महंगाई कम करने के वायदे हुए फेल, मोदी सरकार में पेट्रोल-डीजल की कीमतें ने छुआ आसमान, दूसरी चीजें भी नहीं हुईं सस्ती
By खबरीलाल जनार्दन | Published: May 24, 2018 07:40 AM2018-05-24T07:40:03+5:302018-05-24T12:48:58+5:30
बीते करीब 4 सालों से कच्चे तेल का भाव 77 डॉलर प्रति बैरल से $85 प्रति बैरल के बीच रहा है। लेकिन केंद्र सरकार ने फ्यूल कमोडिटी पर 9 बार ड्यूटी बढ़ा चुकी है।
नरेंद्र मोदी सरकार के 4 सालों के आंकड़े बताते हैं कि महंगाई पर लगाम लगाने के मामले में यह सरकार भी पिछली यूपीए सरकार की तरह विफल है। साल 2012, 2013 और 2014 में भारतीय जनता पार्टी अपने विपक्ष में रहने के दौरान सत्तारूढ़ यूपीए सरकार पर महंगाई नियंत्रित ना कर पाने के जो आरोप लगाए, अपने 4 सालों में भी कमोबेश वही स्थिति बरकरार रखी है।
नवंबर 2014 के बाद से पहली बार अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल का भाव $85 प्रति बैरल गया है। बीते करीब 4 सालों से कच्चे तेल का भाव $77 प्रति बैरल से $85 प्रति बैरल के बीच रहा है। लेकिन केंद्र सरकार ने फ्यूल कमोडिटी पर 9 बार ड्यूटी बढ़ा चुकी है। इससे पेट्रोल-डीजल की कुल कीमतों में की गई बढ़ोतरी-गिरावट का औसत निकालें तो बीते चार सालों में मोदी सरकार पेट्रोल की 13% और डीजल में 12-15% मंहगा कर चुकी है।
पिछली जनवरी जनवरी से अब तक कच्चे तेल के भाव में 18% तक की बढ़ोतरी हुई है। अन्यथा बीते 4 सालों से यह कीमत $80 प्रति बैरल के नीचे ही रही है। इस वक्त दिल्ली में 1 लीटर पेट्रोल की कीमत ₹76.57 प्रति लीटर है। जबकि अगस्त 2012 अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का भाव $106 प्रति बैरल चला गया था तब दिल्ली में प्रति लीटर पेट्रोल का दाम था ₹68.46।
तिथि | अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम | दिल्ली में पेट्रोल का दाम |
अगस्त 2012 | $106/ बैरल | ₹68.46/लीटर |
मई 2018 | $85/ बैरल | ₹76.57/लीटर |
इसके बाद 14 सितंबर 2013 को दिल्ली में 1 लीटर पेट्रोल की कीमत रिकॉर्ड बनी। उस वक्त दिल्ली में 1 लीटर पेट्रोल का भाव 76.06 रुपए था। इससे पहले दिल्ली में कभी भी इतना महंगा पेट्रोल नहीं रहा था जबकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का भाव 100 डॉलर प्रति बैरल से अधिक था।
देश के पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान वह कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है की पेट्रोल की बड़ी कीमतों से राजस्व में भारी तेजी आई है। यहां से प्राप्त हुए पैसे को देश के विकास पर खर्च किया जा रहा है।
इसके लिए आपको जानना चाहिए की दिल्ली में 1 लीटर पेट्रोल की आधी से ज्यादा कीमत टैक्स होती है करीब ₹20 केंद्र को जाता है और ₹16 दिल्ली सरकार को जबकि ₹4 डीलर का कमीशन होता है।
पेट्रोल की कीमत पर इतना जोर क्यों
आम आदमी के महंगाई का प्रमुख कारक पेट्रोल और डीजल की कीमतें होती है। पेट्रोल और डीजल की कीमतों के बढ़ने से यातायात का खर्च बढ़ जाता है और इससे गेहूं प्याज टमाटर दाल हर उस सामान की कीमत बढ़ जाती है जो यातायात के जरिए एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाया जाता है
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दलहन और तिलहन की कीमतों पर भी नहीं लगी लगाम
नरेंद्र मोदी सरकार के दौरान ही अरहर की दाल की कीमत ₹180 प्रति किलो तक पहुंची। आलू प्याज नमक टमाटर तेल इत्यादि आमजन के जरूरी सामानों में किसी भी वस्तु की कीमत यूपीए सरकार की तुलना में प्रभावशाली रूप से कम नहीं हुई जिसकी विपक्ष रहते हुए भारतीय जनता पार्टी खुद अवहेलना करती थी ।
