विश्वजीतः एक रूमानी हीरो, जिन्हें हीरोइनों के ईद-गिर्द गाने गाते देखना एकदम अलग बात थी

By यूनुस खान | Published: December 3, 2018 09:38 AM2018-12-03T09:38:08+5:302018-12-03T10:25:30+5:30

'साहिब बीवी और गुलाम' प्ले चल रहा था. 'भूतनाथ' का संवाद बोलते हुए मंच से देखा तो पहली पंक्ति में गुरु दत्त बैठे थे. प्ले पूरा हुआ. गुरु दत्त मिले और बोले, ''मैं इस नाटक पर फिल्म बनाना चाहता हूं. तुम्हें मुंबई आना होगा.'' स्क्रीन-टेस्ट हुआ. सामने पांच साल का कॉन्ट्रैक्ट रख दिया गया. कौन हैं ये अभिनेता जानिए-

Vishwajeet's film journey, a song lead actor | विश्वजीतः एक रूमानी हीरो, जिन्हें हीरोइनों के ईद-गिर्द गाने गाते देखना एकदम अलग बात थी

साधना और बिस्वजीत फाइल फोटो

बीते हफ्ते मेरी मुलाकात गुजरे जमाने के जाने-माने अभिनेता विश्वजीत से हुई और उन्हें करीब से जानने का मौका मिला. इस दौरान मुझे लाल कोट, खुली कमांडर जीप के साथ याद आ रहा था उनका गाना, 'पुकारता चला हूं मैं..' विश्वजीत रूमानी नायकों की पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं. बचपन से फिल्मी पर्दे पर उन्हें नायिकाओं के ईद-गिर्द गाने गाते देखना एकदम अलग बात थी और 82 बरस की उम्र में उनसे मिलना एकदम अलग बात.

इस उम्र में भी वे एकदम फिट हैं. तनकर चलते हैं. अदाएं वही हैं पर्दे वाली. साथ में हैं ढेर सारी पुरानी यादें. पिताजी की याद, जिन्होंने एक दिन कह दिया था कि एक्टिंग या घर में से एक चुन लो. वे उस दिन घर छोड़कर निकल गए थे. पचास के दशक के अंत वाला कोलकाता. दोस्तों ने एक छोटी कोठरी दिलवा दी. थिएटर में काम जारी रहा.

'साह‌िब बीवी और गुलाम' प्ले चल रहा था. 'भूतनाथ' का संवाद बोलते हुए मंच से देखा तो पहली पंक्ति में गुरु दत्त बैठे थे. प्ले पूरा हुआ. गुरु दत्त मिले और बोले, ''मैं इस नाटक पर फिल्म बनाना चाहता हूं. तुम्हें मुंबई आना होगा.'' स्क्रीन-टेस्ट हुआ. सामने पांच साल का कॉन्ट्रैक्ट रख दिया गया.

विश्वजीत ने इसे अस्वीकार कर दिया. गुरु दत्त के साथ पांच साल बंधकर रहना नहीं हो पाएगा. वापस कोलकाता. बांग्ला फिल्में. थिएटर. छोटे-मोटे रोल. यानी बस काम जारी रहा. एक दिन संगीतकार हेमंत कुमार आ गए. बोले, ''विश्वजीत तुम्हें थिएटर छोड़ना होगा. तुम मेरी फिल्म कर रहे हो. कहानी भी चुनी तो ऑर्थर कानन डायल की 'द हाउंड ऑफ बास्करविल'. 'बीस साल बाद' की वजह से कोलकाता छूट गया और फौजी डॉक्टर पिता के कारण अलग-अलग शहरों में पले विश्वजीत को अच्छी हिंदी बोलने में कभी दिक्कत भी नहीं आई.

विश्वजीत हिंदी फिल्मों में जम गए. 'बीस साल बाद' आज भी बेहतरीन सस्पेन्स फिल्मों में गिनी जाती है. इसका असर ये हुआ कि इसके बाद इसी तरह की फिल्में मिलने लगीं. 'कोहरा', 'बिन बादल बरसात', 'बीस साल बाद' सब की सब सस्पेन्स फिल्में. विश्वजीत सस्पेन्स सिनेमा के नायक कहे जाने लगे. इस इमेज को तोड़ने के लिए उन्होंने अपना पैंतरा बदला. अब वे बन गए चॉकलेटी हीरो.

1965 में आई 'मेरे सनम' ने उन्हें पूरी तरह रूमानी हीरो बना दिया और उसके बाद अपने पूरे करियर में वे हीरोइनों के ईद-गिर्द गाने ही गाते रहे. गाने भी ऐसे वैसे नहीं. अमूमन ओ पी नैयर, हेमंत कुमार और शंकर जयकिशन वगैरह के संगीत वाले बेमिसाल गाने. विश्वजीत उस दौर में आए जब सुनहरे संगीत का दौर शबाब पर था.

फिल्में चलें ना चलें, गाने चलते थे. इतने चलते थे कि वो आज तक चलते ही जा रहे हैं. ये सब हमारे और आपके पसंदीदा गाने हैं. विश्वजीत, जॉय मुखर्जी, शम्मी कपूर वगैरह उस पीढ़ी के नायक हैं, जब रूपहले पर्दे पर रूमानियत का कोहरा था. ये वही फिल्में हैं जो एक सपनीली दुनिया रचती हैं, जो हकीकत से आपको अलग करके एक ऐसी दुनिया में ले जाती हैं, जहां सिर्फ चाशनीदार मोहब्बत है. मैंने इस यात्रा में देखा कि लोग विश्वजीत को दिलो-जान से चाहते हैं. दरअसल वो विश्वजीत को नहीं नॉस्टेलजिया को प्यार करते हैं.

Web Title: Vishwajeet's film journey, a song lead actor

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