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वर्ल्ड थैलेसीमिया डे: लक्षण, कारण, इलाज और बचाव

By उस्मान | Updated: May 8, 2018 08:35 IST

यह एक जेनेटिक डिसऑर्डर है और यह माता-पिता में से एक के या दोनों के जींस में गड़बड़ी होने के कारण होता है।

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थैलेसीमिया एक जेनेटिक रोग है जो बच्चों को माता-पिता से मिलता है। इस रोग में शरीर की हीमोग्लोबिन उत्पादन प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है जिसके चलते खून की कमी हो जाती है। इस रोग में शरीर में रेड ब्लड सेल्स यानि लाल रक्त कण नहीं बन पाते हैं। इससे पीड़ित बच्चे को बार-बार खून चढ़ाना पड़ता है और ऐसा नहीं करने से उसकी मौत हो सकती है। जर्नल फिजिशियन डॉक्टर अजय लेखी आपको थैलेसीमिया के कारण, लक्षण, इलाज और बचाव की जानकारी दे रहे हैं। 

थैलेसीमिया को ऐसे समझें

सामान्य रूप से शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र करीब 120 दिनों की होती है, परंतु थैलेसीमिया के कारण इनकी उम्र सिमटकर मात्र 20 दिनों की हो जाती है। इसका सीधा प्रभाव शरीर में स्थित हीमोग्लोबीन पर पड़ता है। हीमोग्लोबीन की मात्रा कम हो जाने से शरीर दुर्बल हो जाता है तथा अशक्त होकर हमेशा किसी न किसी बीमारी से ग्रसित रहने लगता है। 

थैलेसीमिया होने का कारण?

यह एक जेनेटिक डिसऑर्डर है और यह माता-पिता में से एक के या दोनों के जींस में गड़बड़ी होने के कारण होता है। खून में हीमोग्लोबीन दो तरह के प्रोटीन से बनता है। यह दो प्रोटीन अल्फा और बीटा हैं। इन दोनों में से किसी प्रोटीन के निर्माण वाले जींस में गड़बड़ी होने पर इस रोग का खतरा होता है। 

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थैलेसीमिया के प्रकार

1) माइनर थैलेसीमिया- यह रोग उन बच्चों को होता है जिनके माता या पिता में से किसी एक के जीन में गड़बड़ी होती है। इससे पीड़ित बच्चों में लक्षण कम नजर आते हैं। कुछ रोगियों में खून की कमी या एनीमिया इसके लक्षण हो सकते हैं। 

2) मेजर थैलेसीमिया- यह रोग उन बच्चों को होता है जिनके माता-पिता दोनों के जीन में गड़बड़ी होती है। इसके लक्षणों में नाखून और जीभ पीले पड़ जाना, बच्चे के गाल और जबड़े में असमानता, बच्चों की ग्रोथ रुकना, चेहरा सूखना, वजन ना बढ़ना, कमजोरी और हमेशा बीमार रहना शामिल हैं। 

थैलेसीमिया का गंभीर परिणाम

थैलेसीमिया प्रभावित रोगी की अस्थि मज्जा (bone marrow) रक्त की कमी की पूर्ति करने की कोशिश में फैलने लगती है। जिससे सिर व चेहरे की हड्डियां मोटी और चौड़ी हो जाती है और ऊपर के दांत बाहर की ओर निकल आते हैं। वहीं लीवर एवं प्लीहा (spleen) आकार में काफी बड़े हो जाते हैं।  

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थैलेसीमिया रोग का इलाज बोन मेरो ट्रांसप्लांट

डॉक्टर के अनुसार, थैलेसीमिया का एकमात्र इलाज बोन मेरो ट्रांसप्लांट है। बोन मैरो हड्डियों के अंदर पाया जाता है। यह हड्डियों के अंदर भरा हुआ एक मुलायम टिशू होता है। जहां से रक्त का उत्पादन होता है। एक व्यस्क के शरीर में बोन मैरो का भार लगभग 4 फीसदी समाहित रहता है। यानी कि लगभग 2.6 किलोग्राम। बोन मैरो रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करने वाली स्टेम कोशिकाओं से भरी रहती है जो लाल, सफेद कोशिकाओं और प्लेटलेट्स को विकसित करती है। सफेद रक्त कोशिकाएं प्रतिरक्षा की प्रणाली संक्रमण से लड़ने में मदद करते हैं जबकि लाल रक्त कोशिकाएं हमारे पूरे शरीर को ऑक्सीजन प्रदान करती है। प्लेटलेट्स रिसाव को रोकने के लिए रक्त का थक्का बनाते हैं। बोन मैरो स्टेम कोशिकाओं को शरीर की जरूरत के अनुसार ही अलग अलग प्रकार की कोशिकाओं को विकसित करते हैं।

थैलेसीमिया रोग की रोकथाम

बच्चा थैलेसीमिया रोग के साथ पैदा ही न हो, इसके लिए शादी से पूर्व ही लड़के और लड़की की खून की जांच अनिवार्य कर देनी चाहिए। यदि शादी हो भी गयी है तो गर्भावस्था के 8 से 11 सप्ताह में ही डीएनए जांच करा लेनी चाहिए। माइनर थैलेसीमिया से ग्रस्थ इंसान सामान्य जीवन जी पाता है और उसे आभास तक नहीं होता कि उसके खून में कोई दोष है। तो यदि शादी के पहले ही पति-पत्नी के खून की जांच हो जाए तो कफी हद तक इस आनुवांशिक रोग से बच्चों को बचाया जा सकता है। 

(फोटो- पिक्साबे) 

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