अमित शाह की पटना यात्रा और नीतीश कुमार का कोरोना आइसोलेशन, क्या हैं इसके सियासी मायने
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: July 31, 2022 02:38 PM2022-07-31T14:38:08+5:302022-07-31T14:46:30+5:30
बिहार की राजधानी पटना में भाजपा के के संयुक्त मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में गृहमंत्री अमित शाह के साथ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी मौजूद रहेंगे। माना जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर भाजपा का यह कार्यक्रम बहुत कुछ तय करने वाला रहेगा।
पटना: केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह आज बिहार की राजधानी पटना में भारतीय जनता पार्टी के संयुक्त मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक को संबोधित करने के लिए पहुंचे हैं। जिस समय गृहमंत्री अमित शाह राजधानी के जिस ज्ञान भवन में कार्यक्रम को संबोधित करेंगे, उससे कुछ ही दूरी पर बिहार के मुख्यमंत्री 7 सर्कुलर रोड स्थित बंगले पर कोरोना आइसोलेशन में हैं।
राजधानी पटना में भाजपा के इस भव्य कार्यक्रम में गृहमंत्री शाह के साथ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी मौजूद रहेंगे। माना जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर भाजपा का यह कार्यक्रम बहुत कुछ तय करने वाला रहेगा। दरअसल राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो बीते कुछ समय बिहार की सियासत में बहुत कुछ ठीक नहीं चल रहा है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद अमित शाह की यह पहली पटना यात्रा है।
इसलिए सियासी अटकलें लगाई जा रही हैं कि अमित शाह लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बिहार में अपनी व्यापक रणनीति को कारगर बनाने के लिए यह यात्रा कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि 40 लोकसभा सीटों वाले बिहार में कुल 39 सीटें जीतने वाली एनडीए का एक धड़ा भाजपा, जिसके पास इस समय कुल 17 सीटें हैं, वो इतने बड़े कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है लेकिन उसका सहयोगी दल जदयू इस आयोजन को इतनी ठंडी निगाहों से क्यों देख रहा है।
इसका कारण है बिहार में सत्ताधारी नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड और सहयोगी भाजपा के बीच चल रही भीतरखाने की खींचतान हैं। केंद्र की सियासत में आरसीपी सिंह को भेजकर पछता रहे नीतीश कुमार ने बीते अप्रैल में अपना आधिकारिक आवास 1 अणे मार्ग को रेनोवेशन के नाम पर खाली कर दिया और उसके बाद वो 7 सर्कुलर रोड स्थित अपने पुराने बंगले में शिफ्ट हो गये। नीतीश कुमार ने साल 2014 में जब जीतन राम मांझी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया था तो उसके बाद वो 1 अणे मार्ग वाले बंगले को छोड़कर इसी बंगले में शिफ्ट हुए थे।
नीतीश कुमार का यह बंगला बिहार की पूर्व मुख्यमंत्रीऔर राजद नेता राबड़ी देवी के 10 सर्कुलर बंगले के बेहद नजदीक है। नीतीश कुमार जैसे ही पुराने बंगले में पहुंचे बिहार की सियासत में इस बात के कयास लगने लगे कि उनके और राजद नेता तेजस्वी यादव के बीच एक नई तरह की मौन संभावना बनती हुई दिखाई दे रही है।
वहीं बिहार भाजपा प्रमुख संजय जायसवाल भी 'अग्निवीर' विरोध के कारण हुए हिंसा के कारण और भाजपा नेताओं पर हुए हमले के बाद मुखर होकर बयानबाजी कर रहे हैं। संजय जायसवाल का मानना है कि विधानसभा चुनाव के परिणामों को देखें तो भाजपा स्वाभाविक तौर पर बिहार में बड़े भाई की भूमिका है और इस बार के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा अपनी पूरी ताकत के साथ लड़ते हुए पुराने प्रदर्शन को और बेहतर करेगी।
बिहार भाजपा प्रमुख संजय जायसवाल के इस बयान के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। वहीं जदयू नेता भी गठबंधन के सवाल पर सीधे तौर कोई टिप्पणी नहीं करते हैं लेकिन इतना जरूर कह रहे हैं कि अभी तो गठबंधन चल ही रहा है।
नीतीश कुमार की नजर में आरसीपी सिंह की महत्वाकांक्षा को उजागर करके अपनी हैसियत को पार्टी में एक पायदान और उपर कर चुके जदयू अध्यक्ष ललन सिंह ने भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शाह और नड्डा के पटना आगमन पर कहा कि गठबंधन के लिहाज से अभी तक तो सब ठीक-ठाक है, लेकिन अगर भाजपा बिहार की दो सौ सीटों पर नहीं बल्कि 243 सीटों पर चुनाव की तैयारी कर रही है तो उससे हमें क्या फर्क पड़ता है।
ललन सिंह के अलावा जदयू के एक अन्य वरिष्ठ नेता उपेंद्र कुशवाहा भी सीधा आरोप लगा रहे हैं कि भाजपा बिहार में एनडीए के खिलाफ काम कर रही है। बीते दिनों जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल के उस दावे की कड़ी आलोचना की थी कि बिहार तेजी से राष्ट्र विरोधी आतंकवादी गतिविधियों का केंद्र बनता जा रहा है। कुशवाहा का कहना है कि भाजपा बिहार में गलत धारणा को जन्म देने का प्रयास कर रही है।
वहीं नीतीश कुमार भी महामहीम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ समारोह में न जाकर भाजपा के केंद्रीय नेताओं को स्पष्ट संदेश दे चुके हैं कि उनकी नाराजगी अब पूरे उफान पर है। यही कारण है कि नीतीश कुमार बिहार में जातीय जनगणना को लेकर एक्शन लेने के पूरे मुड में हैं, जिस पर उन्हें राजद का समर्थन है।
अब ऐसे में देखना है कि अमित शाह की बिहार यात्रा एनडीए को मजबूत बनाने की दिशा में काम आता है या फिर शाह के पटना सफर से नीतीश कुमार की राह राजद की ओर मुड़ जाती है।