आयात शुल्क कम होने के बाद पामोलीन से सस्ता हुआ सूरजमुखी रिफाइंड तेल

By भाषा | Updated: October 30, 2021 19:07 IST2021-10-30T19:07:38+5:302021-10-30T19:07:38+5:30

Sunflower refined oil becomes cheaper than palmolein after import duty is reduced | आयात शुल्क कम होने के बाद पामोलीन से सस्ता हुआ सूरजमुखी रिफाइंड तेल

आयात शुल्क कम होने के बाद पामोलीन से सस्ता हुआ सूरजमुखी रिफाइंड तेल

नयी दिल्ली, 30 अक्टूबर आयात शुल्क में हाल में की गई कमी के बाद पामोलीन से 500 डॉलर प्रति टन महंगा बिकने वाला सूरजमुखी का रिफाइंड तेल अब पामोलीन से पांच रुपये किलो सस्ता हो गया है।

बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि छह माह पूर्व सूरजमुखी रिफाइंड, पामोलीन तेल के मुकाबले लगभग 500 डॉलर (30-35 रुपये किलो) महंगा था लेकिन आयात शुल्क में की गई कमी के बाद सीपीओ के मुकाबले सूरजमुखी लगभग पांच रुपये किलो सस्ता हो गया है।

सूत्रों ने कहा कि विदेशी बाजारों में तेजी के रुख के बीच दिल्ली मंडी में शनिवार को सोयाबीन तेल-तिलहन, पामोलीन कांडला और सरसों तिलहन में सुधार आया जबकि नई फसल आने के बीच भाव टूटने से मूंगफली तेल-तिलहन और बिनौला तेल में गिरावट दर्ज हुई।

सूत्रों ने कहा कि मलेशिया एक्सचेंज में दो प्रतिशत की तेजी है जबकि कल रात शिकॉगो एक्सचेंज में एक प्रतिशत की तेजी रही। उन्होंने कहा कि स्थानीय त्योहारी मांग बढ़ने के बीच आवक घटने से सरसों तिलहन और सोयाबीन तेल-तिलहन के भाव में सुधार आया। मलेशिया एक्सचेंज में सुधार के कारण पामोलीन कांडला के भाव भी लाभ दर्शाते बंद हुए। दूसरी ओर नई फसल की आवक शुरू होने के कारण बिनौला के भाव टूटे हैं। वहीं सोयाबीन उत्पादक किसान कम भाव पर बिक्री को राजी नहीं हैं क्योंकि वे पहले ऊंचे भाव पर माल बेच चुके हैं और कम भाव पर मंडियों में आवक कम हुई है। केवल वे किसान ही सोयाबीन की मजबूरन बिक्री कर रहे जिन्हें पैसे की तत्काल आवश्यकता है।

सूत्रों ने कहा आगामी छुट्टियों के कारण तेल संयंत्र वालों की सोयाबीन की मांग है। इसके अलावा डीओसी की भी कुछ मांग निकल आई है जिसकी वजह से सोयाबीन तेल-तिलहन कीमतों में सुधार आया।

उन्होंने कहा कि आयातकों को पामोलीन मंडी में बेचने से नुकसान हो रहा है क्योंकि देश में पहले से पामोलीन का काफी आयात हो रखा है और अपने आयात की खेप को खपाने के लिए आयातक सस्ते में बेचने को मजबूर हैं। देश में आयात शुल्क कम करने के बाद मलेशिया में सीपीओ का भाव 1,200 डॉलर से बढ़ाकर 1,440 डॉलर प्रति टन कर दिया गया। सरकार अगर गरीब उपभोक्ताओं को राहत देना चाहती है, तो उसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिये आयातित तेल का वितरण करने के बारे में सोचना चाहिये ताकि शुल्क में कटौती का लाभ गरीब उपभोक्ता को मिल सके। बाकी खुदरा बिक्री केन्द्रों पर भाव में बदलाव नहीं दिखता, क्योंकि उन्हें पीछे से पुरानी दर पर माल दिया जाता है। विदेशी कंपनियां इन्हीं आयातकों से माल खरीदकर 10-15 प्रतिशत ऊंचे भाव पर माल बेच देती हैं जिस लाभ का एक भी प्रतिशत लाभ खुदरा दुकानदारों को आपसी प्रतिस्पर्धा के कारण नहीं मिल पाता है। बड़ी कंपनियों का माल रखने से उनका बाकी माल बिकता है, इसलिए छोटे कारोबारी भी बड़ी कंपनियों का माल अपनी दुकानों में रखते हैं।

