आजादी अमृत महोत्सवः साहित्य अकादेमी में कार्यक्रम, भारत छोड़ो आंदोलन, गांधीवाद पर चर्चा

By अरविंद कुमार | Published: August 9, 2021 09:23 PM2021-08-09T21:23:39+5:302021-08-09T21:26:54+5:30

मराठी के सुप्रसिद्ध लेखक-आलोचक सदानंद मोरे ने भारत छोड़ो आंदोलन और मराठी समाज और साहित्य पर विस्तार से अपने विचार व्यक्त किए।

​​​​​​​Azadi ka Amrit Festival 75th Anniversary of Indian Independence Sahitya Akademi Quit India Movement Gandhism | आजादी अमृत महोत्सवः साहित्य अकादेमी में कार्यक्रम, भारत छोड़ो आंदोलन, गांधीवाद पर चर्चा

भारत छोड़ो आंदोलन ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध अंतिम आंदोलन था।

Highlightsस्वतंत्रता से पूर्व सिंधी साहित्य पर गांधीवाद का व्यापक प्रभाव रहा है।भारत के आमजन की सक्रियता के साथ साथ  साहित्यकारों एवं पत्रकारों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। आजादी के लिए संघर्ष का यह कालखंड तमिल उपन्यासों में प्रमुखता से रेखांकित हुआ है। 

मुंबईः साहित्य अकादेमी की ओर से आज़ादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर दरबार हॉल ,एशियाटिक सोसायटी,मुंबई में आयोजित " साहित्य और भारत छोड़ो आंदोलन " विषयक  दो दिवसीय सम्मेलन का आज समापन हो गया।

आज का  प्रथम सत्र " देशभक्तिपूर्ण साहित्य : अवधारणा,प्रवृत्ति तथा सौंदर्यशास्त्र "विषय पर केंद्रित था। जिसके अध्यक्षीय वक्तव्य में मराठी के सुप्रसिद्ध लेखक-आलोचक सदानंद मोरे ने भारत छोड़ो आंदोलन और मराठी समाज और साहित्य पर विस्तार से अपने विचार व्यक्त किए।

उन्होंने अपने वक्तव्य में मराठी साहित्य में स्वाधीनता आंदोलन के समय में उपजी विभिन्न वैचारिक धाराओं को भी रेखांकित किया। सिंधी साहित्यकार एवं आलोचक विनोद आसुदाणी ने सिंधी में देशभक्तिपूर्ण साहित्य के बारे अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि स्वतंत्रता से पूर्व सिंधी साहित्य पर गांधीवाद का व्यापक प्रभाव रहा है।

उन्होंने अपने संबोधन में स्वतंत्रता आंदोलन के संदर्भ एवं संघर्ष की पृष्ठभूमि पर सिंधी में लिखे गए उपन्यासों का भी उल्लेख किया। तमिल के विख्यात लेखक -विद्वान मालन वी. नारायणन ने कहा कि भारत छोड़ो आंदोलन ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध अंतिम आंदोलन था। जिसमें भारत के आमजन की सक्रियता के साथ साथ  साहित्यकारों एवं पत्रकारों की महत्वपूर्ण भूमिका थी।

उन्होंने कहा कि आजादी के लिए संघर्ष का यह कालखंड तमिल उपन्यासों में प्रमुखता से रेखांकित हुआ है। सम्मेलन के समापन सत्र की अध्यक्षता तेलुगु लेखिका एवं आलोचक सी. मृणालिनी ने की। उन्होंने  तेलुगु साहित्य  का भारत छोड़ो आंदोलन में योगदान विषय पर अपने विचार भी साझा किए।

पंजाबी लेखक -नाटककार सतीश कुमार वर्मा ने " पंजाबी का भारत छोड़ो आंदोलन में योगदान " विषय पर अपने वक्तव्य में कहा कि स्वाधीनता आंदोलन में पंजाब की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। पंजाबी लोक साहित्य और कविता के उस दौर में संघर्ष के तत्व तो  दिखाई देते ही है साथ ही  आंदोलन के लिए  जोश और होश का समन्वय भी  दिखाई देता है।

ई.विजयलक्ष्मी ने " मणिपुरी का भारत छोड़ो आंदोलन में योगदान " विषय पर आलेख -पाठ किया। हिंदी लेखक एवं आलोचक करुणाशंकर उपाध्याय ने " देशभक्तिपूर्ण साहित्य : अवधारणा,प्रवृत्ति तथा सौंदर्यशास्त्र " विषय पर अपने संबोधन में कहा कि स्वाधीनता आंदोलन के दौरान न केवल हिंदी बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं में देशभक्तिपूर्ण साहित्य का विपुल सृजन हुआ।

उन्होंने कहा कि  हमारे देश में सांस्कृतिक ,भौगोलिक  एवं भाषिक विविधता है लेकिन उसमें  एकता की अंतर्धारा भी  समाहित है। उन्होंने इस मौके पर हिंदी के प्रमुख कवियों की देशभक्तिपूर्ण कविताओं का भी उल्लेख किया। साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव सहित अनेक  साहित्य-संस्कृति प्रेमी  श्रोता मौजूद रहें। कार्यक्रम का संयोजन साहित्य अकादेमी के उपसचिव कृष्णा किंबहुने ने किया।

Web Title: ​​​​​​​Azadi ka Amrit Festival 75th Anniversary of Indian Independence Sahitya Akademi Quit India Movement Gandhism

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