Mohalla Assi Review: बनारस और धर्म के नाम पर पाखंड करने वालों पर करारी चोट करने वाली है 'मोहल्ला अस्सी'
By ऐश्वर्य अवस्थी | Published: November 16, 2018 01:04 PM2018-11-16T13:04:19+5:302018-11-16T13:04:19+5:30
Sunny deol Film Mohalla Assi Movie Review in Hindi:कहानीकार काशीनाथ सिंह की किताब 'काशी का अस्सी' पर आधारित 'मोहल्ला अस्सी' आज पर्दे पर रिलीज हो गई है।
फिल्म : मोहल्ला अस्सी
डायरेक्टर: चंद्रप्रकाश द्विवेदी
स्टार कास्ट: सनी देओल, साक्षी तंवर, रवि किशन
रेटिंग: 2.5 स्टार
कहानीकार काशीनाथ सिंह की किताब 'काशी का अस्सी' पर आधारित 'मोहल्ला अस्सी' आज पर्दे पर रिलीज हो गई है। चंद्रप्रकाश द्विवेदी के निर्देशन में बनी ये फिल्म बनारस और धर्म, आस्था के नाम पर पाखंड करने वालों पर करारी चोट करने वाली है। फिल्म बनारस की गलियों से लेकर सियायस को हिलाने वाली है। फिल्म साल 2015 में रिलीज होने वाली थी, लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट की दखल की वजह से इस पर स्टे लग गया था। जिसके बाद अब 3 साल बाद फिल्म को आज पर्दे पर रिलीद किया गया है। जिसमें सनी दओल और साक्षी तंवर लीड रोल में हैं। फिल्म बनारस के अस्सी घाट के इर्द-गिर्द होने वाली घटनाओं पर कहानी बुनी गई है।
फिल्म की कहानी
फिल्म की कहानी शुरू होती है धर्मनाथ पांडेय (सनी देओल) से जो बेहत सिद्धांत वाले पुरोहित और संस्कृत अध्यापक हैं, जो काशी में विधर्मियों यानी विदेशी सैलानियों की घुसपैठ के सख्त खिलाफ हैं। वह अस्सी घाट के किनारे सैलानियों से पूजा पाठ करवाते हैं। वहीं, उनके डर से उसके अस्सी मुहल्ले के ब्राह्मण चाहकर भी विदेशी किराएदार नहीं रख पाता हैं। वह उनमें से हैं जिनके लिए गंगा नदी नहीं, मैया है, जिसे वह विदेशियों का स्वीमिंग पूल नहीं बनने देंगे।वहीं, पत्नी (साक्षी तंवर) भी पत्नी के इस फैसले में उनके साथ होती हैं। इस कारण से ही टूरिस्ट गाइड गिन्नी (रवि किशन) से भी वह खूब चिढ़ते हैं। लेकिन बदलते वक्त के साथ वह दौर भी आता है, जब धर्मनाथ पांडेय को अपने ये सिद्धांत, आदर्श और मूल्य खोखले लगने लगते हैं और वह खुद समझौता करने को तैयार हो जाते हैं।
वह हालातों के आगे मजबूर होकर अपने घर से शिव जी की शिवलिंग गंगा में प्रवाहित कर देते हैं और अपने घर में विदेशी किराएदार रखने लगते हैं। इसी बीच फिल्म में राम मंदिर का भी मुद्दा दिखाया गया है जिसके द्वारा राजनीतिक रूप को गरमाने की कोशिश की गई है।फिल्म में एक और बेहद अहम किरदार है पप्पू की चाय की दुकान। इस दुकान की अहमियत का अंदाजा इस डायलॉग से लगाया जा सकता है, 'हिंदुस्तान में संसद दो जगह चलती है, एक दिल्ली में, दूसरी पप्पू की दुकान में।' अस्सी के बुद्धिजीवियों की सारी राजनीतिक चर्चा इसी दुकान पर होती है। फिल्म का असली रूप तब शुरू होता है जब धर्मनाथ पांडेय अपने घर विदेशी किराएदार रखना शुरू करते हैं उसके बाद उनको किन किन परेशानियों का सामना करना पड़ता इसके लिए आपको थिएटर में जाना होगा।
क्या है फिल्म में खास
पूरी फिल्म बेहद कसी हुई है। कहीं से भी फैंस को नहीं लगेगा कि फिल्म 3 साल पहले बनाई गई थी। फिल्म में देसी बनारसी गालियों का प्रयोग भी किया गया है। बेहद शानदार तरीके से नुक्कड़ चर्चा के जरिए राजनीतिक मुद्दों से लेकर हर किसी मुद्दे को फिल्म में पेश किया गया है। बनारस के गली मुहल्लों की बात की जाए को कहना गलत नहीं होगा कि फिल्म में पूरी तरह से वही रूप परोसा गया है। संस्कृति और धर्म से संबंधित बातों को भी अच्छे तरह से दर्शाया गया है। कई जगह जमीनी हकीकत देखने को मिलती है। कुल मिलाकर फिल्म फैंस को पंसद आ सकती है।
क्या है फिल्म की कमजोरी
अगर आप हर बात पर गालियों को पसंद नहीं करते हैं तो फिल्म आपको पहले सीन से ही बोर कर सकती है। क्योंकि फिल्म में बनारस की देसी गाली कही जाने वाली भो... का बेहद प्रयोग किया गया है। फिल्म की कमजोर कड़ी इसका इंटरवल के बाद का हिस्सा है जो कि काफी बिखरा-बिखरा है। आपको समझ नहीं आएगा कि विदेशी किराएदार के मुद्दे से राम मंदिर के मुद्दे को फिल्म में क्यों दिखाया गया। फिल्म कई जगह आपको बिखरी सी लग सकती है।
अभिनय
अभिनय की बात की जाए तो एक ब्राह्मण के किरदार में सनी देओल ने बेहद शानदार काम किया है। उन्होंने फैंस को एक बार फिर से अपने अभिनय का दीवाना कर दिया है। साक्षी तंवर ने भी अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है। रवि किशन की मौजूदगी आपके चेहरे पर मुस्कान जरूर जाएगी।