कहानी उस धनंजय सिंह की, जिसके एनकांउटर की फर्जी कहानी गढ़ी थी यूपी पुलिस ने

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: June 28, 2023 01:57 PM2023-06-28T13:57:16+5:302023-06-28T14:02:35+5:30

यूपी के जौनपुर के धनंजय सिंह ने छात्र राजनीति से अपराध की दुनिया में कदम रखा और फिर राजनीति की दुनिया में वापसी करके तीन दफे ‘माननीय’ विधायक और सांसद का तमगा हासिल किया।

Crime story of Bahubali leader Dhananjay Singh of UP's Jaunpur | कहानी उस धनंजय सिंह की, जिसके एनकांउटर की फर्जी कहानी गढ़ी थी यूपी पुलिस ने

कहानी उस धनंजय सिंह की, जिसके एनकांउटर की फर्जी कहानी गढ़ी थी यूपी पुलिस ने

Highlightsजौनपुर के बाहुबली धनंजय सिंह दो बार विधायक और एक बार सांसद रहे हैं धनंजय सिंह ने जानी दोस्त रहे अभय सिंह पर लगाया अपनी हत्या का आरोपजिस मायावती ने धनंजय सिंह को 50 हजार का इनामी बनाया, उन्होंने धनंजय सिंह को सांसद भी बनाया

लखनऊ: 90 के दशक में बनारस के हर चौराहे-नुक्कड़ पर मौजूद पान की दुकान पर सुभाष घई के ताजा फिल्म 'खलनायक' का गीत 'नायक नहीं खलनायक हूं मैं...' बजा करता था। बनारस की गलियां बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी की अदावत से खूनी लाल रंग में रंगी जा रही थीं। हर तरफ बृजेश और मुख्तार का खौफ पसरा था। उसी बीच बनारस में कभी-कभी पड़ोस के जिले जौनपुर के एक नौजवान के रंगबाज किस्से से भी बनारस दो-चार होता रहता था।

उस शख्स का नाम था धनंजय सिंह था, जिसने अपराध का ककहरा पढ़ा तो जौनपुर में लेकिन उसे पूर्वांचल की धरती से दूर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अमल में लाता था। धनंजय सिंह ने छात्र राजनीति से अपराध की दुनिया में कदम रखा और फिर राजनीति की दुनिया में वापसी करके तीन दफे ‘माननीय’ का तमगा हासिल किया। मौजूदा समय में धनंजय सिंह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के यूपी में अकेले ऐसे खेवनहार हैं, जो दो दफे विधायक औऱ एक बार सासंद रहे।

आज हम उन्हीं धनंजय सिंह के बाहुबल और दबंगई के अपराध के उन पन्नों को खोल रहे हैं, जो शायद आज के पहले तक आपके लिए अछूते रहे हों। तो हम बात उस धनंजय सिंह की कर रहे हैं, जो 90 के दशक में जौनपुर के तिलकधारी सिंह कॉलेज में इंटरमीडियट की पढ़ाई करने पहुंचे तो चेहरे पर ठीक से मुंछ की रेख भी नहीं आयी थी। कहते हैं उस जमाने में हड्डियों के ढांचे पर शर्ट-पैंट का लबादा ओढ़े धनंजय सिंह हर किसी से भिड़ने को तैयार रहते थे।

धनंजय सिंह की कुंडली में खून का दाग लगा साल 1992 में 

बकौल जौनपुरियों की धनंजय सिंह इतना मनबढ़ था कि सामने वाला आदमी चाहे कितना भी बलिष्ठ हो, धनंजय डरने वालों में से नहीं था। जौनपुर के साथ एक किस्सा लोकल एरिया में मशहूर है कि जौनपुर की मूली, मक्का और मक्कारी का कोई तोड़ नहीं है। अब भला जौनपुर के साथ मक्कारी कैसे जुड़ी इसे आप अराध की इस कहानी में आगे समझेंगे।

धनंजय सिंह की कुंडली में खून का दाग साल 1992 में उस समय लगा, जब टीडी कॉलेज से 12वीं की यूपी बोर्ड की परीक्षा दे रहे धनंजय सिंह पर पहली बार एक युवक की हत्या का आरोप लगा। बोर्ड की परीक्षा भी धनंजय सिंह को पुलिस हिरासत में देनी पड़ी और इस तरह से पूर्वांचल के अपराध की दुनिया में एक और अपराधी की फेहरिश्त जुड़ जाती है, जो काफी लंबे समय तक पुलिस की डायरी के पन्नों को भरती रहती है।

