1984 सिख विरोधी दंगे: पीड़ितों को मुआवजा नहीं दिए जाने पर मोदी और राज्य सरकार को कोर्ट ने किया तलब
By भाषा | Published: November 15, 2018 07:42 PM2018-11-15T19:42:50+5:302018-11-15T19:42:50+5:30
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि 1984 के दंगों में प्यारा सिंह की पत्नी और बेटी एवं हरपाल सिंह के पिता की नृशंस हत्या कर दी गई थी। इस संबंध में प्राथमिकी भी दर्ज की गयी थी और प्रत्येक मृतक के लिए 20,000 रुपये का अंतरिम मुआवजा दिया गया।
वर्ष 1984 के सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों को मुआवजा नहीं दिए जाने के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को केंद्र और राज्य सरकार से एक महीने के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा। न्यायमूर्ति भारती सप्रू और न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की पीठ ने पीलीभीत के प्यारा सिंह और बरेली के हरपाल सिंह द्वारा दायर रिट याचिकाओं पर यह आदेश पारित किया।
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि 1984 के दंगों में प्यारा सिंह की पत्नी और बेटी एवं हरपाल सिंह के पिता की नृशंस हत्या कर दी गई थी। इस संबंध में प्राथमिकी भी दर्ज की गयी थी और प्रत्येक मृतक के लिए 20,000 रुपये का अंतरिम मुआवजा दिया गया।
हालांकि, सरकार द्वारा पुनर्वास नीति के तहत घोषित अंतिम मुआवजे का अभी तक भुगतान नहीं किया गया है।
याचिकाकर्ताओं के वकील दिनेश राय ने कहा कि केंद्र सरकार जनवरी, 2006 में पुनर्वास नीति लेकर आई जिसके तहत मृतक व्यक्ति के आश्रित को 3.5 लाख रुपये और घायलों को 1.25 लाख रुपये मुआवजा दिए जाने का निर्णय किया गया।
फरवरी, 2015 में इस मुआवजे की राशि बढ़ाकर 8.5 लाख रुपये कर दी गई। अदालत को बताया गया कि करीब 34 साल बीत गए हैं, लेकिन इन याचिकाकर्ताओं को अभी तक अंतिम मुआवजा नहीं दिया गया है।