करारी हार के बाद पुष्पम प्रिया चौधरी का इमोशनल मैसेज, लिखा- आज बिहार में सुबह नहीं हुई
By राजेन्द्र सिंह गुसाईं | Published: November 11, 2020 08:38 PM2020-11-11T20:38:06+5:302020-11-11T20:45:22+5:30
बिहार में चुनावी नतीजों के बाद पुष्पम प्रिया चौधरी को निराशा हाथ लगी। उनकी द प्लूरल्स पार्टी का खाता भी नहीं खुल सका...
बिहार विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद प्लूरल्स पार्टी चीफ पुष्पम प्रिया चौधरी को बांकीपुर और बिस्फी, दोनों ही सीटों पर करारी हार का का सामना करना पड़ा। आलम ये रहा कि दोनों सीटों पर वह अपनी जमानत तक नहीं बचा सकीं।
हालांकि इसके बाद पुष्पम प्रिया ने हार का ठीकरा ईवीएम पर जरूर फोड़ा, लेकिन अगले दिन उन्होंने फेसबुक पर एक लंबी-चौड़ी पोस्ट भी लिखी, जिसमें उन्होंने हार पर अफसोस जताया है।
पुष्पम प्रिया ने लिखा, "आज सुबह हो गई पर बिहार में सुबह नहीं हुई। मैं बिहार वापस एक उम्मीद के साथ आई थी कि मैं अपने बिहार और अपने बिहारवासियों की जिंदगी अपने नॉलेज, हिम्मत, ईमानदारी और समर्पण के साथ बदलूंगी। मैने बहुत ही कम उम्र में अपना सब कुछ छोड़ कर ये पथरीला रास्ता चुना क्योंकि मेरा एक सपना था- बिहार को पिछड़ेपन और ग़रीबी से बाहर निकालने का। बिहार के लोगों को एक ऐसी इज्जतदार ज़िंदगी देना जिसके वो हक़दार तो हैं पर जिसकी कमी की उन्हें आदत हो गई है। बिहार को देश में वो प्रतिष्ठा दिलाना जो उसे सदियों से नसीब नहीं हुई। मेरा सपना था बिहार के गरीब बच्चों को वैसे स्कूल और विश्वविद्यालय देना जैसों में मैने पढ़ाई की है, जैसों में गांधी, बोस, अम्बेडकर, नेहरू, पटेल, मजहरूल हक़ और जेपी-लोहिया जैसे असली नेताओं ने पढ़ाई की थी। उसे इसी वर्ष 2020 में देना क्योंकि समय बहुत तेज़ी से बीत रहा और दुनिया बहुत तेज़ी से आगे जा रही। आज वो सपना टूट गया है, 2020 के बदलाव की क्रांति विफल रही है।"
उन्होंने आगे लिखा, "हर छोर हर ज़िले में गयी, लाखों लोगों से मिली। आपमें भी वही बेचैनी दिखी बिहार को ले कर जो मेरे अंदर थी - बदलाव की बेचैनी। और उस बेचैनी को दिशा देने के लिए जो भी वक्त मिला उसमें मैने और मेरे साथियों ने अपनी तरफ़ से कोई कसर नहीं छोड़ी। पर हार गए हम। इनकी भ्रष्ट ताक़त ज़्यादा हो गयी और आपकी बदलाव की बेचैनी कम। और मैं, मेरा बिहार और बिहार के वो सारे बच्चें जिनका भविष्य पूरी तरह बदल सकता था, वो हार गया। मीडिया मेरे कपड़ों और मेरी अंग्रेज़ी से ज़्यादा नहीं सोच पायी, बाक़ी पार्टियों के लिए चीयरलीडर बनी रही और आप नीतीश, लालू और मोदी से आगे नहीं बढ़ पाए। आपकी आवाज़ तो मैं बन गयी पर आप मेरी आवाज़ भी नहीं बन पाए और शायद आपको मेरे आवाज़ की जरुरत भी नहीं। इनकी ताक़त को बस आपकी ताक़त हरा सकती थी पर आपको आपस में लड़ने से फ़ुरसत नहीं मिली।"
पुष्पम प्रिया ने लिखा, "आज अंधेरा बरकरार है और 5 साल, और क्या पता शायद 30 साल या आपकी पूरी ज़िंदगी तक यही अंधेरा रहेगा, आप ये मुझसे बेहतर जानते हैं। आज जब अपनी मक्कारी से इन्होंने हमें हरा दिया है, मेरे पास दो रास्ते हैं। इन्होंने बहुत बड़ा खेल करके रखा है जिसपर यक़ीन होना भी मुश्किल है। या तो आपके लिए मैं उससे लड़ूँ पर अब लड़ने के लिए कुछ नहीं बचा है ना ही पैसा ना ही आप पर विश्वास, और दूसरा बिहार को इस कीचड़ में छोड़ दूँ। निर्णय लेना थोड़ा मुश्किल है। मेरी संवेदना मेरे लाखों कार्यकर्ताओं और समर्थकों के साथ है। फ़िलहाल, आप अंधेर नगरी में अंधेरे का जश्न मनाएँ और चौपट राजाओं के लिए ताली बजाएँ। जब ताली बजा कर थक जाएँ, और अंधेरा बरकरार रहे, तब सोचें कि कुछ भी बदला क्या, देखें कि सुबह आई क्या? मैंने बस हमेशा आपकी ख़ुशी और बेहतरी चाही है, सब ख़ुश रहें और आपस में मुहब्बत से रहें।"
लंदन से शिक्षित पुष्पम चौधरी
अखबारों में इश्तेहार के जरिए बिहार की राजनीति में दस्तक देने वाली ‘प्लूरल्स पार्टी’ की प्रमुख पुष्पम प्रिया चौधरी चुनाव प्रचार के लिए मिथिलांचल की ‘खोंयछा’ परंपरा के जरिए मतदाताओं से जुड़ रहीं और चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने हर परिवार से कपड़े का एक छोटा टुकड़ा, एक मुठ्ठी अनाज और एक रुपया मांगा। 'लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स' से पढ़ाई करने वाली पुष्पम ने अपने चुनाव प्रचार के इस अभियान का नाम ‘बिहार का खोंयछा’ रखा था।