अश्वगंधा, शतावरी, कौंच, मखाना, शिलाजीत आदि को आयुर्वेद में यौन क्षमता बढ़ाने वाली जड़ी बूटीयों की श्रेणी में रखा जाता है। बताया जाता है कि इनका नियमित रूप से सही मात्रा में सेवन करने से वियाग्रा जैसी अंग्रेजी दवाओं की जरूरत नहीं पड़ती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पिछले कुछ सालों से पुरुषों में ऊर्जा और यौन उत्तेजना बढ़ाने के लिए खूब इस्तेमाल हो रहा है। इसका नाम है 'यारशागुंबा' (Caterpillar fungus) है।
यारशागुंबा को इसे हिमालय वियाग्रा के नाम से भी जाना जाता है। अपने शक्तिशाली गुणों के कारण इसनें यौन क्षमता बढ़ाने वाली जड़ी बूटियों की श्रेणी में खास पहचान बनाई है। यह जड़ी बूटी पहाड़ों पर उगने वाला फफूंद है। इसका सेवन चाय या सूप के साथ किया जाता है।
नेपाल और चीन में मचा है घमासान
शोधकर्ताओं के अनुसार, चीन और नेपाल में मुश्किल से मिलने वाले इस फफूंद 'यार्चागुम्बा' को लेकर झगड़ों में कई लोग मारे जा चुके हैं। पहले यह जड़ी बूटी नेपाल और चीन में ऊंचे पहाड़ों पर मिलती थी। लेकिन अब जलवायु परिवर्तन के कारण इसका मिलना मुश्किल हो गया है।
नपुंसकता से लेकर कैंसर तक के इलाज में सहायक
ऐसा माना जाता है कि यह नपुंसकता से लेकर कैंसर तक के इलाज में कारगर है। हालांकि वैज्ञानिक तौर पर इसके फायदे साबित नहीं हुए हैं। प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में एक रिपोर्ट में कहा गया है, 'यह दुनिया की सबसे कीमती जैविक वस्तु है जो इसे एकत्रित करने वाले हजारों लोगों के लिए आय का अहम स्रोत है।'
सोने से भी कीमती है जड़ी बूटी
शोधकर्ताओं का कहना है कि हाल के दशकों में, इस कीड़े की लोकप्रियता बढ़ गई है और इसके दाम आसमान छूने लगे हैं। बीजिंग में इसके दाम सोने की कीमत के मुकाबले तीन गुना अधिक तक जा सकते हैं। कई लोगों को संदेह है कि अत्यधिक मात्रा में इस फफूंद को एकत्र करने से इसकी कमी हो गई होगी।
मौसम की मार से कम हो गई पैदावार
शोधकर्ताओं ने इसकी वजह जानने के लिए इसे एकत्र करने वालों और व्यापारियों का साक्षात्कार किया। उन्होंने पहले प्रकाशित वैज्ञानिक शोध का भी अध्ययन किया। इसमें नेपाल, भूटान, भारत और चीन में 800 से ज्यादा लोगों के साक्षात्कार भी शामिल हैं।
क्षेत्र में यार्चागुम्बा उत्पादन का मानचित्र बनाने के लिए मौसम, भौगोलिक परिस्थितियां और पर्यावरणीय परिस्थितियों का भी अध्ययन किया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब दो दशकों और चार देशों के आंकड़ों का इस्तेमाल करने पर पता चला कि 'कैटरपिलर फंगस' कम हो रहा है।
मुख्य शोधकर्ता केली होपिंग ने कहा कि यह शोध महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें ध्यान देने की मांग की गई है कि 'कैटरपिलर फंगस' जैसी कीमती प्रजातियां ना केवल अत्यधिक मात्रा में एकत्रित किए जाने के कारण कम हो रही हैं बल्कि इन पर जलवायु परिवर्तन का असर भी पड़ रहा है।