खैर उस मामले में बचते-बचाते धनंजय सिंह के परिवार ने आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ भेज दिया। यहां एक बात और जान लें कि 90 का दशक लखनऊ यूनिवर्सिटी के लिए सबसे खराब दौर माना जाता है। यूनिवर्सिटी में हो रहे अपराध के कारण हसनगंज थाने का रोजनामचा रोजाना लाल स्याही से सराबोर रहता था। यहां से छात्र या तो खद्दर पहनकर नेतागिरी करने निकलते थे या फिर तमंचा लेकर अपराधी बनने।

अभय सिंह और धनंजय सिंह लखनऊ यूनिवर्सिटी में शोले के जय-बीरू थे

जबकि इसी यूनिवर्सिटी ने अपने स्वर्णीम काल में भारत को दो-दो राष्ट्रपति दिये। जी हां, डॉक्टर जाकिर हुसैन और डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा इसी यूनिवर्सिटी के अमूल्य धरोहर थे। इनके अलावा सुरजीत सिंह बरनाला, अतुल अंजान, सैयद सिब्ते रजी, केसी पंत, सज्जाद जहीर और विजया राजे सिंधिया जैसे न जाने कितने नेताओं को इसी यूनिवर्सिटी ने राजनीति की दुनिया में दाखिल होने की सलाहियत दी।

90 का दशक लखनऊ यूनिवर्सिटी के अद्भुत पराभव की गाथा कहता है जब धनंजय सिंह टीडी कॉलेज से सीधे लखनऊ यूनिवर्सिटी के गोल्डन जुबली हॉस्टल पहुंचे। उसी समय फैजाबाद का एक और छात्र अभय सिंह दबंग बनने का सपना पाले गोल्डन जुबली में रहा करता था। अभय सिंह भी अपराध की दुनिया से होते हुए राजनीति में दाखिल हुआ और समाजवादी पार्टी की ओर से माननीय विधायक बना और जौनपुर के धनंजय सिंह का पहले जानी दोस्त और फिर बाद में जानी दुश्मन भी बना।

अभय सिंह और धनंजय सिंह ने देखते ही देखते लखनऊ यूनिवर्सिटी में शोले के जय-बीरू की तरह गदर मचाना शुरू कर दिया। एक अन्य दबंग छात्र अनिल सिंह का अपना अलग गैंग था, जिसके खास आदमी अजय सिंह की हत्या 1996 में कर दी गई। अजय सिंह आजमगढ़ का रहने वाला था और उसकी हत्या में अभय सिंह के साथ धनंजय सिंह का नाम जुड़ा और यहीं से धनंजय सिंह ने सही मायने में अपराध की दुनिया में एंट्री ले ली।

लखनऊ के गोम्स मर्डर से धनंजय सिंह कुख्यात बने

उस वक्त लखनऊ यूनिवर्सिटी में दिनदहाड़े बम चलना, गोलियां चलना, हॉकी-राड से सरेआम पिटाई करना रोजमर्रा की बात थी। इधर प्रोफेसर क्लास में पढ़ा रहे होते उधर कोई क्लास के बाहर बम फोड़ देता। धनंजय सिंह और अभय सिंह की जुगलबंदी ने यूनिवर्सिटी प्रशासन को इतना रूला दिया कि यूनिवर्सिटी ने उन्हें बिना बीए किये ही निकाल देने का फैसला किया। लेकिन बावजूद उसके धनंजय सिंह के गोल्डन जुबली वाले कमरे में मजाल नहीं थी कि कोई दूसरा छात्र रह सके। हॉस्टल में धनंजय सिंह का कमरा चाहे जिसके नाम से अलॉट हो, हमेशा उनके लिए खाली रहता क्योंकि यदाकदा भटकते हुए धनंजय सिंह और अभय सिंह हॉस्टल आकर उसी कमरे में रात बिताया करते थे।

लखनऊ में अपनी वारदात के लिए कुख्यात धनंजय सिंह का नाम करीब 176 साल पुराने ला मार्टिनियर स्कूल के टीचर फैड्रिक गोम्स की हत्या से भी जुड़ा। 7 मार्च 1997 के दिन सुबह के करीब 6 बजे ला मार्टिनियर स्कूल के बैचलर्स हॉस्टल में वॉर्डन फैड्रिक गोम्स की 18 गोली मारकर हत्या कर दी गई। मामले सीधे जुड़ा धनंजय सिंह से और यह मर्डर विशुद्ध रूप से ठेके का मर्डर था यानी पैसे लेकर सुपारी हत्या का मामला था।

