एसिड अटैक पीड़िता को अस्पताल ने दान में दी स्किन, जानिए कैसे डेड डोनर से लिया गया स्किन दूसरों के दाग को मिटाता है
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: May 4, 2022 04:02 PM2022-05-04T16:02:51+5:302022-05-04T16:18:05+5:30
बेंगलुरु में एसिड अटैक पीड़िता के जले हुए स्किन को रिप्लेस करने के लिए सेंट जॉन्स अस्पताल ने विक्टोरिया अस्पताल के स्किन बैंक से संपर्क करके स्कीन मांगा है।
बेंगलुरु: एसिड अटैक पीड़िता के जले हुए स्किन को रिप्लेस करने के लिए सेंट जॉन्स अस्पताल ने विक्टोरिया अस्पताल के स्किन बैंक से संपर्क करके स्कीन मांगा है।
सेंट जॉन्स अस्पताल के प्लास्टिक सर्जनों ने बताया कि 24 साल की एसिड अटैक पीड़िता की स्किन हमले में बुरी तरह से नष्ट हो गई है, इसलिए हमें पीड़िता के शरीर पर ग्राफ्टिंग करने के लिए नई स्किन चाहिए था, जिसके लिए हमने विक्टोरिया अस्पताल से संपर्क किया।
मालूम हो कि विक्टोरिया अस्पताल कर्नाटक का दूसरा ऐसा अस्पताल है, जहां पर स्किन बैंक है और उसे जरूरमंदों को ग्राफ्टिंग के लिए दिया जाता है।
समाचार वेबसाइट 'द न्यू इंडियन एक्सप्रेस' के मुताबिक करीब 6 साल पहले विक्टोरिया अस्पताल ने 139 मृतकों के परिजनों के सहयोग से मुहिम की शुरूआत की थी और इस तरह से विक्टोरिया अस्पताल में स्किन डोनेशन सेंटर खुला। लेकिन अकेले विक्टोरिया अस्पताल में टर्शिरी केयर बर्न्स यूनिट है और उसमें सेकेंड और थर्ड-डिग्री बर्न से पीड़ित पांच से छह मरीज औसतन हर वक्त होते हैं।
इसलिए अस्पताल में स्किन डोनेशन की डिमांड और सप्लाई के बीच भारी गैप बना रहता है क्योंकि अस्पताल अपने यहां एडमिट पेशेंट के लिए स्किन बैंक से मदद लेता रहता है। इस कारण अन्य अस्पतालों से आने वाली डिमांड के कारण उसे भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
मौजूदा समय में देशभर में कुल 16 स्किन बैंक हैं और कर्नाटक में दो हैं, जिनमें से एक विक्टोरिया अस्पताल में और दूसरा बेलागवी में केएलईएस में है। जैसा कि प्रोफेसर, हेड ऑफ यूनिट, प्लास्टिक सर्जरी विभाग, डॉ स्मिता एस सेगू के अनुसार है।
विक्टोरिया अस्पताल की प्लास्टिक सर्जरी विभाग की हेड डॉक्टर स्मिता एस सेगू ने बताया कि स्किन बैंक डेड डोनर से स्किन लेता है और उसे प्रिजर्व करते रखा जाता है।
डॉक्टर स्मिता ने बताया कि 18 साल या उससे उपर के ऐसे स्वस्थ मृत दाताओं से स्किन ली जाती है, जिनकी मौत प्राकृतिक कारणों से हुई हो। मृत डोनर का परिवार हमसे संपर्क करता है और हमारी स्पेशल टीम मौत के छह घंटे के भीतर अस्पताल में या घर पर या मोर्चरी में डेड डोनर से स्किन ले लेते हैं।
उन्होंने आगे बताया कि डोनर से स्किन लेने के बाद टीम स्किन को बैंक में जमा करा देती है, जहां इसे पिजर्व करके फ्रीजर में रख दिया जाता है।
इस पूरे मामले में सबसे आश्चर्यजनकर बात डॉक्टर स्मिता ने बताई वो यह है कि स्किन ग्राफ्टिंग के लिए किसी भी तरह के मिलान की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन सीरोलॉजी की जांच के लिए डोनर के ब्लड का सैंपल लिया जाता है।
मालूम हो कि देश में हर साल लगभग 80 लाख से अधिक बर्न के मामले अलग-अलग अस्पतालों में रजिस्टर्ड होते हैं। जिसमें लगभग 1.4 लाख लोगों की मौतें हो जाती है और 4 लाख दिव्यांगता के शिकार हो जाते हैं।
आकडो़ं के मुताबिक इन 80 लाख मामलों में लगभग 70 फीसदी मामले रसोई गैस की आग या कार्यस्थल से संबंधित दुर्घटनाओं के अलावा आत्महत्या और हत्या के कारण होते हैं।