कांग्रेस की जीत 2019 में BJP के लिए खतरे की घंटी, नफरत की राजनीति, नोटबंदी, जीएसटी पड़ा सत्तारूढ़ दल पर भारी

By हरीश गुप्ता | Published: December 12, 2018 05:10 AM2018-12-12T05:10:31+5:302018-12-12T05:10:31+5:30

आरएसएस और भाजपा के पूरे नेतृत्व ने शिवराज सिंह चौहान के पीछे ताकत झोंक दी थी, लेकिन जीत नहीं मिली. इस चुनाव में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की शानदार जीत सबसे आश्चर्यजनक है क्योंकि किसी को भी इसकी उम्मीद नहीं थी. यह उम्मीद जताई जा रही थी कि जोगी-बसपा टीम कांग्रेस वोट बैंक में सेंघमारी करेगी, लेकिन परिणाम इसके विपरीत हुआ.

assembly elections lost bjp and now tough fight for lok sabha polls | कांग्रेस की जीत 2019 में BJP के लिए खतरे की घंटी, नफरत की राजनीति, नोटबंदी, जीएसटी पड़ा सत्तारूढ़ दल पर भारी

कांग्रेस की जीत 2019 में BJP के लिए खतरे की घंटी, नफरत की राजनीति, नोटबंदी, जीएसटी पड़ा सत्तारूढ़ दल पर भारी

हिंदी भाषी राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव परिणाम 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए खतरे की घंटी है. हालांकि तेलंगाना में कांग्रेस को असफलता मिली जहां उसने तेदेपा से गठबंधन किया था. साथ ही उसने मिजोरम में सत्ता खो दी. चुनाव परिणामों को इस संदेह को दूर कर दिया है कि मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 15 वर्षों से राज कर रही अपराजेय भाजपा को मात नहीं दी जा सकती है.

आरएसएस और भाजपा के पूरे नेतृत्व ने शिवराज सिंह चौहान के पीछे ताकत झोंक दी थी, लेकिन जीत नहीं मिली. इस चुनाव में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की शानदार जीत सबसे आश्चर्यजनक है क्योंकि किसी को भी इसकी उम्मीद नहीं थी. यह उम्मीद जताई जा रही थी कि जोगी-बसपा टीम कांग्रेस वोट बैंक में सेंघमारी करेगी, लेकिन परिणाम इसके विपरीत हुआ.

विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार के लिए नोटबंदी, जीएसटी, लड़खड़ाती ग्रामीण अर्थव्यवस्था को जिम्मेदार ठहराया गया है. इसी प्रकार राजस्थान जहां 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा सभी 25 सीटें जीतने में कामयाब रही थी, वहां सम्मानजनक संख्या हासिल करने के बावजूद पार्टी कमजोर हुई है. अब जबकि लोकसभा चुनाव में छह महीने दूर है, वास्तविक लड़ाई हिंदी बेल्ट और हिंदी भाषी राज्यों में लोकसभा की 224 सीटों पर शुरू हुई है. इन 10 राज्यों में भाजपा ने अकेले 174 सीटों पर कब्जा जमाया था.

सूत्रों का मानना है कि अब 'जी-21' उपनाम वाले 21 विपक्षी दल जिनका सोमवार को सम्मेलन हुआ था अब मजबूत हो जाएंगे. बसपा और सपा जिन्होंने सोमवार को 'जी-21' की बैठक में शिरकत नहीं की थी, वे अब विचार करेंगे. आप नेता अरविंद केजरीवाल की मौजूदगी से स्पष्ट संकेत मिला कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अब उनके साथ काम करने के लिए राजी हैं. 'जी-21' का मकसद अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराना है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब अजेय नहीं हैं.

विधानसभा चुनाव में हार के लिए नरेंद्र मोदी सरकार द्बारा लागू नोटबंदी और जीएसटी को जिम्मेदार ठहराया गया है. ग्रामीण संकट भी चरम पर है. हालांकि भाजपा का विश्लेषण है कि राम मंदिर मुद्दे से मध्य प्रदेश में पार्टी को मदद मिली, लेकिन एक वर्ग का मानना है कि मोदी को विकास का एजेंडा आगे बढ़ाना था. धार्मिक ध्रुवीकरण से बहुत अधिक वोट हासिल नहीं हो सकते हैं. भीड़ की हिंसा से भले ही कट्टर हिंदूवादी खुश हुए हों, लेकिन यह सरकार से नाराज मतदाताओं को शांत नहीं कर सकता जैसा कि राजस्थान में दिखा. कट्टर हिंदुवाद का चेहरा योगी आदित्यनाथ ने इन सभी तीन राज्यों में बड़े पैमाने पर प्रचार किया, लेकिन इससे भी सफलता नहीं मिली.

राकांपा के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य प्रफुल्ल पटेल ने 'लोकमत समाचार' को आज बताया कि यह जीत विपक्षी एकता को बड़ी मजबूती देगी और नया अध्याय लिखा जाएगा. चुनाव परिणाम से दो दिन पहले विपक्ष के एकता प्रदर्शन में जहां ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल समेत विपक्षी दलों के करीब तमाम नेता दिखे, वहीं अखिलेश यादव और मायावती गैरमौजूद दिखे. दोनों नेता आने वाले समय के अगुवा हैं.

Web Title: assembly elections lost bjp and now tough fight for lok sabha polls

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