पद्म श्री से सम्मानित होंगी फुटबॉलर बेमबेम देवी, कभी खुद को बताती थीं बोबो और एमको
By भाषा | Published: January 26, 2020 06:03 PM2020-01-26T18:03:10+5:302020-01-26T18:03:10+5:30
पुरुष टीम के करिश्माई सुनील छेत्री पद्म श्री हासिल करने वाले अंतिम फुटबॉलर थे, जिन्हें 2019 में इस पुरस्कार से नवाजा गया था।
फुटबॉल में अपनी काबिलियत के बूते पद्म श्री हासिल करने वाली ओइनम बेमबेम देवी भारत की मशहूर महिला फुटबॉलर बनने के लिये लड़कों के साथ खेलीं जिसमें वह एक दिन खुद को ‘बोबो’ तो दूसरे दिन ‘एमको’ नाम देती थीं।
पद्म श्री हासिल करने वाली पहली महिला फुटबॉलर बनीं बेमबेम देवी ने रविवार को उस समय को याद किया जब वह ऐसा करने के लिये काम करने पर जुटी थीं। उन्होंने कहा, ‘‘जब मैं नौ साल की थी तो मैंने लड़कों के साथ फुटबॉल खेलने के लिये अपना नाम बदलकर बोबो और एमको रख दिया था। अगर मैं उन्हें बता देती कि मेरा नाम बेमबेम है तो वे समझ जाते कि मैं लड़की हूं और मुझे अपनी टीम में नहीं खिलाते।’’ पुरुष टीम के करिश्माई सुनील छेत्री पद्म श्री हासिल करने वाले अंतिम फुटबॉलर थे, जिन्हें 2019 में इस पुरस्कार से नवाजा गया था।
बेमबेम ने उम्मीद जतायी कि इससे भारत में महिला फुटबाल को फायदा मिलेगा। उन्होंने कहा, ‘‘यह उन सभी के लिये आंखे खोलने वाला है जो मानते हैं कि आप भारत में महिला फुटबॉल खेलते हुए आगे नहीं बढ़ सकते। मैं उम्मीद करती हूं कि इससे सभी लड़कियां और उनके माता-पिता प्रेरित होंगे। यह फीफा अंडर-17 महिला विश्व कप का साल है। यह पद्म श्री अगली पीढ़ी की लड़कियों के लिये है।’’
लड़कों के साथ खेलती थीं फुटबॉल: भारत की महान महिला फुटबॉल खिलाड़ी के तौर पर सम्मान पाने वाली बेमबेम देवी ने 10 साल की उम्र से ही अपने घर के नजदीक ही लड़कों के साथ फुटबॉल खेलना शुरू किया। इम्फाल में पैदा हुईं बेमबेम देवी ने कुछ ही सालों में मणिपुर की सीनियर टीम में अपनी जगह बना ली और 1995 में मात्र 15 साल की उम्र में उन्होंने भारत के लिए डेब्यू किया। उनकी खिताबों की सूची में मणिपुर राज्य के लिए उन्होंने 16 खिताब जीते जिनमें उन्होंने बतौर कप्तान 9 खिताब अपने नाम किए।
2010, 2012 और 2014 में उन्होंने भारत को तीन साउथ एशियन खिताब दिलवाए। उपमहाद्वीप की बेहतरीन मिडफिल्डरों में शुमार बेमबेम ने आखिरी दो सत्र में मालद्वीप की टीम न्यू रेडिएंट से खेलते हुए टीम को दो राष्ट्रीय खिताब दिलवाए। खेल में महत्वपूर्ण योगदान होते हुए भी उनका नाम अर्जुन पुरस्कार की सूची में शामिल नहीं था।