झारखंड: कोयले की काली कमाई पर माफिया गैंग्स के बीच घमासान, दो गुटों में हुई गोलीबारी
By एस पी सिन्हा | Published: August 7, 2018 07:00 PM2018-08-07T19:00:18+5:302018-08-07T19:00:18+5:30
ताजा मामला है जिले के झरिया थाना क्षेत्र के दोबारी कोलियरी का जहां एक बार फिर गोलीबारी कर वर्चस्व फैलाने की कोशिश की गई। झरिया इलाके में गोलीबारी और बमबाजी से पूरा इलाका थर्रा गया।
रांची,7 अगस्त: झारखंड का कोयलांचल इलाका धनबाद में कोल डायमंड अर्थात् कोयले की अवैध काली कमाई पर वर्चस्व को लेकर हत्याओं का दौर लगातार जारी है। कोयलांचल में आठ बड़े गैंग में चार सौ करोड़ रुपए से भी अधिक की रंगदारी को लेकर खूनी खेल जारी है। जानकारी के मुताबिक वर्चस्व की इस लड़ाई में बीते 29 साल में एक अनुमान के अनुसार 340 से ज्यादा लोगों की जान चली गई, जबकि छोटे प्यादे तो लगभग रोज ही शिकार हो जाते हैं। कोयले के इस काले खेल में यहां इस तरह की वारदात अक्सर देखने को मिलती है।
ताजा मामला है जिले के झरिया थाना क्षेत्र के दोबारी कोलियरी का जहां एक बार फिर गोलीबारी कर वर्चस्व फैलाने की कोशिश की गई। झरिया इलाके में गोलीबारी और बमबाजी से पूरा इलाका थर्रा गया। इस मामले पर सिटी एसपी ने बताया कि रमेश महतो के नेतृत्व में सारा कांड किया गया था। इस घटनाक्रम में हथियार के साथ रमेश महतो व उसके साथ दो अन्य लोगों को भी पकडा गया है। वहीं, सिटी एसपी ने बताया कि बंद की जानकारी लोग देते हैं तो शांतिपूर्ण बंद की बात करते हैं। लेकिन बंद के दौरान जिस प्रकार की घटना घटी पुलिस की सतर्कता का ही फल है कि यह लोग भागने के क्रम में गिरफ्तार हुए हैं।
उन्होंने तीर लगने की बात से एक व्यक्ति के घायल होने की बात स्वीकार की है और उन्होंने बताया कि घायल व्यक्ति के द्वारा दिए गए आवेदन पर एक प्राथमिकी और की जाएगी। उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि कोलियरी में वर्चस्व फैलाने के लिए ही यह सारा खेल रचा गया था। पुलिस इस तरह की घटना नहीं होने देगी। उनके पास से मोबाइल, देसी कार्बाइन और जिंदा कारतूस भी बरामद किया गया है। यहां उल्लेखनीय है कि धनबाद में जमीन के नीचे कोयला खदानें मुद्दत से सुलग रही हैं। लेकिन यहां जमीन के ऊपर माफिया गैंगवार की जो आग लगी है उसकी आंच भी कुछ कम नहीं है। माफिया वार की इस आग को ईंधन मिलता है काले हीरे यानी कोयले के सलाना 800 करोड रुपए वाले उस कारोबार से जो झारखंड के धनबाद और बिहार से लेकर यूपी के वाराणसी, बलिया और कानपुर तक पसरा है।
पैसे की अंधाधुंध बरसात करने वाले कोयले के इस कारोबार के साथ-साथ स्क्रैप, ठेकेदारी, रंगदारी और नेतागीरी के धंधे की बादशाहत की चाहत माफिया गैंग्स के बीच चलनेवाले गैंगवार की मुख्य वजह है। बताया जाता है कि 1967 से अबतक कोयले के धंधे में वर्चस्व की लडाई यूं तो यहां छिटपुट तरीके से पचास के दशक से ही शुरू हो गई थी। लेकिन माफियागीरी ने यहां दस्तक दी साठ के दशक में। 1967 से लेकर अबतक 40 से भी ज्यादा बडे कारोबारी, नेता और ठेकेदार माफियाओं की इस खूनी लडाई की भेंट चढ चुके हैं। हालांकि, इस दौरान छोटे-मोटे कारोबारियों, मुंशियों, कामगारों और मामूली हैसियत वाले लोगों की हत्याओं की गिनती कर ली जाए तो खूनी जंग की भेंट चढनेवालों की तादाद सौकडों में होगी।
धनबाद में माफिया गैंग्स के बीच 60 के दशक से आज तक जारी खूनी टकराव में जिन शख्सियतों के नाम इन गैंग्स के सरगना के रूप में सामने आते रहे हैं। उनमें सकलदेव सिंह, विनोद सिंह, सूर्यदेव सिंह, नौरंगदेव सिंह, सत्यदेव सिंह, दून बहादुर सिंह, रघुनाथ सिंह, फहीम खान सहित कई दूसरे नाम शामिल हैं। बहरहाल, यहां के लोग यही समझने की कोशिश कर रहे हैं कि कोयलांचल की ये आग कब बुझेगी?
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