Allahabad HC: 1996 का बम ब्लास्ट मामला, 18 लोगों की गई थी जान, बिना सबूतों के हाईकोर्ट ने आरोपी मोहम्मद इलियास को किया बरी

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: November 19, 2025 10:03 IST2025-11-19T10:02:15+5:302025-11-19T10:03:27+5:30

Allahabad HC: तसलीम को बरी किए जाने के खिलाफ सरकार की ओर से कोई अपील दाखिल नहीं की गई थी

1996 bomb blast case 18 people died Allahabad High Court acquits accused Mohammad Ilyas without evidence | Allahabad HC: 1996 का बम ब्लास्ट मामला, 18 लोगों की गई थी जान, बिना सबूतों के हाईकोर्ट ने आरोपी मोहम्मद इलियास को किया बरी

Allahabad HC: 1996 का बम ब्लास्ट मामला, 18 लोगों की गई थी जान, बिना सबूतों के हाईकोर्ट ने आरोपी मोहम्मद इलियास को किया बरी

Allahabad HC: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1996 के मोदीनगर-गाजियाबाद बस बम विस्फोट मामले में मोहम्मद इलियास की दोषसिद्धि इस आधार पर रद्द कर दी है कि अभियोजन पक्ष अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप सिद्ध करने में विफल रहा। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने इलियास द्वारा दायर अपील स्वीकार कर ली और उसे बरी कर दिया।

अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष अपीलकर्ता के खिलाफ आरोपों को सिद्ध करने में “बुरी तरह विफल” रहा और पुलिस द्वारा दर्ज कथित स्वीकारोक्ति बयान, साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 के तहत अस्वीकार्य है। अदालत ने 10 नवंबर के अपने आदेश में कहा कि वह ‘‘भारी मन से’’ बरी करने का आदेश पारित कर रही है क्योंकि यह मामला ऐसी प्रवृत्ति का है कि उसने समाज की अंतरात्मा को झकझोर दिया था।

इस “आतंकी हमले” में 18 लोगों की जान गई थीं। उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘अभियोजन पक्ष ये आरोप साबित करने में बुरी तरह विफल रहा कि अपीलकर्ता ने बस में बम विस्फोट करने के लिए सह आरोपियों के साथ मिलकर एक बम रखने का षड़यंत्र रचा। इसलिए निचली अदालत में दोषसिद्धि के तथ्य और अपीलकर्ता को दी गई सजा रद्द किए जाने योग्य है।’’

अदालत ने कहा, ‘‘निचली अदालत ने पुलिस की उपस्थिति में दर्ज अपीलकर्ता के कथित कबूलनामे के ऑडियो कैसेट पर भरोसा करते हुए भारी कानूनी त्रुटि की। यदि इस साक्ष्य को अलग कर दिया जाए तो आरोप के समर्थन में अपीलकर्ता के खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं है। वहीं अपीलकर्ता और सह आरोपियों की न्यायेतर स्वीकारोक्ति के गवाह सुनवाई के दौरान मुकर गए और अभियोजन के मामले में समर्थन नहीं किया।’’

उल्लेखनीय है कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 यह व्यवस्था देती है कि एक पुलिस अधिकारी के समक्ष कोई भी स्वीकारोक्ति, किसी भी अपराध के आरोपी के खिलाफ साक्ष्य नहीं माना जाएगा। दिल्ली से 27 अप्रैल 1996 को दोपहर 3:55 बजे एक बस निकली जिसमें 53 यात्री सवार थे और बाद में और 14 यात्री बस में सवार हुए।

शाम करीब पांच बजे जैसे ही बस मोदीनगर पुलिस थाना (गाजियाबाद) से आगे निकली, बस के अगले हिस्से में एक जबरदस्त बम विस्फोट हुआ जिसमें 10 व्यक्तियों की मौके पर ही मौत हो गई और करीब 48 यात्री घायल हो गए। फॉरेंसिक जांच में पुष्टि हुई कि कार्बन मिश्रित आरडीएक्स बस चालक की सीट के नीचे रखा गया था और यह विस्फोट एक रिमोट स्विच के जरिए किया गया था।

अभियोजन पक्ष का आरोप था कि यह हमला पाकिस्तानी नागरिक और हरकत-उल-अंसार के कथित जिला कमांडर अब्दुल मतीन उर्फ इकबाल द्वारा मोहम्मद इलियास (अपीलकर्ता) और तसलीम नाम के व्यक्ति के साथ षड़यंत्र कर किया गया। ऐसा आरोप है कि इलियास को जम्मू कश्मीर में कट्टरपंथी बनाया गया था।

निचली अदालत ने 2013 में सह आरोपी तसलीम को बरी कर दिया था, लेकिन इलियास और अब्दुल मतीन को भारतीय दंड संहिता और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी करार दिया था तथा दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। तसलीम को बरी किए जाने के खिलाफ सरकार की ओर से कोई अपील दाखिल नहीं की गई थी और इस बात की भी कोई सूचना नहीं है कि क्या अब्दुल मतीन ने कोई अपील दाखिल की या नहीं। 

Web Title: 1996 bomb blast case 18 people died Allahabad High Court acquits accused Mohammad Ilyas without evidence

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