रुपये क्यूआरटी के लिए देते हैं. इस क्यूआरटी में ज्यादातर लोग सेना और अर्द्धसैनिक बलों के रिटायर जवान हैं.
वहीं, मुजफ्फरपुर के डॉक्टर संजय कुमार कहते हैं कि इसमें कई ऐसे भी जवान हैं जो सूबेदार रैंक से रिटायर हुए हैं और उम्रदराज हैं. ये लोग बहुत शांत होते हैं और बिना विवाद के भीड़ को नियंत्रित कर लेते हैं. गनमैन और लाठी से लैस जवान केवल ताकत दिखाने के लिए होते हैं. इस क्यूआरटी में दिन रात जवान तैनात रहते हैं. उन्हें मोटरसाइकिल दिया गया है ताकि फोन आने के 5 से 10 मिनट के अंदर वे मौके पर पहुंच सकें. नेवी से रिटायर होने के बाद वर्ष 2017 में क्यूआरटी की स्थापना करने वाले सदन मोहन ने बताया कि उन्हें अब तक एक बार भी मुजफ्फरपुर में बल का प्रयोग नहीं करना पड़ा है.
सदन मोहन ने कहा कि ज्यादातर मामले तब होते हैं, जब मरीज की मौत हो जाती है और परिवार वाले चाहते हैं कि अस्पताल के बिल को माफ किया जाए. हमारी क्यूआरटी को इस बात की ट्रेनिंग दी गई है कि वे स्थिति को बिगड़ने न दें और भीड़ को इकट्ठा न होने दें, जब मरीज के परिजनों को लगता है कि डॉक्टर के समर्थन में इतने लोग हैं तो वे शांत हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि उनकी सुरक्षा एजेंसी सीतामढ़ी और मोतिहारी में भी डॉक्टरों की सुरक्षा करती है.
यहां बता दें कि मुजफ्फरपुर उत्तरी बिहार का एक बड़ा मेडिकल हब है और यहां बड़ी संख्या में मरीज आते हैं. क्यूआरटी की वजह से कई डॉक्टरों ने अपनी क्लिनिक खोली है. डॉक्टर कुमार ने कहा कि यह हमें सुरक्षा का अहसास देता है और क्यूआरटी जल्दी से मौके पर पहुंच जाती है. मुजफ्फरपुर के डेढ़ किलोमीटर के इलाके में 500 डॉक्टर हॉस्पिटल चलाते हैं. यहां बता दें कि जिले में बच्चों की मौत और पीड़ित बच्चों का जायजा लेने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री से लेकर बिहार के विपक्ष तक के कई मंत्री पहुंच चुके हैं.
बड़े नेता से लेकर छोटा नेता भी जब भी बच्चों के स्वास्थ्य का जायजा लेने पहुंचता है, तो उनके साथ समर्थकों की अच्छी खासी भीड़ भी होती है. इस लिहाज से डॉक्टरों के काम में बाधा आती है. इन्हें नियत्रंण करने के लिए भी ये टीम कार्यरत रहेगी. डॉक्टरों के मुताबिक कई बार ऐसा होता है कि सूचना के बाद पुलिस काफी देर से पहुंचती है, तब तक हालात काफी बिगड़ चुके होते हैं. ऐसी स्थिति में क्विक रिस्पॉन्स टीम उनकी सुरक्षा करेगी.
यहां उल्लेखनीय है कि पटना हो या कोलकाता और दिल्ली, कई जगह परिजनों द्वारा की गई हिंसा से डॉक्टर स्ट्राइक करने पर मजबूर हो गए थे. परिजनों की हिंसा का खौफ कहीं ना कहीं मुजफ्फरपुर के डॉक्टरों पर भी है. इसके लिए उन्होंने इस टीम के गठन करने की पहल की है.