बिहार में स्तनपान कराने वाली माताओं के ब्रेस्ट मिल्क में पाया गया यूरेनियम का अत्यधिक उच्च स्तर, पहुंचा सकता है किडनी को नुकसान
By एस पी सिन्हा | Updated: November 23, 2025 18:00 IST2025-11-23T18:00:02+5:302025-11-23T18:00:08+5:30
विशेषज्ञों का कहना है कि ब्रेस्ट मिल्क में यूरेनियम के लिए दुनिया में कोई अनुमेय सीमा निर्धारित नहीं है, इसलिए इसका शिशुओं पर क्या दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा, यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है।

बिहार में स्तनपान कराने वाली माताओं के ब्रेस्ट मिल्क में पाया गया यूरेनियम का अत्यधिक उच्च स्तर, पहुंचा सकता है किडनी को नुकसान
पटना: बिहार में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। दरअसल, एक अध्ययन में पाया गया है कि बिहार में स्तनपान कराने वाली 40 माताओं के ब्रेस्ट मिल्क के सैंपल में यूरेनियम का अत्यधिक उच्च स्तर पाया गया है। नेचर जर्नल में यह बात प्रकाशित की गई है। यह शोध पटना के महावीर कैंसर संस्थान की ओर से डॉ. अरुण कुमार और प्रो. अशोक घोष की अगुवाई में किया गया। जिसमें एम्स, नई दिल्ली के बायोकेमिस्ट्री विभाग से डॉ. अशोक शर्मा की टीम भी शामिल थी। अक्टूबर 2021 से जुलाई 2024 के बीच किए गए इस शोध में भोजपुर, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, कटिहार और नालंदा जिलों की 17 से 35 वर्ष आयु की 40 महिलाओं के ब्रेस्ट मिल्क के नमूनों का विश्लेषण किया गया।
बताया जाता है कि सभी नमूनों में यूरेनियम (यू-238) पाया गया, जिसकी मात्रा 0 से 5.25 ग्राम/लीटर के बीच पाई गई। विशेषज्ञों का कहना है कि ब्रेस्ट मिल्क में यूरेनियम के लिए दुनिया में कोई अनुमेय सीमा निर्धारित नहीं है, इसलिए इसका शिशुओं पर क्या दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा, यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। विशेष रूप से खगड़िया जिले में औसत यूरेनियम स्तर सबसे अधिक पाया गया, जबकि नालंदा में सबसे कम और कटिहार में एकल नमूने में सबसे अधिक मात्रा दर्ज हुई। शोध के अनुसार, लगभग 70 प्रतिशत शिशुओं में ऐसे स्तरों के संपर्क का जोखिम पाया गया, जो संभावित गैर-कार्सिनोजेनिक स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न कर सकते हैं। एम्स के को-ऑथर डॉ. अशोक शर्मा ने बताया कि यूरेनियम का स्रोत अभी स्पष्ट नहीं है।
जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया इसकी जांच कर रहा है। दुर्भाग्य से, यह फूड चेन में प्रवेश कर सकता है और कैंसर, न्यूरोलॉजिकल समस्याएं तथा बच्चों के विकास पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। बिहार की पर्यावरणीय स्थिति ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है। राज्य में पेयजल और सिंचाई के लिए भूजल पर अत्यधिक निर्भरता, बिना ट्रीटमेंट वाले औद्योगिक अपशिष्ट का निस्तारण और लंबे समय से रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग पहले ही जीववैज्ञानिक नमूनों में आर्सेनिक, लेड और मरकरी जैसी धातुओं का स्तर बढ़ा चुका है।
अब ब्रेस्ट मिल्क में यूरेनियम की मौजूदगी यह संकेत देती है कि प्रदूषण राज्य की सबसे कमजोर आबादी शिशुओं तक पहुंच गया है। डॉक्टरों का कहना है कि शिशु यूरेनियम के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं क्योंकि उनके अंग अभी विकसित हो रहे होते हैं। वे विषैले धातुओं को अधिक अवशोषित करते हैं और उनके हल्के शरीर के कारण जोखिम कई गुना बढ़ जाता है।
जानकारों के अनुसार यूरेनियम किडनी को नुकसान पहुंचा सकता है, न्यूरोलॉजिकल समस्याएं पैदा कर सकता है और आगे चलकर कैंसर का खतरा भी बढ़ा सकता है। शोधकर्ता यह भी सुझाव दे रहे हैं कि माताओं और बच्चों को तत्काल स्वास्थ्य निगरानी में रखा जाए और भूजल, आहार और पर्यावरणीय स्रोतों से यूरेनियम के संपर्क को कम करने के लिए राज्य सरकार को सख्त कदम उठाने चाहिए। विशेषज्ञों का कहना है कि यह अध्ययन बिहार सहित अन्य राज्यों के लिए चेतावनी है, क्योंकि खाद्य और जल प्रदूषण का प्रभाव सीधे शिशुओं और बच्चों पर पड़ सकता है।
एक डॉक्टर ने यह निष्कर्ष के रूप में बताया है कि हमें यह समझना होगा कि यह केवल एक वैज्ञानिक रिपोर्ट नहीं है, बल्कि बच्चों के स्वास्थ्य और भविष्य के लिए गंभीर चेतावनी है। राज्य और केंद्र सरकार को मिलकर जल और खाद्य सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना होगा। वैश्विक स्तर पर कनाडा, अमेरिका, फिनलैंड, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, ब्रिटेन, बांग्लादेश, चीन, कोरिया, मंगोलिया, पाकिस्तान और मेकांग डेल्टा में भूजल में यूरेनियम की ऊंची मात्रा की रिपोर्ट मिल चुकी है। लेकिन बिहार में इसका ब्रेस्ट मिल्क में पाया जाना इस समस्या को एक नए, गंभीर स्तर पर ले जाता है। चौंकाने वाले नतीजों के बावजूद शोधकर्ताओं ने जोर देकर कहा है कि स्तनपान जारी रखना चाहिए।