26 वीं बरसी: छह दिसंबर 1992 को याद कर अब भी सिहर जाते हैं ये अयोध्यावासी
By भाषा | Published: December 6, 2018 07:29 AM2018-12-06T07:29:10+5:302018-12-06T07:29:10+5:30
छह दिसंबर 1992 को अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद को उग्र हिन्दुत्ववादी भीड़ ने गिरा दिया था। बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि विवाद फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। बाबरी मस्जिद गिराने के मामले में बीजेपी, वीएचपी और बजरंग दल के कई नेताओं पर गंभार आरोप लगे थे।
कुणाल दत्त
ऑटो ड्राइवर मोहम्मद आजिम को अब भी छह दिसंबर, 1992 की डरावनी रात याद है जब उन्होंने यहां के कुछ अन्य मुस्लिम बाशिंदों के साथ अपनी जान की खातिर खेतों में शरण ली थी। तब महज 20 साल के रहे आजिम ने कहा, ‘‘उन्मादी "कारसेवकों" की फौज ने बाबरी मस्जिद ढ़हा दी थी जिसके बाद अशांति एवं डर का माहौल बन गया था। हम इतने डर गये थे कि हमें नहीं पता था कि हम क्या करें।’’
अब चार बच्चों के पिता 46 वर्षीय आजिम परेशान हो उठे हैं कि राममंदिर मुद्दा फिर कुछ नेताओं और संघ परिवार द्वारा उठाया जा रहा है और अयोध्या के ‘नाजुक शांतिपूर्ण माहौल’ के लिए खतरा पैदा किया जा रहा है। जबकि यहां के बाशिंदे 26 साल बाद अब भी इस त्रासदी से उबरने के लिए प्रयत्नशील हैं।
आजिम ने अफसोस प्रकट किया, ‘‘हर साल इस समय हम उन मनोभावों से जूझते हैं। हमने अतीत को पीछा छोड़ने का प्रयास किया लेकिन त्रासद यादें जाती नहीं हैं। अयोध्या और अन्यत्र मंदिर मुद्दे पर शोर-शराबे से हमारे जख्म हरे हो जाते हैं। ’’
वह कहते हैं कि वह दुर्भाग्यपूर्ण रात अब भी उनकी नजरों के सामने घूमती है। जब दो समुदाय एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे थे तब एक हिंदू परिवार ने उन्हें शरण दी थी।
उन्होंने कहा, ‘‘हमने पूरी रात खेत में गुजारी। बहुत ठंड और दर्दभरी रात थी, मैं कभी नहीं भूल पाउंगा। तड़के ही हमने एक ठाकुर परिवार, जिसे हम जानते थे, का दरवाजा खटखटाया, उसने कुछ दिनों तक हमें शरण दी। ’’
छह दिसंबर को याद कर हो जाते हैं विचलित
मोहम्मद मुस्लिम (78) इस घटना की चर्चा कर विचलित हो जाते हैं और कहते हैं, ‘‘तब हम असुरक्षित थे और आज भी हम तब असुरक्षा महसूस करते हैं जब बाहर से भीड़ (उनका इशारा विहिप की धर्मसभा) हमारे शहर की ओर आती है। ’’
मुस्लिम, आजिम और कई अन्य अल्पसंख्यक इस घटना को लोकतंत्र के लिए धब्बा करार देते हैं।
ऐसा नहीं है कि केवल अल्पसंख्यक समुदाय ही दर्द महसूस कर रहा है। विवादित रामजन्मभूमि ढांचे के समीप रहने वाले पेशे से चिकित्सक विजय सिंह जिस दिन मस्जिद ढ़हायी गयी थी, उस दिन वह अयोध्या में ही थे और उन्होंने हिंसा देखी थी।
उन्होंने कहा, ‘‘यह बड़ा डरावना था। हम एक और अयोध्या त्रासदी नहीं चाहते हैं। हम शांतिपूर्ण माहौल चाहते हैं लेकिन नेता अपने एजेंडे के तहत भावनाएं भड़काते हैं। 1992 में भी इस ढांचे को ढ़हाने के लिए बाहर से बड़ी संख्या में लोग लाए गए थे। यह त्रासद और दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी जो आज भी अयोध्या के जेहन में है।’’
सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने कहा कि अयोध्या प्राचीन संस्कृति और सांप्रदायिक सद्भाव का स्थान रहा है लेकिन 1992 में मेल-जोल वाली प्रकृति छीन ली गयी और शहर अब भी उसकी कीमत चुका रहा है।