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आपको कभी यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन हुआ है!, निदान अभी भी 140 साल पुरानी पद्धति से, जानें क्या है वजह, कितना हो सकता है असर

By भाषा | Updated: September 6, 2022 11:10 IST

यूटीआई का परीक्षण करने के लिए, मूत्र के नमूने को अस्पताल के माइक्रोबायोलॉजी लैब में भेजा जाता है। जहां, वे बैक्टीरिया की तलाश करते हैं, जो संक्रमण का कारण बनते हैं और जांचते हैं कि क्या यह बैक्टीरिया एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोधी हैं।

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ठळक मुद्देलगभग पचास प्रतिशत महिलाओं को अपने जीवनकाल में कभी न कभी यह बीमारी होती है।आमतौर पर अगर प्लेटिंग नामक तकनीक का उपयोग करके किया जाता है।सामान्य तकनीक लगभग 140 वर्षों से है और कई अस्पतालों में नैदानिक ​​​​मानक बनी हुई है।

लंदनः यदि आपको कभी यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन (यूटीआई) हुआ है, तो आप जानते हैं कि यह कितना दर्दनाक हो सकता है। न केवल शारीरिक दर्द, बल्कि इसके उपचार के लिए डॉक्टर के पास जाना, मूत्र का नमूना देना और उसके परिणामों की प्रतीक्षा करना भी अपने आप में एक दर्द होता है।

यूटीआई बेहद आम हैं, लगभग पचास प्रतिशत महिलाओं को अपने जीवनकाल में कभी न कभी यह बीमारी होती है। यूटीआई का परीक्षण करने के लिए, मूत्र के नमूने को अस्पताल के माइक्रोबायोलॉजी लैब में भेजा जाता है। जहां, वे बैक्टीरिया की तलाश करते हैं, जो संक्रमण का कारण बनते हैं और जांचते हैं कि क्या यह बैक्टीरिया एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोधी हैं।

यह परीक्षण आमतौर पर अगर प्लेटिंग नामक तकनीक का उपयोग करके किया जाता है। अगर नामक पोषक तत्व जेली से भरी एक छोटी गोल प्लेट में मूत्र की एक छोटी मात्रा डाली जाती है, जिसे किसी भी बैक्टीरिया को बढ़ने देने के लिए रात भर गर्म रखा जाता है। यह सामान्य तकनीक लगभग 140 वर्षों से है और कई अस्पतालों में नैदानिक ​​​​मानक बनी हुई है।

लेकिन एक ऐसे युग में जब हम तुरंत एक कोविड-19 संक्रमण का परीक्षण कर सकते हैं, एक इलेक्ट्रॉनिक रीडर के साथ रक्त शर्करा को माप सकते हैं, और कलाई घड़ियाँ पहन सकते हैं जो हमारी हृदय गति को ट्रैक करती हैं, हम अभी भी इस पुरानी पद्धति का उपयोग क्यों करते हैं जिसमें यूटीआई का सटीक निदान करने में कई दिन लगते हैं?

यह तकनीक वास्तव में कारगर है यदि किसी संक्रमण का संदेह है, तो यह जानना महत्वपूर्ण है कि किस प्रकार के बैक्टीरिया (यदि कोई हैं) मौजूद हैं, आपके मूत्र में कितने हैं, और उन जीवाणुओं का किस एंटीबायोटिक से इलाज किया जा सकता है। लेकिन मूत्र के नमूनों में कई अन्य चीजें भी हो सकती हैं - जैसे कि यूरिया और लवण, और अम्लता के विभिन्न स्तर - जो बैक्टीरिया की पहचान को प्रभावित कर सकते हैं। अगर पर मूत्र डालने से हर वह चीज निकल जाती है जो बैक्टीरिया के विकास में बाधा उत्पन्न कर सकती है।

यह तकनीक नमूने में मौजूद एकल कोशिकाओं को बूँदें (जिन्हें कॉलोनियों कहा जाता है) बनाने की अनुमति देती है जिन्हें गिनना आसान होता है। कॉलोनियों के आकार, रंग, स्वरूप और यहां तक ​​कि गंध का उपयोग यह इंगित करने के लिए किया जा सकता है कि किस प्रकार के बैक्टीरिया मौजूद हैं।

कुछ नमूनों में कई अलग-अलग प्रकार के बैक्टीरिया होते हैं, जिनका अलग से परीक्षण किया जाना चाहिए। वैकल्पिक तरीकों को खोजना आश्चर्यजनक रूप से कठिन है जो अन्य मूत्र घटकों से प्रभावित हुए बिना इन सभी आवश्यक चीजों को कर सकते हैं। सबसे प्रसिद्ध विधि हमारे पास अगर प्लेटिंग तकनीक का उपयोग करने का बहुत अनुभव है क्योंकि हमने इसे वर्षों से इस्तेमाल किया है।

