बंगाल के ‘राजनीतिक अलगाव’ का किताब में किया गया विश्लेषण

By भाषा | Published: November 26, 2021 05:34 PM2021-11-26T17:34:52+5:302021-11-26T17:34:52+5:30

Bengal's 'political isolation' analyzed in the book | बंगाल के ‘राजनीतिक अलगाव’ का किताब में किया गया विश्लेषण

बंगाल के ‘राजनीतिक अलगाव’ का किताब में किया गया विश्लेषण

नयी दिल्ली, 26 नवंबर लोकनीति के विश्लेषक सौगत हाजरा अपनी नई किताब में तर्क देते हैं कि बंगाल ने राष्ट्रवाद का बीज बोया और इसका पोषण किया जिससे देश अंतत: दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बनने की दिशा में अग्रसर हुआ लेकिन इसके बावजूद करीब 45 सालों से राज्य राष्ट्रीय राजनीति के परिदृश्य में अलग-थलग है।

“लूजिंग द प्लॉट: पॉलिटिकल आइसोलेशन ऑफ वेस्ट बंगाल” में उन्होंने राज्य के बदलते नेतृत्व, राजनीतिक विचारधारा और विमर्श का पता लगाने का प्रयास किया है।

लेखक की दलील है कि इस तथाकथित अलगाव ने अलोकतांत्रिक प्रणालियों और प्रक्रियाओं की ओर एक कदम को प्रोत्साहित किया जो स्वाभाविक रूप से एक ऐसे राज्य के सामाजिक-आर्थिक पतन का कारण बनीं जिसने कभी राष्ट्रीय गौरव और पहचान का नेतृत्व किया था।

हाजरा पश्चिम बंगाल में समकालीन राजनीति की स्थिति के बारे में प्रासंगिक प्रश्न उठाते हैं। यह दावा करते हुए कि पश्चिम बंगाल पिछले 44 वर्षों से राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य में अलग-थलग है, वह यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि राज्य कैसे अलग-थलग पड़ गया।

नियोगी बुक्स की पेपर मिसाइल द्वारा प्रकाशित किताब में वह लिखते हैं, “ब्रिटिश शासन के शुरुआती दिनों से लेकर, राज्य की पहली महिला प्रमुख के नेतृत्व में एक क्षेत्रीय राजनीतिक दल के शासन तक बंगालियों ने एक लंबा सफर तय किया है।”

उनका कहना है कि पश्चिम बंगाल आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से एक कभी खत्म न होने वाली बगावत की कहानी है। उनका मानना है कि यह एक ऐसे राज्य की कहानी है जिसने अपना आधार खो दिया है।

पुस्तक में 12 अध्याय हैं जो राज्य के जटिल राजनीतिक इतिहास पर नजर डालते हैं।

पहला अध्याय बंगाल राज्य में आधुनिक विचारों और राष्ट्रवाद के जन्म का पता लगाता है और पड़ताल करता है कि यह कैसे पूरे भारत में फैल गया ।

दूसरे अध्याय में नव-राष्ट्रवाद की ओर बंगाल के कदम और राजनीतिक आंदोलन की एक अलग धारा तैयार करने में इसकी भूमिका पर प्रकाश डाला गया है।

तीसरे अध्याय में दिखाया गया है कि कैसे बंगाल के नेतृत्व का राष्ट्रीय राजनीति से मतभेद था, खासकर महात्मा गांधी के आने के बाद। बंगाल के लोकप्रिय नेता चित्तरंजन दास और गांधी के बीच विधायिका में प्रवेश और क्रांतिकारी राजनीति पर संघर्ष और दास की असामयिक मृत्यु के बाद राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव से राष्ट्रीय राजनीति में राज्य का महत्व कमतर होने की व्याख्या करता है।

पुस्तक का अंतिम अध्याय राज्य के भविष्य के बारे में गंभीर सवाल उठाते हुए पूरी ऐतिहासिक प्रक्रिया को समेटे हुए है।

अंत में, लेखक ने 2021 के पश्चिम बंगाल राज्य विधानसभा चुनाव के परिणामों और उसके प्रभावों का विश्लेषण किया है, यह देखते हुए कि, "2021 के राज्य चुनाव के दौरान टीएमसी और भाजपा के बीच अत्यधिक राजनीतिक कड़वाहट बढ़ गई और यह चुनाव के बाद भी जारी है।"

निष्कर्ष में, पुस्तक इस बात को रेखांकित करती है कि, "राजनीतिक रूप से पश्चिम बंगाल ने हिंदी हृदयभूमि की राजनीति से अलगाव का विकल्प चुना है, जिससे इसकी विशिष्ट क्षेत्रीय पहचान बनी हुई है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Web Title: Bengal's 'political isolation' analyzed in the book

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे