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जीका से मुकाबले के लिए छह नए प्रतिरक्षी विकसित, इलाज में आ सकते हैं काम

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: December 1, 2018 13:20 IST

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शोधकर्ताओं ने जीका विषाणु के छह प्रतिरक्षी (एंटीबॉडी) विकसित किए हैं जिससे इस मच्छर जनित रोग का पता लगाने और उसका इलाज करने में मदद मिल सकती है. दुनिया में 15 लाख से ज्यादा लोग जीका से संक्रमित हो चुके हैं.

भारतीय मूल के शोधकर्ता और अमेरिका की लोयोला यूनिवर्सिटी के रवि दुरवासुला ने बताया कि इन प्रतिरक्षियों की दोहरी उपयोगिता हो सकती है. इससे जीका विषाणु का पता भी लगाया जा सकता है और बाद में इसे जीका विषाणु के संक्रमण के इलाज के लिहाज से भी विकसित किया जा सकता है.

जीका वायरस फैलने के कारण

जीका मुख्यत: मच्छरों द्वारा फैलता है. इससे संक्रमित ज्यादातर लोगों को किसी लक्षण का अनुभव नहीं होता या फिर लाल चकत्ते, हल्के बुखार और आंखें लाल होने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. बहरहाल, लोयोला यूनिवर्सिटी में सहायक शोध प्रोफेसर आदिनारायण कुनमनेनी ने बताया कि गर्भावस्था के दौरान संक्रमण से गर्भपात, गर्भ में ही मृत्यु और जन्म संबंधी गंभीर विकार पैदा हो सकते हैं.

यह भी पढ़ें: कैंसर के इलाज में बेहतर साबित हो सकती है नई नैनो तकनीक : अध्ययन

'प्लॉस वन' नाम की पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के वरिष्ठ लेखक कुनमनेनी ने बताया कि इस रोग के इलाज के लिए कोई प्रभावी टीका या दवा नहीं है. दुरवासुला ने बताया, ''हाल में जीका विषाणु का फैलाव एक स्वास्थ्य संकट है जिसके वैश्विक प्रभाव हो सकते हैं.'' जीका विषाणु से संक्रमण का पता लगाने और उसका इलाज करने में प्रतिरक्षी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

प्रतिरक्षी 'वाई' आकार का प्रोटीन है जिसका निर्माण प्रतिरोधी प्रणाली द्वारा होता है. जब कोई विषाणु, जीवाणु या अन्य पैथोजिन शरीर को अपनी चपेट में लेते हैं तो प्रतिरक्षी (एंटीबॉडी) एंटीजेन से मिलकर ऐसी स्थिति पैदा करते हैं कि प्रतिरोधक प्रणाली रोग के मूल कारण को नष्ट कर देती है. 'राइबोसोम डिस्प्ले' नाम की प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करके शोधकर्ताओं ने छह सिंथेटिक प्रतिरक्षी विकसित किए हैं जो जीका विषाणु से निपटने में सक्षम बताए जा रहे हैं.

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