इसका मतलब है कि हमें इस बात की बहुत अच्छी समझ है कि परिणामों का उपयोग कैसे किया जाए - न केवल किसी व्यक्ति के संक्रमण के निदान में बल्कि (जहां आवश्यक हो) उनके उपचार को समायोजित करने के लिए भी। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सिस्टम एकदम सही है।

अगर प्लाटिंग की वर्तमान पद्धति में यह पता लगाने में कई दिन लगते हैं कि कौन से एंटीबायोटिक्स संक्रमण का सबसे अच्छा इलाज करेंगे - जो एक मरीज के लिए इंतजार करने के लिए बहुत लंबा है। इसका मतलब है कि हमें परीक्षण के परिणाम ज्ञात होने से पहले रोगियों का इलाज शुरू करना होगा।

कभी-कभी इसका मतलब है कि मरीजों को कुछ दिनों के बाद दवा बदलनी पड़ती है, जो असुविधाजनक और महंगी होती है। अधिक एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग एंटीबायोटिक प्रतिरोध को बढ़ावा देता है, जिससे भविष्य में समस्या और भी बदतर हो जाती है। ये समस्याएं सूक्ष्म जीव विज्ञान परीक्षण में नवाचार को अपनाने की जरूरत बढ़ा रही हैं।

नई तकनीकों में अभी भी सुधार की जरूरत है यद्यपि वर्तमान परीक्षण मूत्र में बैक्टीरिया और एंटीबायोटिक प्रतिरोध को माप सकते हैं, हमें ऐसे परीक्षणों की आवश्यकता है जो उपचार से पहले परीक्षण को अधिक तेज़ी से कर सकें। इन विधियों को आदर्श रूप से पोर्टेबल और सस्ता होना चाहिए ताकि हम प्रयोगशाला में नमूने भेजे बिना समुदाय में उनका उपयोग कर सकें।

हाल की प्रगति से पता चलता है कि यह संभव हो सकता है। उदाहरण के लिए, डिजिटल कैमरे यह पता लगा सकते हैं कि जीवाणु कोशिकाएं माइक्रोस्कोपिक स्केल पर बढ़ रही हैं या पतले मूत्र में। हालांकि इन विधियों में यह जांचने में कुछ घंटे लगते हैं कि क्या कोई एंटीबायोटिक काम करेगा, लेकिन यह अभी भी अगर प्लेटिंग की तुलना में बहुत जल्दी होता है।

कुछ अस्पताल प्रयोगशालाएं भी अब नियमित रूप से मास स्पेक्ट्रोमेट्री नामक एक तकनीक का उपयोग करती हैं, जिसमें बैक्टीरिया के नमूने के टुकड़ों को मापा जाता है और बैक्टीरिया की पहचान करने के लिए डेटाबेस के साथ उनकी तुलना की जाती है। यह अगर प्लेटिंग के जरिए किए जाने वाले परीक्षण के मुकाबले तेज गति से होता है।

ये नयी पद्धतियां कारगर तो लगती हैं, लेकिन इनमें से कई अभी सिर्फ शोध के चरण में ही हैं। और मास स्पेक्ट्रोमेट्री के मामले में, एंटीबायोटिक संवेदनशीलता परीक्षण के लिए अभी भी अगर प्लेटिंग आवश्यक है। इनमें से कई प्रौद्योगिकियां डाक्टर या फ़ार्मेसी के लिए बहुत बड़ी और महंगी हैं - इसलिए मूत्र के नमूनों को अभी भी विश्लेषण के लिए अस्पताल की प्रयोगशालाओं में ही ले जाने की आवश्यकता है।

भविष्य में, इन तकनीकों में लगने वाले समय को कम करना जरूरी होगा ताकि किसी व्यक्ति को अपने परिक्षण का परिणाम जानने के लिए कई दिनों तक इंतजार न करना पड़े और यह अगर प्लेटिंग की तरह सस्ती और सुलभ भाी हो। यह कुछ ऐसा है जिस पर हमारी प्रयोगशाला काम कर रही है।

हम यह पता लगा चुके हैं कि हम छोटे, अधिक पोर्टेबल परीक्षणों का निर्माण कर सकते हैं जो कि अगर प्लेटिंग के समान ही सटीक हैं - और परिणाम स्मार्टफोन जैसे सस्ते डिजिटल कैमरे के साथ रिकॉर्ड किए जा सकते हैं। अनुसंधान का हमारा अगला चरण वास्तविक रोगी नमूनों के साथ इन "छोटे परीक्षणों" की जांच करना है।

यह महत्वपूर्ण है कि कुछ नए, यूटीआई परीक्षण जल्द प्रचलन में आ जाएं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हर मामले का सही एंटीबायोटिक के साथ जल्दी और प्रभावी ढंग से इलाज हो। हालांकि, इन और अन्य नई तकनीकों का नियमित रूप से निदान के लिए उपयोग किए जाने में कुछ समय लगेगा। अभी के लिए, जिन लोगों को संदेह है कि उन्हें यूटीआई है, उन्हें तत्काल अपने डाक्टर से संपर्क करने की जरूरत है ताकि निदान करके उन्हें उचित दवा दी जा सके।

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