ड्रग्स की गिरफ्त में 20 से 25 आयु वर्ग के लड़के?, "उड़ता पंजाब" की राह पर बिहार, मोबाइल लूटने व चेन स्नैचिंग की दुनिया में प्रवेश?
By एस पी सिन्हा | Updated: November 29, 2025 15:51 IST2025-11-29T15:50:06+5:302025-11-29T15:51:18+5:30
डॉक्टर, प्रोफेसर, इंजीनियर और आर्मी अफसरों समेत कई ऐसे लोग हैं जो अपने बच्चों को सफलता के शीर्ष पर देखना चाहते थे।

सांकेतिक फोटो
पटनाः बिहार में नशे का कारोबार लगातार बढ़ता जा रहा है। युवा और किशोर ड्रग्स की गिरफ्त में आ रहे हैं और तस्करी के लिए महिलाओं का इस्तेमाल हो रहा है। कहा जाए तो "उड़ता पंजाब" की राह पर ही बिहार भी चल चुका है। राज्य के युवाओं रगों में नशा बसता जा रहा है। इसकी चपेट में युवा तेजी से आ रहे हैं। स्मैक और हेरोईन आदि सुखे के धुएं में जवानी घुट रही है। राज्य के डॉक्टर, प्रोफेसर, इंजीनियर और आर्मी अफसरों समेत कई ऐसे लोग हैं जो अपने बच्चों को सफलता के शीर्ष पर देखना चाहते थे। लेकिन उन्हें आज अपने बेटों को नशे से जूझते देखना पड़ रहा है।
राजधानी पटना के एक नशा मुक्ति केंद्र के संचालक के अनुसार केंद्र में आने वाले लोगों में करीब 70 प्रतिशत से अधिक संख्या 20 से 25 आयु वर्ग के लड़कों की है। इनमें से लगभग आधे स्मैक के आदी हो चुके हैं तो बाकी शराब, कोकीन और गांजे के लती हैं। जानकारों के अनुसार किशोरों तथा युवाओं के बीच मादक पदार्थों में खासकर स्मैक की लत काफी तेजी से बढ़ी है।
सबसे चौंकाने बात तो यह है कि कई ऐसे किशोर व युवा अपनी लत पूरी करने के लिए मोबाइल लूटने व चेन स्नैचिंग आदि के जरिए अपराधों की दुनिया में प्रवेश करते हैं और दलदल में फंसते हुए अंतत: ड्रग्स के अवैध कारोबार का हिस्सा बन जाते हैं। कई ऐसे युवा गिरफ्तार भी किए गए हैं जो कई लूट कांडों में संलिप्त पये गये।
जांच के बाद यह बात सामने आई है कि गिरफ्तार किए गए युवक नशे के लिए लूट की घटनाओं को भी अंजाम देते हैं। बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, इस अवधि में नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) अधिनियम, 1985 के तहत गिरफ्तारी में इजाफा हुआ है।
वर्ष 2016 में 496 गिरफ्तारियां हुई थीं, जबकि 2024 मे यह बढ़कर 1,813 तक पहुंच गई। चालू कैलेंडर वर्ष के मई महीने तक एनडीपीएस अधिनियम के तहत 569 मामले दर्ज किए गए और 577 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। जानकारों के अनुसार बिहार में शराबबंदी 2016 में हुई थी। उसके बाद से आंकड़ों के अनुसार इन 9 वर्षों में नशीली पदार्थों से संबंधित मामलों में लगभग दस गुना वृद्धि दर्ज की गई है।
ईओयू की रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई कि इन अवधि में चरस, स्मैक, ब्राउन शुगर और डोडा (अफीम की भूसी) जैसे मादक पदार्थों की जब्ती में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसका मतलब यह हुआ कि बिहार में शराब की जगह नशे की गिरफ्त में आ चुके लोग चरस, स्मैक, ब्राउन शुगर और अफीम का सेवन करने लगे हैं।
ईओयू के आंकड़ों के अनुसार, ड्रग्स से जुड़े मामले 2016 में 518 थे, जो 2024 तक बढ़कर 2,411 हो गए। इसी तरह, एनडीपीएस एक्ट के तहत गिरफ्तारियां 496 से बढ़कर 1,813 हो गई हैं। इस दौरान नशीले पदार्थों की जब्ती में भी भारी वृद्धि हुई है। दोड़ा (अफीम का भुजा) की जब्ती 2016 में 15 किग्रा हुई थी, जो 2024 में बढ़कर 5,235 किग्रा हो गई।
