बैंक यूनियन ने कहा, बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी को कम करना कोई समाधान नहीं
By भाषा | Published: November 1, 2019 04:03 PM2019-11-01T16:03:41+5:302019-11-01T16:03:41+5:30
ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कंफेडरेशन के संयुक्त महासचिव संजय दास ने कहा कि सरकारी बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से नीचे लाकर उन्हें सीवीसी के दायरे से दूर करना समाधान नहीं है।
सरकारी बैंकों के कर्मचारियों एवं अधिकारियों के संगठनों ने बैंकिंग क्षेत्र के संकट को दूर करने के लिये सरकारी बैंकों का निजीकरण करने के नोबेल विजेता अभीजित बनर्जी के सुझाव से असहमति व्यक्त की है। बनर्जी ने हाल ही में कहा था कि सरकार को सरकारी बैंकों में अपनी हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से कम करना चाहिये, ताकि केंद्रीय सतर्कता आयोग के हस्तक्षेप के बिना निर्णय लिये जा सकें।
यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस के संयोजक (पश्चिम बंगाल) सिद्धार्थ खां ने पीटीआई भाषा से कहा, 'हमें यह पता नहीं चलता है कि सरकारी बैंकों के निजीकरण से संकट कैसे दूर होगा? गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) की दिक्कत मुख्यत: आर्थिक सुस्ती, बैंकिंग प्रणाली में अच्छे प्रशासन का अभाव और राजनीतिक हस्तक्षेप हैं। केंद्र सरकार की हिस्सेदारी को बेचना कोई समाधान नहीं है।'
ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कंफेडरेशन के संयुक्त महासचिव संजय दास ने कहा कि सरकारी बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से नीचे लाकर उन्हें सीवीसी के दायरे से दूर करना समाधान नहीं है। सीवीसी के कारण बैंकिंग प्रणाली में चीजें दुरुस्त व संतुलित रहती हैं।
बैंक एंपलाइज फेडरेशन ऑफ इंडिया के उपाध्यक्ष प्रदीप बिस्वाल ने पीटीआई से कहा, 'मुझे यह नहीं पता कि अभिजीत बनर्जी ने किस पृष्ठभूमि में ऐसा कहा, लेकिन हम सरकारी बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी कम करने के विरोध में हैं। यह एनपीए संकट के लिये किसी तरह से समाधान नहीं है।'