केयर्न के पक्ष में 1.2 अरब डालर की डिक्री को भारत की चुनौती, कहा कर विवाद में मध्यस्थता स्वीकार नहीं

By भाषा | Updated: May 23, 2021 19:10 IST2021-05-23T19:10:07+5:302021-05-23T19:10:07+5:30

India's challenge to $ 1.2 billion decree in favor of Cairn, says arbitration in tax dispute not accepted | केयर्न के पक्ष में 1.2 अरब डालर की डिक्री को भारत की चुनौती, कहा कर विवाद में मध्यस्थता स्वीकार नहीं

केयर्न के पक्ष में 1.2 अरब डालर की डिक्री को भारत की चुनौती, कहा कर विवाद में मध्यस्थता स्वीकार नहीं

नयी दिल्ली, 23 मई भारत ने ब्रिटेन की कंपनी केयर्न एनर्जी पीएलसी को 1.2 अरब डालर लौटाने के अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण के फैसले को चुनौती दी है। सरकार ने कहा है कि उसने ‘ राष्ट्रीय कर विवाद’ में कभी अंतराष्ट्रीय मध्यस्थता को स्वीकार नहीं किया है।

वित्त मंत्रालय ने रविवार को एक बयान में इस आशय की रिपोर्टों को भी खारिज किया है कंपनी की ओर से विदेशों में भारत की सरकारी सम्पत्ति कुर्क कराने की कार्रवाई की आशंका से सरकारी बैंकों को विदेशों में अपने विदेशी मुद्रा खातों से धन निकाल लेने को कहा गया है।

सरकार ने हालांकि तीन सदस्यीय मध्यस्थता अदालत में अपनी तरफ से न्यायधीश की नियुक्ति की और केर्यन से 10,247 करोड़ रुपये के पुराने कर की वसूली के इस मामले में जारी प्रक्रिया में पूरी तरह भाग लिया। लेकिन मंत्रालय का कहना है कि न्यायाधिकरण ने एक राष्ट्रीय स्तर के कर विवाद मामले में निर्णय देकर अपने अधिकार क्षेत्र का अनुचित प्रयोग किया है। भारत गणराज्य इस तरह के मामलों में कभी भी मध्यस्थता की पेशकश अथवा उसपर सहमति नहीं जताता है।

सरकार ने केयर्न एनर्जी से कर की वसूली के लिये उसकी पूर्व में भारत स्थित इकाई के शेयरों को जब्त किया और फिर उन्हें बेच दिया। लाभांश को भी अपने कब्जे में ले लिया साथ ही कर रिफंड को भी रोक लिया। यह सब केयर्न से उसके द्वारा भारतीय इकाई में किये गये फेरबदल पर कमाये गये मुनाफे पर कर वसूली के लिये किया गया। सरकार ने 2012 में इस संबंध में एक कानून संशोधन पारित कर पिछली तिथि से कर लगाने का अधिकार हासिल करने के बाद यह कदम उठाया।

उधर, केयर्न ने भारत- ब्रिटेन द्विपक्षीय निवेश संधि के तहत उपलब्ध प्रावधानों का इस्तेमाल करते हुये मामले को मध्यस्थता अदालत में ले गई।

अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत में पिछले साल दिसंबर में केयर्न के पक्ष में फैसला आया जिसमें मध्यस्थता अदालत ने 2012 के कानून संशोधन का इस्तेमाल करते हुये केयर्न पर कर लगाने को अनुचित करार दिया। इसके साथ ही न्यायाधिकरण ने भारत सरकार से केयर्न के शेयरों और लाभांश के जरिये वसूले गये 1.2 अरब डालर की राशि उसे लागत और ब्याज सहित लौटाने का आदेश दिया।

वित्त मंत्रालय ने बयान में केयर्न की भारतीय इकाई केयर्न इंडिया को स्थानीय शेयर बाजार में सूचीबद्ध कराने के लिये 2006 में उसके कारोबार को पुनर्गठित के कदम को ‘‘कर अपवंचना के लिये अनुचित योजना’’ करार दिया और उसे भारतीय कर कानूनों का बड़ा उल्लंघन बताया। इसकी वजह से केयर्न उसके कथित निवेश के लिये भारत- ब्रिटेन द्विपक्षीय निवेश संधि के तहत सुरक्षा से वंचित हो जाता हे।

मंत्रालय ने कहा, ‘‘मध्यस्थता अदालत के फैसले में केयर्न की दोहरे स्तर पर कराधान से बचने की योजना की अनुचित तरीके से पुष्टि कर दी गई। यह योजना इस तरह से तैयार की गई कि आपको दुनिया में कहीं भी कर नहीं देना पड़े। यह नीति पूरी दुनिया की सरकारों के लिये चिंता का विषय बनी हुई है।’’

वित्त मंत्रालय ने इसके साथ ही कहा कि सरकार ने 22 मार्च को मध्यस्थता फैसले को हेग स्थित शीर्ष मध्यस्थता अदालत में चुनौती दी है।

यह सपष्ट नहीं है कि हेग अदालत भारत सरकार द्वारा कंपनियों के विलय की योजना पर लगाये गये कर मामले के गुण-दोष में जाता है अथवा नहीं।

आमतौर पर देखा गया है कि अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत के निर्णय को तभी चुनौती दी जा सकती है जब न्यायाधिकरण ने उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया हो।

इस मामले में फैसला देने वाले तीन मध्यस्थ न्यायधीशों में एक कंपनी ने, दूसरा भारत सरकार ने और तीसरा निष्पक्ष पीठासीन अधिकारी था। तीन सदस्यों की इस मध्यस्थता अदालत ने आम सहमति से केयर्न पर कर लगने को खारिज करते हुये भारत से कंपनी के बेचे गये शेयरों, कब्जे में रखे गये लाभांश और कर रिफंड को लौटाने का आदेश दिया। लागत और ब्याज के साथ यह राशि 1.72 अरब डालर बैठती है।

भारत सरकार के इस राशि का भुगतान करने से इनकार करने पर केयर्न ने फैसले को लेकर अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और सिंगापुर सहित छह देशों में मामला दर्ज किया है और सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों से राशि वसूलने की प्रक्रिया शुरू की है।

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