2020 riots: शरजील इमाम, उमर खालिद, मोहम्मद सलीम खान, शिफा उर रहमान, अतहर खान, मीरान हैदर, अब्दुल खालिद सैफी, गुलफिशा फातिमा और शादाब अहमद को जमानत नहीं, वजह
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 2, 2025 16:16 IST2025-09-02T16:15:05+5:302025-09-02T16:16:09+5:30
नौ जुलाई को अपना आदेश सुरक्षित रखने के बाद मंगलवार को पीठ ने कहा, "सभी अपीलें खारिज की जाती हैं।"

Umar Khalid
नई दिल्लीः दिल्ली उच्च न्यायालय ने फरवरी 2020 के दंगों के पीछे की कथित साजिश से जुड़े यूएपीए मामले में उमर खालिद, शरजील इमाम और सात अन्य को जमानत देने से मंगलवार को इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शलिंदर कौर की पीठ ने शरजील इमाम, उमर खालिद, मोहम्मद सलीम खान, शिफा उर रहमान, अतहर खान, मीरान हैदर, अब्दुल खालिद सैफी और गुलफिशा फातिमा और शादाब अहमद की जमानत याचिकाओं पर फैसला सुनाया। नौ जुलाई को अपना आदेश सुरक्षित रखने के बाद मंगलवार को पीठ ने कहा, "सभी अपीलें खारिज की जाती हैं।"
STORY | 2020 riots: Delhi HC denies bail to Sharjeel Imam, Umar Khalid, 7 others
— Press Trust of India (@PTI_News) September 2, 2025
The Delhi High Court on Tuesday denied bail to activists Umar Khalid, Sharjeel Imam and seven others facing prosecution in a UAPA case linked to the alleged conspiracy behind the February 2020… pic.twitter.com/nErt1Y3gRL
विस्तृत आदेश का इंतज़ार है। आरोपी 2020 से जेल में हैं और उन्होंने अपनी जमानत याचिका खारिज करने के निचली अदालत के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय का रुख किया था। अभियोजन पक्ष ने याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा था कि यह स्वतःस्फूर्त दंगों का मामला नहीं है, बल्कि ऐसा मामला है, जहां ‘भयावह सोच’ के साथ ‘पहले साजिश रची गई’ और "सोच-समझकर’ ऐसा किया गया।
अभियोजन पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि यह वैश्विक स्तर पर भारत को बदनाम करने की साजिश थी और केवल लंबी कैद के आधार पर जमानत नहीं दी जा सकती। उन्होंने दलील दी, "अगर आप अपने देश के ख़िलाफ़ कुछ भी करते हैं, तो बेहतर होगा कि आप बरी होने तक जेल में रहें।"
हालांकि, इमाम के वकील ने दलील दी कि वह जगह, समय और खालिद समेत सह-आरोपियों से "पूरी तरह से अलग" थे। वकील ने कहा कि इमाम के भाषणों और व्हाट्सएप चैट में कभी भी किसी अशांति का आह्वान नहीं किया गया। खालिद, इमाम और अन्य पर फरवरी 2020 के दंगों का कथित तौर पर मुख्य षड्यंत्रकारी होने के आरोप में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था। दंगों में 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हुए थे।
संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क उठी थी। इमाम को इस मामले में 25 अगस्त, 2020 को गिरफ्तार किया गया था। निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए, इमाम, खालिद और अन्य ने अपनी लंबी कैद और जमानत पाने वाले अन्य सह-आरोपियों के साथ समानता का हवाला दिया।
इमाम, सैफी, फातिमा और अन्य की जमानत याचिकाएं 2022 से उच्च न्यायालय में लंबित थीं और समय-समय पर विभिन्न पीठों द्वारा उन पर सुनवाई की गई थी। दिल्ली पुलिस ने सभी आरोपियों की ज़मानत याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि फ़रवरी 2020 की सांप्रदायिक हिंसा एक साज़िश का मामला थी।
पुलिस ने आरोप लगाया कि खालिद, इमाम और सह-आरोपियों के भाषणों ने सीएए-एनआरसी, बाबरी मस्जिद, तीन तलाक और कश्मीर के संदर्भ में एक जैसे शब्दों से डर की भावना पैदा की। पुलिस ने दलील दी कि ऐसे "गंभीर" अपराधों से जुड़े मामले में, "जमानत नियम है और जेल अपवाद" के सिद्धांत का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। पुलिस ने निचली अदालत की कार्यवाही में देरी करने के "लिए अभियोजन पक्ष द्वारा प्रयास करने की बात" से भी इनकार किया और कहा कि शीघ्र सुनवाई का अधिकार "मुफ़्त पास" नहीं है।