Babulal Gaur: गौर युग का हुआ अंत, जनहित के मुद्दों पर नहीं किया समझौता
By राजेंद्र पाराशर | Published: August 22, 2019 01:04 AM2019-08-22T01:04:05+5:302019-08-22T01:04:05+5:30
1974 में मध्य प्रदेश शासन द्वारा बाबूलाल गौर को गोआ मुक्ति आंदोलन में शामिल होने के कारण स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का सम्मान प्रदान किया गया था. सक्रिय राजनीति में आने से पहले बाबूलाल गौर ने भोपाल की कपड़ा मिल में मजदूरी की थी और श्रमिकों के हित में अनेक आंदोलनों में भाग लिया था.
पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर के निधन के साथ प्रदेश की राजनीति के एक युग का भी अवसान हो गया. उन्होंने राजनीति के अजेय योद्धा के रुप में अंतिम सांस ली. बुल्डोजर मंत्री के रुप में पहचान बनाने वाले गौर ने मजदूर से मुख्यमंत्री तक के सफर में भाजपा ही नहीं, बल्कि विपक्षी दलों के नेताओं के साथ भी उनके अच्छे संबंध रहे.
जनता से जीवंत संपर्क रखने वाले इस नेता ने कभी भी जनहित के मुद्दों पर समझौता नहीं किया. कई अवसरों पर वे पार्टी गाईड लाइन से हटकर अपनी बात रखते थे.
मध्यप्रदेश की सियासत में आज गौर युग का अंत हो गया. पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर के निधन के साथ ही आज प्रदेश ने कुशल प्रशासक और कुशल राजनीतिज्ञ को खो दिया. 1974 में मध्य प्रदेश शासन द्वारा बाबूलाल गौर को गोआ मुक्ति आंदोलन में शामिल होने के कारण स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का सम्मान प्रदान किया गया था. सक्रिय राजनीति में आने से पहले बाबूलाल गौर ने भोपाल की कपड़ा मिल में मजदूरी की थी और श्रमिकों के हित में अनेक आंदोलनों में भाग लिया था. वे भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक सदस्य थे .
वे 7 मार्च 1990 से 15 दिसंबर 1992 तक मध्यप्रदेश के स्थानीय शासन, विधि एवं विधायी कार्य, संसदीय कार्य, जनसंपर्क, नगरीय कल्याण, शहरी आवास तथा पुनर्वास एवं भोपाल गैस त्रासदी राहत मंत्री रहे. गौर 4 सितंबर 2002 से 7 दिसंबर 2003 तक मध्य प्रदेश विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे. बाबूलाल गौर सन 1946 से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे. उन्होंने दिल्ली तथा पंजाब आदि राज्यों में आयोजित सत्याग्रहों में भी भाग लिया था. गौर आपातकाल के दौरान 19 माह की जेल भी काटी .
विधायक से मुख्यमंत्री तक का सफर
उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के ग्राम नौगीर में 2 जून 1930 को जन्मे बाबूलाल गौर का भाजपा के नेता के रूप में मध्यप्रदेश की राजनीति में प्रमुख स्थान रहा. 23 अगस्त 2004 से 29 नवंबर 2005 तक वे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. बीए और एलएलबी डिग्रीधारी गौर पहली बार 1974 में भोपाल दक्षिण विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में निर्दलीय विधायक चुने गए थे. उन्होंने 1977 में गोविन्दपुरा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और वर्ष 2013 तक वहां से लगातार 10 बार विधानसभा चुनाव जीते. 1993 के विधानसभा चुनाव में 59 हजार 666 मतों के अंतर से विजय प्राप्त कर बाबूलाल गौर ने कीर्तिमान रचा था और 2003 के विधानसभा चुनाव में 64 हजार 212 मतों के अंतर से विजय पाकर अपने ही कीर्तिमान को तोड़ा. जून 2016 में भाजपा आलाकमान ने उम्र का हवाला देकर गौर को मंत्री पद छोड़ने के लिए कहा था. पार्टी के इस निर्णय से वे स्तब्ध और दुखी थे. 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा न तो उन्हें टिकट देना चाहती थी न उनकी पुत्रबधू कृष्णा को. गौर ने बगाबती तेवर अपना लिए और पार्टी के खिलाफ बयानबाजी शुरू कर दी. आखिरकार भाजपा ने कृष्णा गौर को टिकट दिया और कृष्णा को इस सीट पर जीत मिली.