सूत्रों ने कहा कि सरकार को ‘स्टॉक लिमिट’ लागू करने के बजाय बड़ी कंपनियों के खरीद बिक्री के भाव पर नजर रखनी होगी जहां से सारी गड़बड़ी हो रही है और शुल्क कटौती का लाभ उपभोक्ताओं को नहीं मिल पा रहा है।

सूत्रों ने कहा कि समाचार पत्रों में सूरजमुखी का भाव पामोलीन से काफी अधिक बताया जा रहा है। लेकिन वास्तविकता पर नजर डालें तो पाते हैं कि सीपीओ तेल, सूरजमुखी से 10 डॉलर महंगा बैठता है। सीपीओ का आयात भाव 1,440 डॉलर प्रति टन है जबकि सूरजमुखी तेल का आयात भाव 1,450 डॉलर टन बैठता है। सीपीओ का प्रसंस्करण कर उसका पामोलीन तेल बनाने का खर्च आठ रुपये किलो का है जबकि सूरजमुखी के प्रसंस्करण का खर्च पांच रुपये किलो बैठता है। सीपीओ और सूरजमुखी पर आयात शुल्क क्रमश: 8.25 प्रतिशत और 5.50 प्रतिशत है।

उन्होंने कहा कि आयात शुल्क और प्रसंस्करण खर्च मिलाकर भी पामोलीन से सूरजमुखी का तेल 500 रुपये क्विंटल या पांच रुपये लीटर सस्ता पड़ना चाहिये। फिर बाजार में पामोलीन और सूरजमुखी के भाव में इतना अंतर कैसे है? यही समस्या का मूल कारण है कि कंपनियों के खरीद और बिक्री भाव पर नजर रखी जाये, तो सरकार को अपेक्षित परिणाम मिल सकते हैं।

सरकार को इस बात पर ध्यान देना होगा कि पामोलीन और सूरजमुखी दोनों तेलों का आयात करने पर सूरजमुखी का भाव पामोलीन से पांच रुपये किलो सस्ता पड़ता है, तो समाचार पत्रों में सूरजमुखी का भाव पामोलीन से 30-40 रुपये किलो ऊंचा कैसे बताया जा रहा है।

विदेशी बाजारों में तेजी के रुख के बीच स्थानीय स्तर पर सोयाबीन के तेल रहित खल (डीओसी) और सरसों खली की मांग है। इसी वजह से सरसों खली की मांग लगभग पांच साल के उच्चतम स्तर पर है।

सूत्रों ने कहा कि सरसों की चौतरफा मांग के बीच देश में ब्रांडेड तेल कंपनियों के अलावा खुदरा तेल मिलों की सरसों तेलों की मांग काफी बढ़ रही है। त्योहारों के साथ जाड़े की सरसों मांग बढ़ने से इन छोटी तेल मिलों की दैनिक मांग लगभग 85 हजार बोरी से बढ़कर लगभग एक लाख बोरी सरसों की हो गयी है। मांग बढ़ने के साथ-साथ सरसों की उपलब्धता निरंतर कम होती जा रही है। यह उपलब्धता दिवाली के बाद और कम हो जायेगी। आगामी फसल में लगभग चार साढ़े चार माह की देर है। मांग बढ़ने के साथ उपलब्धता निरंतर घटने के कारण सरसों तेल-तिलहन कीमतों में सुधार आया।

बाकी तेल तिलहनों के भाव अपरिवर्तित रहे।

बाजार में थोक भाव इस प्रकार रहे- (भाव- रुपये प्रति क्विंटल)

सरसों तिलहन - 8,975 - 9,005 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये।

मूंगफली - 6,100 - 6,185 रुपये।

मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात)- 13,800 रुपये।

मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड तेल 2,015 - 2,140 रुपये प्रति टिन।

सरसों तेल दादरी- 17,950 रुपये प्रति क्विंटल।

सरसों पक्की घानी- 2,710 -2,750 रुपये प्रति टिन।

सरसों कच्ची घानी- 2,785 - 2,895 रुपये प्रति टिन।

तिल तेल मिल डिलिवरी - 15,500 - 18,000 रुपये।

सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 13,950 रुपये।

सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 13,750 रुपये।

सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 12,450

सीपीओ एक्स-कांडला- 11,430 रुपये।

बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 12,800 रुपये।

पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 12,980 रुपये।

पामोलिन एक्स- कांडला- 11,850 (बिना जीएसटी के)।

सोयाबीन दाना 5,400 - 5,500, सोयाबीन लूज 5,200 - 5,300 रुपये।

मक्का खल (सरिस्का) 3,825 रुपये।

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