निर्भया मामला: दोषी पहुंचे राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट के पास, फिर से टल सकती है फांसी

By भाषा | Published: January 29, 2020 07:38 PM2020-01-29T19:38:10+5:302020-01-29T20:15:08+5:30

याचिका में कहा गया है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर जन दबाव और जनता की राय के चलते अदालतें सभी समस्याओं के समाधान के रूप में फांसी की सजा सुना रही हैं। न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति आर भानुमती और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ सुधारात्मक याचिका की सुनवाई करेगी।

2012 Delhi gang-rape case: Mercy petition has been filed by convict, Vinay Sharma, before the President of India, says his lawyer AP Singh | निर्भया मामला: दोषी पहुंचे राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट के पास, फिर से टल सकती है फांसी

विनय कुमार शर्मा और मुकेश कुमार सिंह द्वारा दायर सुधारात्मक याचिकाएं शीर्ष न्यायालय पहले ही खारिज कर चुकी हैं।

Highlightsदोषी विनय के वकील एपी सिंह ने बताया कि उसने राष्ट्रपति के सामने दया याचिका फाइल की है।उल्लेखनीय है कि सुधारात्मक याचिका किसी दोषी के पास अदालत में अंतिम कानूनी उपाय है।

निर्भया सामूहिक दुष्कर्म एवं हत्या मामले में मृत्युदण्ड पाए चार दोषियों में शामिल एक ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय का रुख करते हुए सुधारात्मक याचिका दायर की, जिस पर शीर्ष न्यायालय बृहस्पतिवार को विचार करेगा। इस बीच दोषी विनय के वकील एपी सिंह ने बताया कि उसने राष्ट्रपति के सामने दया याचिका फाइल की है।

निर्भया मामले में मौत की सजा का सामना कर रहे चार दोषियों में से एक विनय कुमार शर्मा ने बुधवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के समक्ष दया याचिका दायर की। विनय की पैरवी कर रहे अधिवक्ता ए पी सिंह ने कहा कि उन्होंने उसकी ओर से राष्ट्रपति भवन में दया याचिका दायर की है और इस पर ‘प्राप्ति’ हासिल की है।

सिंह ने कहा, ‘‘मैंने राष्ट्रपति के समक्ष विनय की दया याचिका दायर की है। मैंने यह स्वयं जाकर सौंपी है।’’ उच्चतम न्यायालय विनय की सुधारात्मक याचिका पहले ही खारिज कर चुका है। विनय से पहले एक अन्य दोषी मुकेश कुमार सिंह ने दया याचिका दायर की थी जो राष्ट्रपति ने 17 जनवरी को खारिज कर दी थी। शीर्ष अदालत ने बुधवार को मुकेश कुमार सिंह की वह याचिका खारिज कर दी जिसमें उसने राष्ट्रपति द्वारा अपनी दया याचिका खारिज किए जाने को चुनौती दी थी।

याचिका में कहा गया है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर जन दबाव और जनता की राय के चलते अदालतें सभी समस्याओं के समाधान के रूप में फांसी की सजा सुना रही हैं। न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति आर भानुमती और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ सुधारात्मक याचिका की सुनवाई करेगी।

उल्लेखनीय है कि सुधारात्मक याचिका किसी दोषी के पास अदालत में अंतिम कानूनी उपाय है। दोषी अक्षय कुमार सिंह (31) ने कहा है कि अपराध की बर्बरता के आधार पर शीर्ष न्यायालय द्वारा उसके अनुरूप मौत की सजा के सुनाने से इस न्यायालय की और देश की अन्य फौजदारी अदालतों के फैसलों में असंगतता उजागर हुई हैं। इन अदालतों ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर जन दबाव और जनता की राय को देखते हुए सभी समस्याओं के समाधान के रूप में मौत की सजा सुनाई हैं।

मामले में दो अन्य दोषियों -- विनय कुमार शर्मा और मुकेश कुमार सिंह द्वारा दायर सुधारात्मक याचिकाएं शीर्ष न्यायालय पहले ही खारिज कर चुकी हैं। चौथे दोषी पवन गुप्ता ने सुधारात्मक याचिका दायर नहीं की है, उसके पास अब भी यह विकल्प है। याचिका में कहा गया है, ‘‘यह खोखला दावा है कि मौत की सजा एक विशेष तरह का प्रतिरोध पैदा करती है जो उम्र कैद की सजा से नहीं हो सकता है और उम्र कैद अपराधी को माफ करने जैसा है...यह प्रतिशोध और प्रतिकार को न्यायोचित ठहराने के सिवा कुछ नहीं है।’’

अक्षय ने अपनी याचिका में दावा किया है कि बलात्कार एवं हत्या के करीब 17 मामलों में शीर्ष न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मौत की सजा में बदलाव कर उसे हल्का किया है। इसमें कहा गया है कि इस तरह के एक मामले में एक नाबालिग से सामूहिक बलात्कार एवं हत्या के मामले में मौत की सजा को इस न्यायालय ने एक पुनर्विचार फैसले में घटा कर 20 साल के सश्रम कारावास में तब्दील कर दिया। यह इस आधार पर किया गया कि दोषी की कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं थी और उसके सुधार की अब भी गुंजाइश है।

अक्षय ने न्यायालय से जानना चाहा है कि यदि याचिकाकर्ता को जीवित छोड़ दिया जाता है और उसे जेल में रहते हुए अपने परिवार के लिए मामूली आय अर्जित करने की इजाजत दी जाती है तो क्या वह अपनी कोठरी के अंदर समाज के लिए क्या खतरा पेश करेगा।

याचिकाकर्ता ने उम्र कैद की सजा काटने वाले ऐसे कई दोषियों को देखा है जो गरीब थे लेकिन गरीबी में जी रहे अपने परिवारों के लिए कम से कम मामूली रकम तो भेज सकें। याचिकाकर्ता ने इस न्यायालय से पूछा है कि उसकी जीवनलीला समाप्त करने के बजाय उसकी उम्रकैद की सजा से क्यों सामूहिक चेतना संतुष्ट नहीं होगी। न्यायमूर्ति जे एस वर्मा कमेटी की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए उसने कहा कि इसने बलात्कार एवं हत्या के अपराधों के लिए मौत की सजा के खिलाफ पैरोकारी की है।

अपनी सामाजिक आर्थिक दशा का जिक्र करते हुए अक्षय ने कहा कि यह एक ऐसी परिस्थिति है जिसपर न्यायालय को सजा सुनाते समय विचार करने की जरूरत थी लेकिन इसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया। उसने सुधार की गुंजाइश की संभावना और आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं होने का भी जिक्र किया। इससे पहले दिन में अक्षय के वकील एपी सिंह ने कहा कि उन्होंने बुधवार को सुधारात्मक याचिका दायर की तथा उच्चतम न्यायालय की रजिस्ट्री ने याचिका के साथ कुछ और दस्तावेज मांगे हैं।

सिंह ने बताया, ‘‘मैंने आज सुधारात्मक याचिका के साथ उच्चतम न्यायालय की रजिस्ट्री का रुख किया। रजिस्ट्री ने मुझसे याचिका के साथ कुछ अतिरिक्त दस्तावेज मांगे हैं और मैं औपचारिकताओं को पूरा करने की प्रक्रिया में हूं।’’ निचली अदालत ने सभी चार दोषियों -- मुकेश (32), पवन गुप्ता (25), विनय कुमार शर्मा (26) और अक्षय को एक फरवरी को सुबह छह बजे फांसी दिए जाने का वारंट जारी किया है। 

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