इसके अलावा लखनऊ के हसनगंज में हुई संतोष सिंह की हत्या में भी धनंजय सिंह का नाम सामने आया था। लेकिन असली खेल तब शुरू हुआ जब लखनऊ में बन रहे अंबेडकर उद्यान के प्रोजेक्ट मैनेजर गोपाल शरण श्रीवास्तव की धनंजय सिंह गिरोह ने गोली मारकर हत्या कर दी। तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती गोपाल शरण श्रीवास्तव की हत्या से बहुत नाराज हुईं क्योंकि अंबेडकर उद्यान तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती का ड्रीम प्रोजेक्ट था।

मायावती के रडार पर आते ही धनंजय सिंह इनामिया बदमाश बने

वैसे भी मायावती उस समय ‘चढ़ गुंडन की छाती पर, मुहर लगा दे हाथी पर’ के नारे के साथ मुख्यमंत्री की गद्दी तक पहुंची थीं। अब भला सीएम साहब को यह कैसे बर्दाश्त होता कि लखनऊ में उनकी नाक के नीचे कोई धनंजय सिंह जैसा आदमी उनके ही ड्रीम प्रोजेक्ट के प्रोजेक्ट मैनेजर की गोली मारकर हत्या कर दे। बसपा सुप्रीमो मायावती ने धनंजय सिंह के अपराधकी फाइल तलब की तो पता चला कि अकेले लखनऊ के हसनगंज, अलीगंज, गाजीपुर, हुसैनगंज और हजरतगंजकोतवाली में हत्या समेत दर्जनों अपराध धनंजय सिंह के नाम पर दर्ज है।

धनंजय सिंह के अपराध की फाइल देखते ही मायावती आग-बबूला हो गईं। सबसे पहले गाज गिरी लखनऊ के तत्कालीन एसएसपी रजनीकांत मिश्रा पर। मायावती ने तुरंत उनका तबादला कर दिया। इसके अलावा उस समय एसपी ट्रांसगोमती बीएन सिंह, सीओ गाजीपुर केबी सिंह औऱ इंस्पेक्टर गाजीपुर अभिमन्यु सिंह को सस्पेंड कर दिया और यूपी शासन ने फरार धनंजय सिंह पर 50 हजार रुपये का इनाम रख दिया।

1997-98 में 50 हजार रुपये का इनामी होना, उस जमाने में अपराधी को धंधे में सबसे ऊंचे पायदान पर पहुंचा देता था और हुआ भी ठीक वैसा ही। इधर धनंजय सिंह का पुलिस ने इनाम बढ़ाया उधर धनंजय सिंह की वसूली का भाव भी आसमान छूने लगा। लखनऊ से लेकर पूर्वांचल तक हर दूसरे-तीसरे अपराध में धनंजय सिंह गिरोह का नाम आने लगा। पुलिस महकमा धनंजय सिंह गिरोह की मनबढ़ई से परेशान हो उठा। जिले की अपराध समीक्षा में पूर्वांचल के हर जिले के पुलिस कप्तान को डीजीपी से खूब खरी-खोटी सुनने को मिलती थी।

जब भदोही पुलिस ने कुख्यात 'धनंजय सिंह' का किया 'एनकाउंटर'

फरार धनंजय सिंह को पुलिस सरगर्मी से तलाश रही थी तभी एक ऐसा वाकया हुआ कि अपराधी के अपराध को बेनकाब करने वाली पुलिस के चेहरे से बर्बरता का वो पर्दा उठा, जिसे देखकर यूपी का प्रशासन और जनता दोनों दंग रह गये। 17 अक्टूबर 1998 को वाराणसी और मिर्जापुर से नये-नये काटकर बने जिले भदोही में पुलिस का एक एनकाउंटर हुआ। भदोही के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक चंद्र प्रकाश एनकाउंटर के बाद प्रेस कांफ्रेंस की और मीडिया से बताया कि भदोही पुलिस ने 50 हजार रुपये का दुर्दांत अपराधी धनंजय सिंह को गिरोह के अन्य तीन सदस्यों के साथ मुठभेड़ में मार गिराया है।