तिथि | दाम |
23 मई, 2013 | ₹63.09/लीटर |
मई 13, 2014 | ₹71.41 / लीटर |
जून 01, 2014 | ₹71.51 / लीटर |
23 मई, 2018 | ₹76.24 / लीटर |
तिथि | कीमत |
मई, 2014 | ₹76/ किलो |
जून, 2015 | ₹101/ किलो |
अक्टूबर 2015 | ₹170/ किलो |
मई, 2018 | ₹70/ किलो |
तिथि | कीमत |
मई, 2014 | ₹12.50 /किलो |
मई, 2018 | ₹12 /किलो |
तिथि | कीमत |
अक्टूबर 2014 | ₹95-105 /लीटर |
अक्टूबर 2015 | ₹120-140 /लीटर |
फरवरी 2017 | ₹85-110 /लीटर |
मई 2018 | ₹95-125 /लीटर |
कपड़ा और मकान की कीमतें
कपड़ा और मकान की कीमतों पर सीधे तौर पर सरकार का हस्तक्षेप नहीं होता। लेकिन टैक्स इत्यादि का असर इस पर भी पड़ता है। मोदी सरकार की बीते 4 सालों की टैक्स नीति में इन पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा है ऐसे में अगर मोदी सरकार इनकी कीमतों को बढ़ाई नहीं है तो कम करने में भी असमर्थ रही है । महानगरों में घरों के किराए नियमित अंतराल पर वैसे ही बड़े हैं जैसे पहले बढ़ते थे।
कागजों पर कम हुई महंगाई
कागजों पर मुद्रास्फीति के दर से महंगाई को नापते हैं। सन 2009 में मुद्रास्फीति की दर 0.44 तक पहुंच गई थी नरेंद्र मोदी सरकार के दौरान सन 2015 16 में यह - 2.44 तक पहुंच गई थी । यह आजाद भारत की अब तक की रिकॉर्ड महंगाई दर में गिरावट दर्ज की गई थी। इस वक्त मुद्रास्फीति की दर 4.30 के आसपास है। लेकिन क्या मुद्रास्फीति में गिरावट है महंगाई का सही आकलन है नहीं बेरोजगारों की तादाद बढ़ने और नौकरियों में छंटनी की वजह से भी मांग घट रही है। मांग में गिरावट मुद्रास्फीति दर को शून्य के करीब ले जाने वाला अहम कारण है।
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महंगाई क्या है
महंगाई किसी वस्तु या सेवा की कीमत में समय के साथ होने वाली वृद्धि को कहते हैं। जैसे कोई चीज साल भर पहले ₹100 में मिल रही थी लेकिन अब ₹105 में मिल रही है तो इस वस्तु के लिए वार्षिक महंगाई दर पांच फीसदी कही जाएगी।
सरकार कैसे मापती है महंगाई
देश की महंगाई दर थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के आधार पर आंकी जाती है। डब्ल्यूपीआई के जरिए 400 से ज्यादा कमोडिटी पर निगाह रखी जाती है। कमोडिटी बास्केट में आने वाली चीजों की समीक्षा नियमित रूप से की जाती है ताकि कुछ सामान जरूरत से ज्यादा अहमियत न रखें। डब्ल्यूपीआई तक पहुंचने के लिए निर्मित उत्पादों, ईंधन और प्राथमिक वस्तुओं के दाम का इस्तेमाल किया जाता है।
कई लोगों की दलील है कि डब्ल्यूपीआई सटीक रूप से मुद्रास्फीति के दबाव का अंदाजा नहीं देता। इसलिए कई देशों ने अब कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (सीपीआई) की राह पकड़ ली है। सीपीआई उपभोक्ताओं की ओर से खरीदे जाने वाले उत्पादों और सेवाओं के खास सेट की वेटेड औसत कीमत को आंकने से जुड़ा गणितीय आंकड़ा है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) हर महीने की 12 तारीख को सीएसओ जारी करता है जबकि थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) 14 तारीख को वाणिज्य मंत्रालय।
MY VIEW: महंगाई दर नकारात्मक हो रही है माइनस में पहुंच रही है लेकिन किराने का बिल कुछ और ही संकेत दे रहा है। खाद्य सामग्री के दाम अब भी ऊंचे हैं। खाद्यान्न एक साल पहले के मुकाबले कई फीसदी महंगा है।
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