नये बीमा उत्पाद पेश करने के बाद उसकी मंजूरी ले सकेंगी कंपनियां, नियामक बदलेगा व्यवस्था

By भाषा | Updated: March 10, 2021 18:51 IST2021-03-10T18:51:22+5:302021-03-10T18:51:22+5:30

After the introduction of new insurance products, companies will be able to take its approval, the regulatory system will change | नये बीमा उत्पाद पेश करने के बाद उसकी मंजूरी ले सकेंगी कंपनियां, नियामक बदलेगा व्यवस्था

नये बीमा उत्पाद पेश करने के बाद उसकी मंजूरी ले सकेंगी कंपनियां, नियामक बदलेगा व्यवस्था

मुंबई, 10 मार्च बीमा क्षेत्र नियामक इरडा बीमा क्षेत्र में नये उत्पादों को मंजूरी देने के मामले में ‘फाइल करो और इस्तेमाल करो’ से हटकर अब ‘इस्तेमाल करो और फाइल करो’ प्रणाली को अपनाने पर विचार कर रहा है। इसमें बीमा कंपनियां बिना मंजूरी के लिये बाजार में नये उत्पाद पेश कर सकेंगी। इसके चेयरमैन सुभाष सी. खुंटिया ने बुधवार को यह कहा।

भारतीय एक्चुअरीज संस्थान द्वारा आयोजित एक वचुअर्ल सम्मेलन को संबोधित करते हुये खुंटिया ने कहा, ‘‘हम उत्पादों को मंजूरी देने के मामले में ‘फाइल और इस्तेमाल करो’ प्रणाली से हटकर जहां तक संभव हो पहले ‘इस्तेमाल करो और फिर फाइल’ करो। कुछ वर्गों में हमने इस प्रणाली को शुरू कर दिया है और हम इस पर आगे बढ़ना चाहेंगे।’’

फाइल करो और इस्तेमाल करो प्रणाली के तहत किसी भी बीमा कंपनी को अपने नये उत्पाद को बाजार में पेश करने के लिये उस उत्पाद को लेकर भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) में आवेदन करना होता है। नियामकीय मंजूरी मिलने के बाद से वह उस उत्पाद को बाजार में बेच सकता है।

लेकिन नई प्रणाली इस्तेमाल करो और फाइल करो में बीमा कंपनियों को बिना नियामक की अनुमति के ही नये उत्पादों को बाजार में बेचने की अनुमति होगी।

उन्होंने कहा की एक्चुअरी यानी बीमा पॉलिसी का आकलन करने वाले बीमांककों की इस मामले में बड़ी जवाबदेही है। उन्हें बीमा पॉलिसी तैयार करते हुये एक तरफ पॉलिसी धारकों की सुरक्षा और दूसरी तरफ बीमा कंपनियों के परिचालन को ध्यान में रखना होता है और इसके बीच संतुलन बनाना होता है।

खुंटिया ने जोर देते हुये कहा कि बीमांककों को कोई भी नई पॉलिसी तैयार करते हुये जलवायु परिवर्तन और भविष्य की महामाारी जैसी अनिश्चितताओं और खतरों को भी ध्यान में रखना चाहिये। यह सब कुछ इस तरह होना चाहिये की जनता को उनकी जरूरत के समय व्यापक सुरक्षा उपलब्ध हो।

इरडा चेयरमैन ने कहा कि बीमांकक (एक्चुअरी) बीमा नियामक की आंख और कान हैं। यह बीमा कंपनियों की विभिन्न गतिविधियों के लिये नियुक्त बीमांककों के प्रमाणन पर निर्भर करता है। ‘‘नियुक्त किये गये विभिन्न बीमांककों की बड़ी भूमिका है, यदि वह अपना काम प्रभावी ढंग से करते हैं तो उसके बाद हमें नियामकीय देखरेख की ज्यादा जरूरत नहीं होती है। वह इस मामले में नियामक की मदद कर सकतीं हैं कि कि नियमनों का क्रियान्वयन उपयुक्त ढंग से हो।’’

इरडा चेयरमैन ने बीमांककों को सेवानिवृत्ति के क्षेत्र में बेहतर और नवोनमेषी उत्पाद तैयार करने को कहा। इस क्षेत्र में काफी मांग है। लोग अपने बुढ़ापे में वित्तीय सुरक्षा के लिये ऐसे उत्पादों को चाहते हैं।

उन्होंने कहा कि बीमांककों ने एक समिति प्रणाली के जरिये सेवानिवृति उत्पादों के मामले में एक मानक उत्पाद तैयार करने में नियामक की मदद की है।

उन्होंने यह भी कहा कि बीमा उद्योग को अपने आप को डिजिटल दुनिया के लिये तैयार करना चाहिये और सूचना प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी संबद्ध आधुनिक प्रौद्योगिकी को अपनाना चाहिये। उन्होंने कहा कि इस मामले में बीमांकक पेशेवरों को अग्रणी भूमिका निभानी चाहिये। उन्होंने कहा कि नियामक जोखिम आधारित सक्षमता की शुरुआत करने की प्रक्रिया में है जिसमें कि बीमांकक स्टाफ के लिये बड़ी भूमिका होगी।

खुंटिया ने यह भी कहा कि भारत के आकार को देखते हुये देश में बीमांककों की संख्या काफी नहीं है और यह संख्या काफी बढ़नी चाहिये। उन्होंने कहा कि 2019 में यह संख्या 439 थी जो कि 2020 में मामूली बढ़कर 458 तक पहुंची।पिछले साल हमारे पास 165 बीमांकक सहायक और 7,500 के करीब छात्र सदस्य थे।

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