यूपी: 10 सिखों को आतंकी बताकर फर्जी मुठभेड़ करने के आरोपी 34 पुलिसवालों को हाईकोर्ट ने जमानत देने से इनकार किया
By विशाल कुमार | Published: May 26, 2022 10:04 AM2022-05-26T10:04:24+5:302022-05-26T16:40:10+5:30
12 जुलाई 1991 को उत्तर प्रदेश पुलिस की पीलीभीत जिले की एक टीम ने 10 सिख युवकों को तीन भाग बांटकर आतंकवादी बताकर मार डाला था। पुलिसकर्मियों पर 10 युवकों की हत्या के आरोप में तीन अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
लखनऊ: एक महत्वपूर्ण आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 1991 में एक कथित फर्जी मुठभेड़ में आतंकवादी बताते हुए 10 सिखों की हत्या करने के आरोपी पीएसी के 34 पुलिसकर्मियों और हवलदारों को पिछले हफ्ते जमानत देने से इनकार कर दिया।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपी पुलिसकर्मी निर्दोष लोगों को आरोपी बताते हुए बर्बर और अमानवीय हत्या में शामिल थे।
बता दें कि, 12 जुलाई 1991 को उत्तर प्रदेश पुलिस की पीलीभीत जिले की एक टीम ने सुबह करीब 09-10 बजे पीलीभीत के पास यात्रियों/तीर्थयात्रियों से भरी एक बस को रोका।
उन्होंने तीर्थयात्रियों की बस से 10-11 सिख युवकों को उतारा और उन्हें अपनी नीली रंग की बस (पुलिस बस) में बिठाया। इसके साथ ही कुछ पुलिसकर्मी शेष यात्रियों / तीर्थयात्रियों (बच्चों, महिलाओं और बूढ़े) के साथ बस में बैठ गए।
इसके बाद शेष यात्री/तीर्थयात्री पुलिस कर्मियों के साथ दिन भर तीर्थयात्रियों की बस में इधर-उधर घूमते रहे और उसके बाद रात में पुलिसकर्मी पीलीभीत के एक गुरुद्वारे में बस को छोड़ गए।
जबकि तीर्थयात्रियों की बस से नीचे उतरे 10 सिख युवकों को पुलिसकर्मियों ने तीन भाग बांटकर आतंकवादी बताकर मार डाला। पुलिसकर्मियों पर 10 युवकों की हत्या के आरोप में तीन अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज की गई थी। 11वां बच्चा था, जिसके ठिकाने का पता नहीं चला और उसके माता-पिता को राज्य द्वारा मुआवजा दिया गया था।
शुरुआत में घटना की जांच जिला पीलीभीत की स्थानीय पुलिस द्वारा की गई थी और स्थानीय पुलिस द्वारा एक क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की गई थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने तथाकथित मुठभेड़ से संबंधित घटनाओं की जांच सीबीआई को सौंप दी थी।