एसपी भदोही ने घटना के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि धनंजय गिरोह एक पेट्रोल पंप लूटने के लिए आया था, ठीक उसी वक्त पुलिस को सूचना मिली। मारे गये लोगों में शमीम, अजय सिंह और एक अन्य बदमाश के साथ सरगना धनंजय सिंह भी शामिल था। इस एनकाउंटर को अंजाम दिया था तत्कालीन सीओ भदोही अखिलानंद मिश्र ने। अपराधियों से मुठभेड़ में सबसे आगे थे भदोही के इंस्पेक्टर बहादुर राम। उन्होंने तीन अपराधियों को वहीं ढेर कर दिया जबकि चौथे को थानाध्यक्ष औराई ने मार गिराया था।

पुलिस अधीक्षक चंद्र प्रकाश की प्रेस कांफ्रेंस के अलगे दिन लखनऊ, बनारस, जौनपुर, गाजीपुर, भदोही सहित पूर्वांचल के तमाम जिलों के अखबार कुख्यात धनंजय के एनकाउंटर के किस्सों से रंग गये। मुठभेड़ को अंजाम देने वाली पुलिस टीम की ‘वीरगाथा’ से अखबारों के कई पन्ने भरे पड़े थे। सूबे की जनता ने चैन की सांस ली कि धनंजय सिंह का आतंक खत्म हुआ। लेकिन मुठभेड़ के इस खेल में दिलचस्प झोल अभी बाकी था।

भदोही पुलिस ने धनंजय के नाम पर किरण हरिजन को मार दिया

अखबार में मृत अपराधियों के छपे फोटो को देखकर मुठभेड़ के अलगे दिन भदोही थाने पर एक बूढ़े मां-बाप पहुंचे और उन्होंने थाने के मुंशी को बताया कि आप लोग जिसे धनंजय सिंह बता रहे हैं और जिसकी फोटो अखबार में छपी है, वह धनंजय सिंह नहीं बल्कि उनका बेटा किरण हरिजन है। थाने के मुंशी ने दोनों को डांटकर भगा दिया लेकिन वो अपनी बात पर अड़े रहे और बताया कि मारा गया शख्स बनारस के भोजूबीर का किरण हरिजन है और उनका बेटा है।

बूढ़े मां-बाप ने पुलिस से मांग की कि पोस्टमार्टम के बाद किरण हरिजन की लाश उन्हें दी जाए ताकि वो उसका अंतिम संस्कार कर सकें। पुलिस के भगाने के बाद भी वो मोर्चरी पर डटे रहे और इस तरह पुलिस का भेद प्रेस वालों के सामने खुल गया। अगले दिन सभी अखबारों ने छापा कि भदोही एनकाउंटर 'फर्जी' है।

इसके बाद तो भदोही से लखनऊ तक हड़कंप मच गया। डीजीपी दफ्तर से तुरंत तत्कालीन आईजी बनारस ओपीएस मलिक और डीआईजी मिर्जापुर को आदेश दिया गया कि वो मौके पर जाएं और मामले की जांच करके पुलिस मुख्यालय लखनऊ को सूचित करें। आदेश के बाद आईजी और डीआईजी ने मौके पर पहुंच कर तफ्तीश की और लखनऊ मुख्यालय को इस एनकाउंटर के फर्जी होने की सूचना दी।

धनंजय सिंह जिंदा पेश हुए जौनपुर की कोर्ट में

वहीं दूसरी तरफ धनंजय सिंह के परिवार ने भी मारे गये कथित धनंजय सिंह का शव लेने से मना कर दिया। फेक एनकाउंटर की खबर से सकते में आया पुलिस मुख्यालय अभी मंथन कर रहा था कि तभी कुछ दिनों के बाद असली धनंजय सिंह ने जौनपुर की जिला अदालत में एक पुराने मामले में सरेंडर कर दिया। अब तो यूपी पुलिस को चेहरा छुपाये भी नहीं बन रहा था और न ही वो चेहरा दिखाने के काबिल रह गई थी।

