जयंती विशेष: मधुशाला के रचयिता हरिवंश राय बच्चन के 10 प्रसिद्ध काव्य-अंश
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: November 27, 2018 10:54 AM2018-11-27T10:54:18+5:302018-11-27T11:18:44+5:30
हरिवंश राय बच्चन ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में पीएचडी की।
आज मशहूर कवि और लेखक हरिवंश राय बच्चन की जयंती है। हिन्दी के सबसे लोकप्रिय कवियों में शुमार किए जाने वाले हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला और निशा निमंत्रण काव्य-संग्रह बेहद मकबूल है। बच्चन की चार खण्डों में लिखी आत्मकथा भी हिन्दी में लिखी सर्वश्रेष्ठ आत्मकथाओं में शुमार की जाती है। बच्चन का जन्म भारत की आजादी से पहले तत्कालीन अवध प्रांत में हुआ था। बच्चन की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई स्थानीय कायस्थ पाठशाला में हुई। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में पीएचडी की। साहित्य में बच्चन के योगदान के लिए भारत सरकार ने 1976 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया था। 18 जनवरी 2003 को बच्चन का 95 साल की उम्र में मुंबई में निधन हो गया। हरिवंश राय बच्चन के बेटे अमिताभ बच्चन और पोते अभिषेक बच्चन प्रसिद्ध अभिनेता हैं
1- मुसलमान और हिंदू दो हैं, एक मगर उनका प्याला
एक मगर उनका मदिरालय, एक मगर उनकी हाला
दोनों रहते एक न जब तक मंदिर-मस्जिद को जाता
बैर बढ़ाते मंदिर-मस्जिद, मेल कराती मधुशाला।
2- इतना भव्य देश भूतल पर यदि रहने को दास बना है,
तो भारतमाता ने जन्मा पूत नहीं, कृमि-कीट जना है।
3- आंधी के पहले देखा है कभी प्रकृति का निश्चल चेहरा?
इस निश्चलता के अंदर से ही भीषण तूफान उठेगा।
मुझको है विश्वास किसी दिन
घायल हिंदुस्तान उठेगा।
4- नहीं झुका करते जो दुनिया से करने को समझौता,
ऊँचे से ऊँचे सपनों को देते रहते जो न्योता,
दूर देखती जिनकी पैनी आँख भविष्यत का तम चीर;
मैं हूँ उनके साथ खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़।
5- विदेश-आधिपत्य देश से हटा,
कलंक भाल पर लगा हुआ कटा,
स्वराज की नहीं छिपी हुई छटा,
मगर सुराज में अभी विलंब है।
6- चलो उसे सलाम आज सब करें,
चलो उसे प्रणाम आज सब करें,
अजर सदा, इसे लिये हुए जिए,
अमर सदा, इसे लिये हुए मरे,
अजय ध्वजा हरी, सफ़ेद केसरी।
7- सुमति स्वदेश छोड़कर चली गई,
ब्रिटेन-कूटनीति से छलि गई,
अमीत, मीत; मीत, शत्रु-सा लगा,
अखंड देश खंड-खंड हो गया।
8- अगर अमीर वित्त में गड़े रहे,
अगर गरीब कीच में पड़े रहे,
हटा न दूर हम सके अभी नरक,
स्वदेश की स्वतंत्रता मरीचिका।
9- अनेक शत्रु देश पार हैं खड़े,
अनेक शत्रु देश मध्य हैं पड़े,
कुशल कभी नहीं बिना हुए कड़े,
सजग कृपाण हाथ में लिए रहो।
10- सुदूर शुभ्र स्वप्न सत्य आज है, स्वदेश आज पा गया स्वराज है,
महाकृत्घन हम बिसार दें अगर, कि मोल कौन आज का गया चुका।
गिरा कि गर्व देश का तना रहे, मरा कि मान देश का बना रहे,
जिसे खयाल था कि सिर कटे मगर, उसे न शत्रु पांव में सके झुका।