प्रवासी मजदूरों की हालत पर गुलजार ने लिखी दिल छू जाने वाली कविता, कहा- मरेंगे तो वहीं जा कर जहां पर जिदगी है...

By ऐश्वर्य अवस्थी | Published: May 21, 2020 08:35 AM2020-05-21T08:35:56+5:302020-05-21T08:37:27+5:30

लॉकडाउन लागू होने की वजह से ये प्रवासी मजदूर बेरोजगार हो गए हैं और दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों से इन मजदूरों ने पैदल या साइकिल से घर लौटना शुरू कर दिया है

gulzar pens poem on the plight of migrants | प्रवासी मजदूरों की हालत पर गुलजार ने लिखी दिल छू जाने वाली कविता, कहा- मरेंगे तो वहीं जा कर जहां पर जिदगी है...

प्रवासी मजदूरों की हालत पर गुजलार ने लिखी दिल छू जाने वाली कविता (फाइल फोटो)

Highlightsकोविड-19 के कारण प्रवासी मजदूर पैदल ही घर जा रहे हैं। अप्रैल के आखिर में बसों और 1 मई से श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के संचालन के बाद से घर लौटने वाले मजदूरों की संख्या बढ़ गई है

कोविड-19 के कारण प्रवासी मजदूर पैदल ही घर जा रहे हैं। ऐसे में दूसरी तरफ इस महामारी से बुरी तरह प्रभावित दिल्ली और मुंबई से लौटने वाले प्रवासी मजदूरों की वजह से राजस्थान, कर्नाटक, बिहार और उत्तर प्रदेश में संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी देखी जा रही है। इन राज्यों के कई अधिकारियों ने इस बात की जानकारी दी है। 

लॉकडाउन लागू होने की वजह से ये प्रवासी मजदूर बेरोजगार हो गए हैं और दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों से इन मजदूरों ने पैदल या साइकिल से घर लौटना शुरू कर दिया है। अप्रैल के आखिर में बसों और 1 मई से श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के संचालन के बाद से घर लौटने वाले मजदूरों की संख्या बढ़ गई है। मजूदरों के पैदल घर जाने की दुर्लभ तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं।

 इस बीच गीतकार गुलजार ने इन प्रवासी मजदूरों की व्यथा अपनी एक कविता में लिखी है। इस कविता को उनके फेसबुक पेज से साझा किया गया है। ये कविता फैंस का दिल छू लेने वाली है।

महामारी लगी थी
घरों को भाग लिए थे सभी मजदूर, कारीगर
मशीनें बंद होने लग गई थीं शहर की सारी
उन्हीं से हाथ पाओं चलते रहते थे
वगर्ना जिन्दगी तो गांव ही में बो के आए थे।

वो एकड़ और दो एकड़ जमीं, और पांच एकड़
कटाई और बुआई सब वहीं तो थी

ज्वारी, धान, मक्की, बाजरे सब।
वो बँटवारे, चचेरे और ममेरे भाइयों से
फ़साद नाले पे, परनालों पे झगड़े
लठैत अपने, कभी उनके।

वो नानी, दादी और दादू के मुकदमे
सगाई, शादियां, खलियान,
सूखा, बाढ़, हर बार आसमां बरसे न बरसे।

मरेंगे तो वहीं जा कर जहां पर जिदगी है
यहां तो जिस्म ला कर प्लग लगाए थे !

निकालें प्लग सभी ने,
‘ चलो अब घर चलें ‘ – और चल दिये सब,
मरेंगे तो वहीं जा कर जहां पर जिदगी है !

गुलजार

सम्पूर्ण सिंह कालरा उर्फ़ गुलज़ार भारतीय गीतकार,कवि, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक तथा नाटककार हैं। गुलजार को हिंदी सिनेमा के लिए कई प्रसिद्ध अवार्ड्स से भी नवाजा जा चुका है। उन्हें 2004 में भारत के सर्वोच्च सम्मान पद्म भूषण से भी नवाजा जा चूका है। इसके अलावा उन्हें 2009 में डैनी बॉयल निर्देशित फिल्म स्लम्डाग मिलियनेयर मे उनके द्वारा लिखे गीत जय हो के लिये उन्हे सर्वश्रेष्ठ गीत का ऑस्कर पुरस्कार पुरस्कार मिल चुका है। इसी गीत के लिये उन्हे ग्रैमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

Web Title: gulzar pens poem on the plight of migrants

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