13 December: भारत की संसद पर जब आतंकियों ने किया था हमला, जानिए क्या हुआ था उस दिन और कैसे मारे गये सभी
By विनीत कुमार | Published: December 13, 2019 07:59 AM2019-12-13T07:59:56+5:302019-12-13T07:59:56+5:30
संसद पर हमला: इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, पांचों आतंकी कार से बाहर आ गये और दनादन फायरिंग शुरू कर दी। गोलियों की आवाज सुनते ही परिसर में मौजूद सभी सुरक्षा अधिकारी हरकत में आ गये
भारत के इतिहास में 13 दिसंबर, 2001 किसी काले दिन की तरह है जब कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में सेंध लगाकर आतंकियों ने देश के लोकतंत्र के मंदिर को निशाना बनाया। इस घटना को अब 18 साल होने जा रहे हैं।
क्या हुआ था 13 दिसंबर, 2001 को
13 दिसंबर, 2001 की सुबह पांच आतंकी संसद परिसर में करीब 11.40 बजे दाखिल हुए। वे एक एंबेसडर कार में सवार थे। इस पर रेड लाइट लगी थी और अगले हिस्से पर गृह मंत्रालयल का फर्जी स्टीकर चिपका हुआ था। कार जैसे ही गेट नंबर-12 की ओर बढ़ी, संसद की सुरक्षा में लगे एक अधिकारी को शक हुआ और उसने कार को रूकने का इशारा किया। अधिकारी ने कार को पीछे करने के लिए कहा। इसी दौरान कार ने तब के उप-राष्ट्रपति कृष्ण कांत की गाड़ी को टक्कर मार दी।
इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, पांचों आतंकी कार से बाहर आ गये और दनादन फायरिंग शुरू कर दी। गोलियों की आवाज सुनते ही परिसर में मौजूद सभी सुरक्षा अधिकारी हरकत में आ गये और सभी गेट को बंद कर दिया गया। करीब आधे घंटे तक गोलीबारी का दौर जारी रहा और सुरक्षाबलों ने आखिरकार पांचों आतंकियों को मार गिराया। इस हमले में आठ सुरक्षाकर्मी और एक संसद परिसर में कार्यरत एक माली भी शहीद हो गया। करीब 15 लोग घायल हुए। उस समय करीब 100 सांसद संसद में मौजूद थे लेकिन सभी सुरक्षित रहे।
पाकिस्तान समर्थित लश्कर और जैश ने दिया था घटना को अंजाम
घटना की जांच के बाद उस समय के गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने लोकसभा में बयान दिया, 'ये साफ है कि संसद पर हमले की घटना को पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन लशकर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद ने अंजाम दिया। इन संगठनों को आईएसआई से समर्थन मिलता है।'
आडवाणी ने साथ ही कहा, 'अभी तक जांच से ये बात सामने आई है कि संसद पर हमला करने वाले सभी आतंकी पाकिस्तानी थे। उन्हें मार गिराया गया और भारत में उनके सहयोगियों को भी पकड़ लिया गया है।'
अफजल गुरू को दी गई फांसी
पुलिस ने इस घटना के खिलाफ 13 दिसंबर को एफआईआर दर्ज किया। कुछ ही दिन के अंदर दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने सेलफोन रिकॉर्ड और घटना में इस्तेमाल कार के आधार पर चार लोगों को पकड़ा। ये लोग थे- मोहम्मद अफजल गुरू, जम्मू-कश्मीर लिबर्शन फ्रंट (जेकेएलेफ) के एक पूर्व चरमपंथ और बाद में सरेंडर कर चुके शख्स के एक रिश्तेदार शौकत हसन गुरू, शौकत की पत्नी अफसान गुरू और दिल्ली यूनिवर्सिटी में अरब भाषा के प्राध्यापक एसएआर गिलानी।
बहरहाल, ट्रायल कोर्ट ने अफसान को बरी कर दिया। इसके अलावा गिलानी, शौकत और अफजल को मृत्युदंड दिया गया। बाद में हालांकि, 2003 में गिलानी को भी बरी किया गया। वहीं, 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने अफजल को मौत की सजा बरकरार रखी। शौकत की मौत की सजा को 10 साल की सश्रम कारावास में बदल दिया गया।
अफजल गुरू की पत्नी ने 2006 में दयायाचिका दायर की जिसे सुप्रीम कोर्ट की ओर से ठुकरा दिया गया। बाद में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी न भी अफजल की दया याचिका को ठुकरा दिया और फिर 9 फरवरी, 2013 को उसे फांसी दे दी गई। सरकार ने अफजल के शव को उसके परिवार को नहीं देने का फैसला किया और आखिरकार उसे तिहाड़ जेल में दफना दिया गया।