इसी तरह चरस 2016 में 88 किग्रा जब्त किया गया था, जो 2024 में बढ़कर 277 किग्रा हो गया। उसी तहर स्मैक (हेरोइन) की जब्ती 2016 में 220 ग्राम थी, जो 2024 में बढकर 7 किग्रा हो गया। वहीं, केमिकल ड्रग्स और सिरप की जब्ती 2016 में 29,861 बोतलें थीं जो 2024 में बढकर 1.17 लाख बोतलें हो गईं।
बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद बिहार में शराब के अलावा मादक पदार्थों में सबसे अधिक गांजा, अफीम व चरस की तस्करी हो रही है। राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) की भारत में तस्करी पर साल 2024-25 की रिपोर्ट के मुताबिक गांजे की जब्ती के मामले में बिहार पहले नंबर पर है। इस साल जून तक बिहार में कुल 13,446 किलोग्राम गांजा जब्त किया गया है।
गृह मंत्रालय को हाल में भेजी गई एक रिपोर्ट में सीमांचल में फैलते ड्रग्स कारोबार के पीछे खुफिया एजेंसियों ने बड़ी साजिश के तहत राष्ट्रविरोधी ताकतों की संलिप्तता की आशंका जताई है। सूत्रों के अनुसार रिपोर्ट में कहा गया है कि नॉर्थ ईस्ट के रास्ते सीमांचल में स्मैक, चरस, गांजा व ब्राउन शुगर जैसी ड्रग्स की सप्लाई की जा रही है।
आशंका जताई गई है कि पाकिस्तान व चीन में बैठे लोगों की मदद से नॉर्थ ईस्ट से सीमांचल तक का नेटवर्क संचालित किया जा रहा है। बता दें कि बिहार में अब तक शराबबंदी कानून तोड़ने के मामले में कुल पांच लाख से ज़्यादा 5,05,951 केस दर्ज हो चुके हैं। बीते नौ साल में करीब ढाई करोड़ लीटर (24226060) अवैध शराब जब्त भी की गई है।
ईओयू के डीआईजी मानवजीत ढिल्लों ने कहा कि शराबबंदी के बाद से, हमने ग्रामीण इलाकों में गांजे और शहरी इलाकों में स्मैक की खपत में वृद्धि दर्ज की गई है। शहरी इलाकों में युवा मेथ, ब्राउन शुगर और कफ सिरप (इनमें कोडीन होता है, जो एक ओपिओइड है) जैसे सिंथेटिक नशीले पदार्थों का प्रयोग तेज़ी से कर रहे हैं। सिंथेटिक ड्रग्स लैब में गांजा और अफीम से तैयार किए जाते हैं।
वस्तुत: प्राकृतिक नशीले पदार्थों से लैब में नशीले पदार्थ तैयार किए जाते हैं जिसे सिंथेटिक ड्रग्स कहा जाता है। यह प्राकृतिक नशा के मुकाबले कई गुणा ज्यादा शक्तिशाली होते हैं। सिंथेटिक ओपियोइड्स का इस्तेमाल दर्द कम करने या मरीजों को सर्जरी से पहले बेहोश करने के लिए किया जाता है। लेकिन इसके ज्यादा इस्तेमाल से किसी मौत भी हो सकती है।
पटना मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (पीएमसीएच) और इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (आईजीआईएमएस) के डॉक्टरों ने पिछले छह-सात वर्षों में नशीली दवाओं, नींद की गोलियों, दर्द निवारक दवाओं और अन्य कृत्रिम पदार्थों के आदी हो चुके लोगों की संख्या में वृद्धि की पुष्टि की है।
उनका कहना है कि पिछले छह-सात सालों में हर महीने कम से कम 200 ऐसे मरीजों का इलाज किया गया है। इनमें से ज़्यादातर मरीज हेरोइन, ब्राउन शुगर, गांजा, स्मैक, डोडा आदि जैसे नशीले पदार्थों या इनहेलेंट (गोंद, व्हाइटनर, बोनफिक्स चिपकने वाले पदार्थ आदि) के आदी हो चुके हैं।