रैनबैक्सी-दाइची मामला: न्यायालय ने वित्तीय संस्थानों से मालविन्दर, शिविन्दर के कर्ज का ब्योरा मांगा

By भाषा | Updated: February 18, 2021 22:17 IST2021-02-18T22:17:58+5:302021-02-18T22:17:58+5:30

Ranbaxy-Daiichi case: Court seeks details of debt of Malvinder, Shivinder from financial institutions | रैनबैक्सी-दाइची मामला: न्यायालय ने वित्तीय संस्थानों से मालविन्दर, शिविन्दर के कर्ज का ब्योरा मांगा

रैनबैक्सी-दाइची मामला: न्यायालय ने वित्तीय संस्थानों से मालविन्दर, शिविन्दर के कर्ज का ब्योरा मांगा

नयी दिल्ली, 18 फरवरी उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को रैनबैक्सी के पूर्व प्रवर्तकों मालविन्दर और शिविन्दर सिंह के 17 बैंकों और वित्तीय संस्थानों को उन्हें दिये गये उस कर्ज से जुड़े मूल दस्तावेज के रिकार्ड जमा करने को कहा जिसके लिए फोर्टिस हेल्थकेयर लि. (एफएचएल) के शेयर उनके पास गिरवी रखे गये थे।

न्यायाधीश यू यू ललित, न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी और न्यायाधीश के एम जोसेफ की पीठ ने बैंकों से कर्ज को लेकर पेश की गयी प्रतिभूतियों की प्रकृति भी बताने को कहा। साथ ही सितंबर, 2016 में उनके पास पड़े फोर्टिस हेल्थकेयर होल्डिंग प्राइवेट लि. (एफएचएचपीएल) के नाम पर फोर्टिस हेल्थकेयर के बंधक/बंधन मुक्त शेयरों की भी जानकारी देने को कहा।

बैंकों से 11 अगस्त, 2017 की इस प्रकार की स्थिति का भी ब्योरा मांगा गया है।

शीर्ष अदालत ने बैंकों और वित्तीय संस्थानों को अपना जवाब 22 फरवरी तक देने को कहा है।

मामले की अगली सुनवाई 24 फरवरी को होगी।

वरिष्ठ अधिवक्ताओं राकेश द्विवेदी और अरिवंद पी दतार ने न्यायालय से आग्रह किया था कि इस स्थिति में बैंकों की भी भूमिका की जांच होनी चाहिए। उसके बाद न्यायालय ने उक्त आदेश दिया।

जापानी कंपनी दाइची की तरफ से पेश दतार ने दलील दी कि ऐसे मामलों में सामान्य तौर पर बुनियादी व्यवस्था या कर्ज समझौता होता है। इसके आधार पर विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियों, कॉरपोरेट और व्यक्तिगत गारंटी की पेशकश की जाती है। शेयरों को गिरवी रखना अतिरिक्त सुरक्षा का माध्यम है।

दाइची का सिंह बंधुओं के साथ कानूनी विवाद चल रहा है।

उन्होंने कहा कि हालांकि किसी भी बैंक/वित्तीय संस्थान ने यह संकेत नहीं दिया था कि आखिर क्यों बिना किसी के दावे वाले शेयर को दूसरे के दावे वाले शेयर की श्रेणी में रखने की मंजूरी मांगी गयी अथवा शेयर बचे गये जबकि अन्य रूप में प्रतिभूतियां उपलब्ध थी।

दतार ने कहा कि जिस व्यवस्था के तहत शेयर गिरवी रखे गये, उसका खुलासा होना चाहिए ताकि कर्ज के उद्देश्य का पता चला सके।

उन्होंने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय और शीर्ष अदालत द्वारा जारी आदेश के तहत संबंधित व्यक्ति या कंपनियां एफएचएचपीएल के शेयर नहीं बेच सकती थीं।

न्यायालय में कहा गया है कि बैंकों और वित्तीय संस्थानों ने मामले में हस्तक्षेप किया जबकि इस न्यायालय में यह लंबित था। इसीलिए मामले में बैंकों और वित्तीय संस्थानों की भूमिका की जांच की जरूरत है।

शीर्ष अदालत ने 15 नवंबर, 2019 को अपने आदेश के उल्लंघन को लेकर रैनबैक्सी के पूर्व प्रवर्तकों को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया था। आदेश में एफएचएल में उनकी हिस्सेदारी बेचने से मना किया गया था।

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Web Title: Ranbaxy-Daiichi case: Court seeks details of debt of Malvinder, Shivinder from financial institutions

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