Nirbhaya Case: निर्भया के दोषियों को कल दी जाएगी फांसी, जानें क्या होता है Black Warrant, फांसी देने से पहले क्या होती है प्रक्रिया

By स्वाति सिंह | Published: March 19, 2020 06:55 PM2020-03-19T18:55:24+5:302020-03-19T18:55:24+5:30

डेथ वारंट या ब्लैक वॉरंट में सबसे ऊपर जेल का नाम। फिर दोषी का नाम,फिर दोषी का नाम, केस नंबर, साल, तारीख और वक्त आदि जानकारी लिखी होती है। इसके साथ ही इसमें ऑर्डर जारी करनेवाली कोर्ट का भी नाम दर्ज होता है।

Nirbhaya gangrape: what is death warrant black warrant kya hota hai death warrant | Nirbhaya Case: निर्भया के दोषियों को कल दी जाएगी फांसी, जानें क्या होता है Black Warrant, फांसी देने से पहले क्या होती है प्रक्रिया

पटियाला हाई कोर्ट ने दोषियों के डेथ वारंट पर रोक वाली याचिका खारिज कर दी है।

Highlightsतिहाड़ जेल ने निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले के चारों दोषियों को फांसी देने की तैयारी की। फांसी के तख्ते पर चढ़ने से पहले कैदी के मुंह पर काला कपड़ा पहना दिया जाता है

नई दिल्ली: आतंकवादी अफजल गुरु को फांसी देने के सात साल बाद तिहाड़ जेल ने निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले के चारों दोषियों को फांसी देने की तैयारी की। गुरुवार को पटियाला हाई कोर्ट ने दोषियों के डेथ वारंट पर रोक वाली याचिका खारिज कर दी है। शुक्रवार (20 मार्च) सुबह साढ़े पांच बजे निर्भया के चारों दोषियों मुकेश कुमार सिंह (32), पवन गुप्ता (25), विनय शर्मा(26) और अक्षय कुमार सिंह (31) को फांसी दी जाएगी। फांसी के इस आर्डर को डेथ वारंट या ब्लैक वारंट कहते हैं। 

डेथ वारंट या ब्लैक वॉरंट में सबसे ऊपर जेल का नाम, फिर दोषी का नाम,फिर दोषी का नाम, केस नंबर, साल, तारीख और वक्त आदि जानकारी लिखी होती है। इसके साथ ही इसमें ऑर्डर जारी करनेवाली कोर्ट का भी नाम दर्ज होता है। इसमें साफ-साफ लिखा होता है कि 'जबतक मर न जाए तबतक लटकाया जाए।' कोर्ट की तरफ से यह जानकारी जेल इंचार्ज को सौंपी जाती है। इसे फांसी के बाद उसी कोर्ट को वापस भी देना होता है। इसे ट्रायल कोर्ट का जज जारी करता है, जिसने फांसी की सजा सुनाई होती है।

तिहाड़ जेल में जेलर रहे सुनील गुप्ता की किताब 'डेथ वॉरंट' के मुताबिक पहले डेथ वॉरंट जारी होने पर उसे सार्वजनिक करना जरूरी नहीं था। आतंकी अफजल गुरु को फांसी देने के वक्त ऐसा ही किया गया था। हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस आने के बाद डेथ वॉरंट जारी होने के बाद उसे सार्वजनिक किया जाने लगा है। इसके साथ ही पहले डेथ वॉरंट जारी होने के एक हफ्ते बाद फांसी होती थी, लेकिन अब 14 दिन का वक्त दिया जाता है।

फांसी से पहले दोषियों से मिलने जाते हैं अफसर 

फांसी के समय वहां कॉन्स्टेबल 10 से कम नहीं, हेड वार्डर और दो हेड कॉन्स्टेबल, हेड वार्डर या इस संख्या में जेल सशस्त्र गार्ड भी मौजूद होंगे। फांसी होते समय कैदियों के परिवार को वहां मौजूद रहने की अनुमति नहीं होती। फांसी दिए जाने और उनके शवों को वहां से हटाने तक बाकी कैदियों को उनकी कोठरी में कैद रखा जाता है। 

नियमावली के अनुसार चिकित्सा अधिकारी को फांसी दिए जाने से चार दिन पहले रिपोर्ट तैयार करनी होती है, जिसमें वह इस बात का जिक्र करता है कि कैदी को कितनी ऊंचाई से गिराया जाए। हर कैदी के लिए अलग से दो रस्सियां भी रखी जाती हैं। जांच के बाद रस्सी और अन्य उपकरणों को एक स्टील के बॉक्स में बंद कर दिया जाता है और उसे उपाधीक्षक को सौंप दिया जाता है। अगर कैदी चाहे तो वह जिस धर्म में विश्वास रखता है उसके पुरोहित को बुलाया जा सकता है। 

फांसी देने वाले दिन अधीक्षक, जिला मजिस्ट्रेट/अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट, चिकित्सा अधिकारी सहित कई वरिष्ठ अधिकारी सुबह-सुबह कैदी से उसकी कोठरी में मिलने जाते हैं। अधीक्षक और जिला मजिस्ट्रेट या अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में कैदी की वसीयत सहित किसी भी दस्तावेज पर हस्ताक्षर कराए जा सकते हैं या उसे संलग्न किया जा सकता है। 

जेल के नियमों के अनुसार फांसी के तख्ते पर चढ़ने से पहले कैदी के मुंह पर काला कपड़ा पहना दिया जाता है ताकि वह फंदे को देख ना पाए। कैदी के धर्म के अनुसार उसके शव का अंतिम संस्कार किया जाता है। कई बार उसके पोस्ट मार्टम के बाद उसे परिवार को भी सौंप दिया जाता है। उसका अंतिम संस्कार करने के लिए शव को शमशान ले जाने के लिए एम्बुलेंस का इस्तेमाल किया जाता हे। तिहाड़ में आखिरी बार नौ फरवरी 2013 को उत्तर कश्मीर के सोपोर के निवासी अफजल गुरु को फांसी दी गई थी। संसद पर हमले के दोषी को सुबह आठ बजे फांसी दी गई थी और उसे जेल परिसर में ही दफना दिया गया था। 

फांसी की सजा के बाद तोड़ दिया जाता कलम 

आपने फिल्मों में देखा होगा कि किसी को फांसी की सजा सुनाने के बाद जज पैन की निब तोड़ देता था। असलियत में भी ऐसा ही होता है। बता दें कि यह नियम ब्रिटिश शासनकाल से यही चला आ रहा है। ऐसा माना जाता है कि जब जज कलम की निब तोड़ते हैं उसका यह अर्थ होता है कि वह उससे फिर किसी को फांसी की सजा नहीं मिले और ना ही कोई इस तरह का क्राइम करे।

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