मुख्यमंत्री मायावती सरकार इस फर्जी एनकाउंटरसे भारी दबाव में आ गई और जांच को तुरंत सीबीसीआईडी के हवाले कर दिया गया। सीबीसीआईडी ने जांच रिपोर्ट में इस एनकाउंटर को पूरी तरह से फर्जी और सुनियोजित हत्या करार दिया। इस फर्जी एनकाउंटर में सीओ भदोही अखिलानंद मिश्रा, इंस्पेक्टर भदोही बहादुर राम, थानाध्यक्ष औराई समेत कुल 22 पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज हुआ। भदोही फर्जी मुठभेड़ के मामले में अभी भी कोर्ट में केस चल रहा है।

उधर जौनपुर कोर्ट में सरेंडर करने के बाद धनंजय सिंह जेल चला गया लेकिन बाहर उसके गुर्गे इशारा पाते ही वारदात को अंजाम देते और वसूली का काम बिना किसी रोकटोक के करते रहे। थोड़े ही दिनों के बाद धनंजय सिंह का नाम जुड़ा लखनऊ के हजरगंज के इलाके में हुई स्वास्थ्य महानिदेशक डॉक्टर बच्ची लाल के हत्या में लेकिन सबूतों के अभाव में धनंजय सिंह के खिलाफ इस मामले में कोई कारवाई नहीं हुई।

जौनपुर के विनोद नाटे थे धनंजय सिंह और मुन्ना बजरंगी के गुरु

अब हम आपको बताते हैं कि धनंजय सिंह कैसे अपराध की कोटरी से राजनीति की दुनिया में दाखिल हुआ। दरअसल धनंजय सिंह का राजनीति में आना एक संयोग मात्र था लेकिन यह संयोग भी तब बना जब उसके गुरु की मौत हुई। जी हां, जौनपुर का दबंग विनोद सिंह ऊर्फ विनोद नाटे जौनपुर के रारी विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहा था। ये वही विनोद नाटे था, जिसे बागपत में जेल में मारा गया मुन्ना बजरंगी भी अपना गुरु मानता था। दुर्घटनावश एक रोड एक्सिडेंट में विनोद नाटे की मौत हो गई तब धनंजय सिंह को लगा कि मौका अच्छा है। गुरु का बनाया राजनीति कै पिच तैयार है, क्यों न नेतागिरी की एक पारी खेल ली जाए।

कहते हैं कि धनंजय सिंह ने विनोद नाटे की एक फोटो ली और उसे अपने सीने से लगाकर मरे हुए गुरु के नाम वोट मांगने लगा। जौनपुर की जनता का दिल पसीज गया और इस तरह से धनंजय सिंह पहुंच गया सीधे लखनऊ विधानसभा की दहलीज पर। कभी 50 हजार का भगोड़ा रहा धनंजय सिंह एक झटके में माननीय बन गया। खैर बात तो किस्मत की है, धनंजय सिंह का नसीब देख पूर्वांचल का हर कट्टे-तमंचे वाला हड्डी-गड्डीधारी बदमाश माननीय बनने का ख्वाब पालने लगा। इस बीच साल 2002 में माननीय धनंजय सिंह एक दिन अपने लाव-लश्कर के साथ बनारस पहुंचा।

बनारस के लंका पर मशहूर केशव पान भंडार पर थोड़ी देर के लिए अपने दोस्तों और परिचितों से मिलने के लिए रूका। लेखक वहीं पर पहली बार धनंजय सिंह से मिला। बहुत ही आत्मीयता से धनंजय ने बात की। एक बारगी तो लगा ही नहीं की धनंजय अपराध की दुनिया का कुख्यात और राजनीति की दुनिया का माननीय है। वैसे धनंजय सिंह पान नहीं खाता है इसलिए केशव की दुकान पर उसने पान नहीं खाया। लोगों से बातचीत की और फिर उसका काफिला लंका से कचहरी की तरफ निकला, तभी नदेसर के पास टकसाल सिनेमा के ठीक सामने अचानक खुल गया AK-47 का मुंह।

धनंजय को भगोड़ा बनाने वाली मायावती ने ही उन्हें सांसद बनाया

धनंजय सिंह के काफिले पर जबरदस्त हमला हुआ। हमले में धनंजय सिंह, उसके सरकारी गनर और तीन अन्य लोगों को गोली लगी। हालांकि इस हमले में किसी की मौत नहीं हुई। हमले का आरोप धनंजय सिंह ने कभी अपने जानी दोस्त रहे अभय सिंह पर लगाया। अभय सिंह और धनंजय सिंह के बीच सरकारी ठेकों को लेकर काफी विवाद चल रहा था। दोनों के बीच आज भी यह दुश्मनी जारी है।

