पेंटर राम कुमार का 94 वर्ष की उम्र में निधन
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: April 14, 2018 11:31 AM2018-04-14T11:31:44+5:302018-04-14T12:58:55+5:30
राम कुमार अपने ऐब्स्ट्रैक्ट लैण्डस्केप पेंटिंग के लिए विख्यात थे। उनकी बनारस और शिमला शहर सीरीज के चित्र काफी सराहे गये।
पेंटर राम कुमार का शनिवार (14 अप्रैल) को 94 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। राम कुमार आधुनिक पेंटरों की उस पीढ़ी से सम्बन्ध रखते थे जिसमें एमएफ हुसैन, एफएन सूज़ा, एसएच रज़ा इत्यादि शामिल थे। राम कुमार प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप से भी जुड़े रहे थे। राम कुमार अपने ऐब्स्ट्रैक्ट लैंडस्केप के लिए विख्यात थे। बनारस और शिमला शहर पर बनाए गये उनके लैण्डस्केप काफी चर्चित हैं। राम कुमार प्रारम्भ में हिन्दी कहानियाँ भी लिखते थे। राम कुमार के छोटे भाई निर्मल वर्मा हिन्दी के प्रमुख लेखक थे।
राम कुमार का जन्म 1924 में शिमला हुआ था। उनके पिता ब्रिटिश सरकार के कर्मचारी थे। राम कुमार ने दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इकोनॉमिक्स में अर्थशास्त्र की पढ़ाई के दौरान एक चित्रकला प्रदर्शनी देखने गये जिसने उनका जीवन बदल दिया। राम कुमार वो प्रदर्शनी देखने कई बार गये। राम कुमार उन चित्रों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने शारदा उकील स्कूल ऑफ आर्ट में एडमिशन ले लिया। उकी स्कूल में राम कुमार को सैलोज मुखर्जी के निगहबानी में पेटिंग सीखने का मौका मिला। राम कुमार ने पेंटिंग में करियर बनाने के लिए 1948 में बैंकिंग की नौकरी छोड़ दी। द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार राम कुमार का दिल्ली के निगमबोध घाट पर शनिवार को अंतिम संस्कार होगा।
कवि अशोक वाजपेयी ने राम कुमार के निधन पर कहा-
राम कुमार के निधन के साथ ही भारतीय कला जगत ने एक और आधुनिक स्तम्भ हमने खो दिया। राम कुमार ने करीब सात दशकों तक चित्रकला को समर्पित रहे। उनकी अपनी अलहदा स्टाइल थी। उन्होंने शायद ही कभी कोई हल्की कृति नहीं बनायी। उन्होंने एक हिन्दी सृजनात्मक लेखक के तौर पर शुरुआत की। भारतीय मध्य वर्ग की छू लेने वाली कहानियों से उन्होंने ध्यान खींचा। बाद में उन्होंने अपने को पूरी तरह कला को समर्पित कर दिया। कला में उनका योगदान शानदार और विशिष्ट है। बनारस हो या पहाड़ उनके प्रसिद्ध लैण्डस्केप अमूर्त थे।"
राम कुमार के निधन पर कला समीक्षक कालीदास स्वामीनाथन-
पेंटर और हिन्दी लेखक राम कुमार का दिल्ली में निधन हो गया। मेरे पिता और वो दोनों ही शिमला में सरकारी अधिकारियों के घर पैदा हुए थे। दोनों एक ही स्कूल में पढ़े। मेरे पिता उनसे तीन साल छोटे और उनके भाई निर्मल वर्मा से एक साल बड़े थे। उनकी और उनकी पत्नी विमलाजी से दिल्ली और शिमला से जुड़ी कई यादें हैं। उस समय हम सब करोल बाग में रहते थे। 1960 के दशक में हम दक्षिण की जाने लगे। राम अंकल और विमलाजी मथुरा रोड पर जंगपुरा में रहने चले गये जहाँ सड़क के दूसरी तरफ कृष्ण खन्ना रहते थे। तैयब मेहता पड़ोस में निजामुद्दीन में रहते थे। जंगपुरा में एमएफ हुसैन भी आते थे। हम 1967 में साउथ एक्टेंशन में रहने चले गये। उनके बेटे नीलोत्पल उत्पल वर्मा मुझे कुछ छोटे हैं और परिवार की तरह हैं। टुलु मेरी भावभीवी संवेदनाएँ, हम सब तुम्हारे पिता को याद करेंगे।"