सामूहिक दुष्कर्म पीड़िता की गिरफ्तारी पर वकीलों ने पटना उच्च न्यायालय से हस्तक्षेप की मांग की
By भाषा | Published: July 16, 2020 03:01 AM2020-07-16T03:01:21+5:302020-07-16T03:01:21+5:30
अररिया जिला स्थित सामाजिक संगठन जन जागरण शक्ति संस्थान के सचिव आशीष रंजन झा ने बताया कि दर्ज कराई गई प्राथमिकी के अनुसार छह जुलाई को पीड़ित युवती के एक परिचित युवक से मोटरसाइकिल चलाना सीखने गई थी और घर लौटने के दौरान चार अज्ञात लोगों ने उसके साथ कथित तौर पर सामूहिक दुष्कर्म किया था ।
पटना: बिहार में कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार की पीड़िता को जेल भेजे जाने पर देशभर के जाने माने वकीलों ने विरोध जताते हुए बुधवार को पटना उच्च न्यायालय से हस्तक्षेप करने की मांग की। पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों को संबोधित 376 अधिवक्ताओं द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में, 22 वर्षीय पीडित उक्त महिला और उसकी दो सहयोगी सामाजिक कार्यकर्ताओं को 10 जुलाई को भादवि की धारा 164 के तहत न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष बयान दर्ज कराने के वक्त न्यायिक हिरासत में लेकर समस्तीपुर जिले की दलसिंहसराय जेल भेज दिया गया था।
इंदिरा जयसिंह, प्रशांत भूषण और वृंदा ग्रोवर जैसे दिग्गज वकीलों द्वारा हस्ताक्षरित उक्त पत्र में कहा गया है इस घटना को बहुत ही संवेदनशील होकर देखा जाना चाहिए क्योंकि पीडिता के अपने साथ घटित घटना को बार बार पुलिस एवं अन्य लोगों को बताने के कारण मानसिक तनाव में थी इसलिए उसके द्वारा दुर्व्यवहार को संवेदना के साथ देखे जाने की जरूरत है। पीड़िता की नाजुक स्थिति को समझने के बजाए उसे जेल भेज दिया गया। बिहार के अररिया जिला की एक अदालत के समक्ष पीडिता अपनी उक्त दोनों सहयोगियों के साथ बयान दर्ज कराने गयी थी और अदालत की अवमानना के आरोप में उन्हें हिरासत में ले लिया गया था।
अररिया जिला स्थित सामाजिक संगठन जन जागरण शक्ति संस्थान के सचिव आशीष रंजन झा ने बताया कि दर्ज कराई गई प्राथमिकी के अनुसार छह जुलाई को पीड़ित युवती के एक परिचित युवक से मोटरसाइकिल चलाना सीखने गई थी और घर लौटने के दौरान चार अज्ञात लोगों ने उसके साथ कथित तौर पर सामूहिक दुष्कर्म किया था । पीडिता ने अपने परिजनों के भय के कारण जन जागरण शक्ति संस्थान की अपनी एक परिचित फोन किया और उसके बाद उक्त संगठन की अन्य सहयोगियों की मदद से अररिया के महिला थाने में सात जुलाई को प्राथमिकी दर्ज करायी थी।
झा ने बताया कि उनके संगठन की कार्यकर्ताओं के साथ 10 जुलाई को पीड़िता को दंडाधिकारी के सामने पेश किए जाने पर कुछ गलतफहमी और संवादहीनता के कारण यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति पैदा हुई । पुलिस सूत्रों के अनुसार, तीनों के खिलाफ अदालत के एक कर्मचारी द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी में कहा गया है कि पीड़िता को बयान की एक प्रति पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा जाने पर वह उत्तेजित हो गयी थी और दस्तावेज को देखने के लिए संगठन की कार्यकर्ताओं को बुलाने पर जोर दिया गया था।
झा ने अफसोस जताया कि हमने पीडिता और उनकी सहायता करने वाली उनके संगठन की दोनों कार्यकर्ताओं की रिहाई के लिए कानूनी उपाय की मांग को लेकर जब आज जिला अदालत के समक्ष एक आवेदन देने की कोशिश की तो पता चला कि कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए अदालत परिसर को अगले सात दिन के लिए बंद करने का आदेश दिया गया है।