साल 2002 के बाद 2007 का विधानसभा चुनाव आ गया और इस बार धनंजय सिंह को नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने उसी रारी विधानसभा से टिकट दिया औऱ धनंजय सिंह को जनता ने भी दूसरी बार दे दिया माननीय का सर्टिफिकेट यानी वो चुनाव जीतकर फिर पहुंच गया विधानसभा। लेकिन धनंजय सिंह इस बात को समझ रहा ता कि नीतीश की पार्टी का यूपी में कोई भविष्य नहीं है। इसलिए उसने कभी मायावती के नजदीक रहे बाबू सिंह कुशवाहा को पकड़ा। कहते हैं कि बाबू सिंह कुशवाहा ने पैरवी की और मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग के तरह 2009 के लोकसभा चुनाव में धनंजय सिंह को जौनपुर लोकसभा सीट से बसपा का टिकट दे दिया।

धनंजय सिंह साल 2009 में माननीय विधायक से माननीय सांसद हो गया और लखनऊ विधानसभा की जगह दिल्ली के संसद भवन पहुंच गया। ये राजनीति भी कितनी विचित्र है, कभी वही मायावती थीं, जिन्होंने साल 1998 में धनंजय सिंह के अपराध के कारण कई पुलिस अधिकारियों को सजा दी। धनंजय सिंह को 50 हजार का इनामी बदमाश बनाया। साल 2009 में वक्त ने ऐसी करवट ली की, वही धनंजय सिंह, जो मायावती के खौफ से भगोड़े बन गया था। अब उन्हीं की कृपा से माननीय सासंद हो गया था।

मायावती ने धनंजय सिंह को बसपा से निकाला

दरअसल ये सारा खेल नारों का है। ध्यान से समझिये पहले बहुजन समाज पार्टी का नारा था ‘तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’ या फिर ‘चढ़ गुंडन की छाती पर, मुहर लगा दे हाथी पर’। वही नारा साल 2007 के आते-आते ‘हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा-विष्णु महेश है’ या फिर ‘पंडित शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा’ में बदल गया। बसपा का ‘बहुजन हिताय ‘धीरे-धीरे ‘सर्वजन हिताय’ में बदल गया और उसी आंधी में धनंजय सिंह जैसा भी माननीय बन गया।

धनंजय सिंह साल 2009 में सांसद हो गया लेकिन धनंजय सिंह की कुडंली में लिखा राजयोग अब ढलान की ओर बढ़ रहा था यानी साल 2009 के बाद धनंजय सिंह की राजनीति में शाम होनी शुरू हो गई। जल्द ही साल 2011 में धनंजय सिंह बसपा सुप्रीमो मायावती से टकरा बैठा और मायावती ने बिना देरी किये चाय की मक्खी की तरह धनंजय सिंह को बसपा ने बाहर निकाल फेंका। वो दिन था और आज दिन है, माननीय का तमगा धनंजय सिंह के लिए भूतकाल की बात हो गया यानी उसके बाद से धनंजय सिंह ने न जाने कितने प्रयास किये वो न तो दिल्ली की संसद पहुंच सका और न ही लखनऊ की विधानसभा।

धनंजय सिंह ने साल 2014 का लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन मोदी लहर में उसे हार का मुंह देखना पड़ा। उसके बाद साल 2017 में (पहले रारी सीट हुआ करती थी) मल्हानी सीट से विधानसभा का भी चुनाव लड़ा लेकिन विधानसभा नहीं पहुंच सका। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में वो बीजेपी से टिकट के जुगाड़ में था लेकिन गोटी सेट नहीं हुई और उसने चुनाव नहीं लड़ा।

धनंजय सिंह की दूसरी पत्नी ने कबूली नौकरानी की हत्या का आरोप

धनंजय सिंह की जिंदगी में अपराध और सफेदपोश नेतागिरी के अलावा एक और पहलू है और वह उनकी निजी जिंदगी से जुड़ा हुआ है। धनंजय सिंह का वैवाहिक जीवन। धनंजय सिंह ने कुल तीन शादियां कीं। पहली पत्नी मीनाक्षी सिंह शादी के कुछ दिनों के बाद साल 2007 में लखनऊ के गोमती नगर स्थित आवास पर रहस्यमयी तरीके से मृत पायी गई। उसके बाद धनंजय सिंह ने दूसरी शादी दांतों की डॉक्टर जागृति सिंह से की।

