भारतीय शोधकर्ता की टीम ने कोरोना की जांच के लिये किया सस्ता विद्युतरहित सेंट्रीफ्यूज का निर्माण

By भाषा | Published: July 4, 2020 06:21 PM2020-07-04T18:21:40+5:302020-07-04T18:21:40+5:30

भारतीय वैज्ञानिक की एक टीम ने कोरोना की जांच के लिए विद्युत रहित सेंट्रीफ्यूज का निर्माण किया है। इस खोज से लाखों को लोगों को फायदा हो सकता है।

Indian researchers team built cheap uninterrupted centrifuges for test corona | भारतीय शोधकर्ता की टीम ने कोरोना की जांच के लिये किया सस्ता विद्युतरहित सेंट्रीफ्यूज का निर्माण

भारतीय शोधकर्ता की टीम ने कोरोना की जांच के लिये किया सस्ता विद्युतरहित सेंट्रीफ्यूज का निर्माण

Highlightsभारतीय वैज्ञानिक के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने एक सस्ता, विद्युत रहित सेंट्रीफ्यूज विकसित किया है।नए कोरोना वायरस की जांच के लिये किसी मरीज की लार के लिये गए नमूनों से घटकों को अलग कर सकता है।

न्यूयॉर्क: एक भारतीय वैज्ञानिक के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने एक सस्ता, विद्युत रहित सेंट्रीफ्यूज विकसित किया है जो नए कोरोना वायरस की जांच के लिये किसी मरीज की लार के लिये गए नमूनों से घटकों को अलग कर सकता है। इस खोज से दुनिया के गरीब क्षेत्रों में कोविड-19 के निदान की पहुंच बढ़ सकती है। अमेरिका के स्टेनफोर्ड विश्वविद्याल के मनु प्रकाश समेत वैज्ञानिकों का कहना है कि ‘हैंडीफ्यूज’ उपकरण ट्यूब में रखे नमूनों को बेहद तेज गति से घुमाता है जो मरीज के लार के नमूने से वायरस के जीनोम (जीन के समूह) को अलग करने के लिये पर्याप्त है वह भी बिना विद्युत के।

मेडरिक्सिव नाम के डिजिटल मंच पर प्रकाशित इस अध्ययन की अभी विशेषज्ञों द्वारा समीक्षा नहीं हुई है लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि सस्ते सेंट्रीफ्यूज को पहले से उपलब्ध घटकों का उपयोग करके प्रति इकाई पांच डॉलर से भी कम की लागत में तैयार किया जा सकता है। सेंट्रीफ्यूज या अपकेंद्रित्र दरअसल ऐसे उपकरण को कहते हैं जिसमें अपकेंद्री बल के इस्तेमाल से विभिन्न घनत्व के पदार्थों को अलग-अलग किया जाता है।

इसी के इस्तेमाल से लार के नमूनों से कोविड-19 के जीनोम को अलग किया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने कहा कि यह तकनीक नैदानिक जांच से जुड़े लोगों और वैज्ञानिकों को एक त्वरित और सस्ती जांच की तकनीक उपलब्ध कराती है जिसे ‘एलएएमपी’ जांच कहते हैं और इससे मरीज की लार के नमूनों में कोरोना वायरस के जीनोम की मौजूदगी की पहचान की जा सकती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक ‘एलएएमपी’ व्यवस्था सरल है, इसमें किसी विशेष उपकरण की जरूरत नहीं है, त्वरित है (नमूना लेने से नतीजे आने तक में करीब एक घंटे लगते हैं) और सस्ती है।

जांच में जहां यह फायदे हैं वहीं वैज्ञानिकों ने कहा कि लार के नमूनों में वायरस के जीनोम की पहचान के नैदानिक तरीकों के कारण नतीजों में विभिन्नता हो सकती है। उन्होंने कहा कि ऐसा लार युक्त पदार्थ की वजह से है जो नैदानिक अभिकर्मकों को बाधित कर सकते हैं। वैज्ञानिकों ने अध्ययन में लिखा, “निष्क्रिय किये गए नमूनों से प्रतिक्रिया अवरोधकों को अलग करने के लिये अपकेंद्रित्र (सेंट्रीफ्यूगेशन) को एक विश्वसनीय एलएएमपी प्रवर्धन के तरीके के तौर पर दर्शाया गया है।

” उन्होंने कहा कि कुछ मिनटों तक 2000 चक्कर प्रति मिनट (आरपीएम) की आवश्यक गति सुरक्षित तरीके से प्राप्त करने में सक्षम सेंट्रीफ्यूज में सैकड़ों डॉलर की लागत आती है और उसमें विद्युत आपूर्ति की भी आवश्यकता पड़ती है। स्टेनफोड विश्वविद्यालय में जैवआभियांत्रिकी के प्रोफेसर प्रकाश ने कहा कि हैंडीफ्यूज से इस कमी से पार पाया जा सकता है। उनकी प्रयोगशाला पूर्व में सस्ता ‘‘ओरीगामी सुक्ष्मदर्शी’’ बना चुकी है जिसे ‘फोल्डस्कोप’ नाम दिया गया। वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में लिखा, “उपयोगकर्ता सेंट्रीफ्यूज की धुरी से जुड़े एक छोटे मुक्त चक्र को घुमाने के लिये हैंडल पर बार-बार दबाव देता है।

” उन्होंने कहा कि तय समय के बाद पर्याप्त ट्यूब में रखे नमूने पर पर्याप्त अपकेंद्र बल लगता है जिससे एक अलग तरल परत मिलती है जो रसायनों से मुक्त होती है जिसमें कोरोना वायरस के जीन तत्व, उसके आरएनए प्रदर्शित हो सकते हैं। शोधकर्ताओं ने लिखा, “सतह पर आ जाने वाले तत्वों का इस्तेमाल तब सार्स-सीओवी-2 की पहचान के लिये एलएएमपी विधि से किया जा सकता है या अन्य विषाणुओं की पहचान के लिये ‘राबे’ या ‘सेप्को’ जांच की जा सकती है।” अध्ययन के मुताबिक, हैंडीफ्यूज-एलएएमपी जांच हार्वर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक ब्रायन राबे और कांस्टेंस सेप्को द्वारा विकसित नैदानिक विधि के तरीकों के इस्तेमाल के आधार पर काम करती है। 

Web Title: Indian researchers team built cheap uninterrupted centrifuges for test corona

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