मूलतः गोरखपुर की रहने वाली डॉक्टर जागृति सिंह दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में डेंटिस्ट थीं। सांसद के तौर पर धनंजय सिंह को दिल्ली में साउथ एवेन्यू की कोठी नंबर 175 अलॉट हुई थी। इसी में धनंजय सिंह पत्नी जागृति सिंह के साथ रहा करता था। दिल्ली पुलिस के मुताबिक 2 नवंबर 2013 को तत्कालीन जौनपुर के सांसद धनंजय सिंह के आवास पर उनकी घरेलू नौकरानी की रहस्यमय स्थिति में मौत हो गई थी।

दिल्ली पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला की नौकरानी को मृत्यु से पहले टार्चर किया गया था। पुलिस ने 302 का मामला दर्ज करके तहकीकात शुरू की। शक की सुई सीधे धनंजय सिंह की पत्नी जागृति सिंह पर गई। पुलिस पूछताछ में जागृति सिंह ने अपना अपराध कबूल लिया। दिल्ली पुलिस ने जागृति सिंह को नौकरानी की हत्या के मामले में गिरफ्तार कर लिया। इस घटना से ठीक एक साल पहले यानी साल 2012 में धनंजय सिंह ने जागृति सिंह को जौनपुर की मल्हानी सीट से विधानसभा का चुनाव लड़वाया था लेकिन जागृति सिंह को उस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। नौकरानी की हत्या के मामले में फंसने के बाद धनंजय सिंह और जागृति सिंह के बीच तलाक हो गया।

धनंजय सिंह ने निप्पो बैटरी के मालिक के बेटी से की तीसरी शादी

इसके बाद धनंजय सिंह ने साल 2017 में हैदराबाद के मशहूर उद्योगपति की बेटी श्रीकला रेड्डी से पेरिस में शादी की। श्रीकला के पिता निप्पो बैटरी कंपनी के मुखिया थे। धनंजय सिंह के ससुर यानी श्रीकला रेड्डी के पिता जितेंद्र रेड्डी तेलंगाना के हूजूरनगर से निर्दलीय विधायक रहे। श्रीकला के पिता का निधन हो चुका है। अगस्त 2019 में हैदराबाद में बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में श्रीकला रेड्डी ने भाजपा की सदस्यता ली। वर्तमान में श्रीकला रेड्डी जौनपुर की जिला पंचायत अध्यक्ष हैं।

कहते हैं कि धनंजय सिंह की महत्वाकांक्षा ने उसे अपराध की दुनिया में धकेल दिया। जौनपुर की राजनीति में खासा दखल रखने वाले धनंजय सिंह की छवि आज भी बाहुबली की मानी जाती है। इसका ताजा उदाहरण देखने को मिला 6 जनवरी 2021 की शाम को। जब मऊ के ब्लॉक प्रमुख के प्रतिनीधि अजीत सिंह की हत्या लखनऊ के विभूति खंड स्थित कठौता चौराहे पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर कर दी गई।

इस हत्याकांड के तार सीधा धनंजय सिंह से जुड़ा। पुलिस ने मुकदमे में पूर्व सांसद धनंजय सिंह, उनके करीबी विपुल सिंह और शूटर रवि यादव को नामजद किया। इस मामले में पुलिस धनंजय सिंह की तलाश करती रही और धनंजय सिंह पुलिस के सामने होते हुए भी फरार रहा। कहा यह जाता है कि धनंजय सिंह जौनपुर के ही आसपास रहता है और अक्सर बाजार में दिखाई भी देता है लेकिन सियासी रसूख के कारण पुलिस भूतपूर्व माननीय को देखकर भी अनजान बनी रही और फरार होने की बात कहती रही।

खैर, इस मामले में भी धनंजय सिंह को कोर्ट से जमानत मिल गई। आज की तारीख में धनंजय सिंह कभी दिल्ली, कभी हैदराबाद तो कभी जौनपुर के बीच चक्रमण करता हुआ दिखाई देता है। कुल मिलाकर आज की तारीख में भी धनंजय सिंह का प्रभाव जौनपुर पर जस का तस बना हुआ है। ये है धनंजय सिंह के बाहुबल का पूरा किस्सा।

Web Title: Crime story of Bahubali leader Dhananjay Singh of UP's Jaunpur

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