#Bollywoodflashback: 'हरिश्चंद्र' से 'धड़क' तक भारतीय सिनेमा में हुआ है ये बड़ा बदलाव

By ऐश्वर्य अवस्थी | Published: July 19, 2018 07:25 AM2018-07-19T07:25:18+5:302018-07-19T11:42:19+5:30

भारतीय सिने जगत को सौ साल से ज्यादा का समय हो गया है। हर हफ्ते अलग-अलग भाषाओं में कई फिल्में रिलीज होती हैं।

bollywood flashback from harishchandra to dhadak see the different phases of Indian cinema | #Bollywoodflashback: 'हरिश्चंद्र' से 'धड़क' तक भारतीय सिनेमा में हुआ है ये बड़ा बदलाव

#Bollywoodflashback: 'हरिश्चंद्र' से 'धड़क' तक भारतीय सिनेमा में हुआ है ये बड़ा बदलाव

भारतीय सिने जगत को सौ साल से ज्यादा का समय हो गया है। हर हफ्ते अलग-अलग भाषाओं में कई फिल्में रिलीज होती हैं। बॉलीवुड में बतौर बोलती हुई पहली फिल्म 1913 में आई हरिश्चंद्र से हुई थी। पहली फिल्म हरिश्चंद्र से लेकर इस हफ्ते रिलीज होने वाली फिल्म धड़क तक भारतीय सिनेमा  में आज काफी  बदलाव हो गए हैं। कभी ब्लैक एंड व्हाइट से सजा सिनेमा आज रंगों से ढला हुआ है। आज फिल्मों की कहानी से लेकर हर चीज पूरी तरह से बदल गई है। इन सौ सालों से ज्यादा के वक्त में अगर फिल्मों में किसी चीज़ में सब में कम बदलाव जिसमे हुआ है वो है महिलाओं का रोल। पहली फिल्म में महिला का जरूर सबसे अहम था और आज भी बिना अभिनेत्री के फिल्म अधूरी है। लेकिन फिर भी  वो रोल अभिनेत्रियां नहीं पा पा रहीं जो अभिनेता पाते हैं। फिर भी एक बात है आज फैंस बिना अभिनेत्री के फिल्म अधूरी सी सामने हैं। वहीं, अब बॉलीवुड में आज समय के साथ फिल्मों में महिला केंद्रित फिल्मों को दौर शुरू हुआ लेकिन इक्का दुक्का फिल्मों को छोड़ दें तो अभी एक बहुत दूर जाना है। ऐसे में आज जानते हैं क्.ा बदलाव 1913 से 2018 तक महिलाओं लेकर हुआ है।

हरिश्चंद्र में महिला का रुप

महज 10 रूपए के बजट में बनी हरिश्चंद्र की बात करें तो फिल्म की पूरी शूटिंग मुंबई में ही की गई थी। पटकथा लेखन के बाद दादा साहेब फालके ने कई महिलाओं को फिल्म का ऑफर दिया लेकिन कोई भी पर्दे पर आने को तैयार नहीं हुआ। अतं में दादा वेश्याओं के बाजार में उनके कोठे पर गए। हाथ जोड़कर उनसे तारामती रोल के लिए निवेदन किया। वेश्याओं ने दादा को टका-सा जवाब दिया कि उनका पेशा, फिल्म में काम करने वाली बाई से ज्यादा बेहतर है। फिल्म में काम करना घटिया बात है। हार कर अण्णा सालुंके नाम के एक पुरुष ने ही महिला का करिदार निभाया था।

धड़क में महिला का रोल

इस हफ्ते रिलीज होने वाली फिल्म धड़क में एक महिला के किरदार को ही अहम रूप से पेश किया गया है। ये फिल्म मराठी फिल्म सैराट का हिंदी रूपांतर है। आमतौर पर हिंदी फिल्मों में लव स्टोरी लड़के की कहानी होती है जिसमे लड़की का रोल होता है । लेकिन सैराट में लड़की की भूमिका काफी सशक्त है जबकि लड़का एक पिछड़े तबके का दिखाया गया है । क्या ऊँची जात की होने के कारण लड़की ज्यादा को ज्यादा ताक़त मिल जाती है? क्या सैराट में ये जाति समीकरण उलटे होते तो क्या फिल्म की कहानी कुछ और होती? लेकिन एक सैराट, हिचकी या अस्तित्व से बात बनती नहीं दिखती। सौ साल एक लम्बा समय होता है लेकिन फिल्मों में अपनी जगह बनाने में महिलाओं को अभी और समय लगेगा ।

हर तरह के रोल को तैयार महिलाएं

उस समय जहां एक महिला फिल्म करने को तैयार नहीं होती थीं वहीं आज बोल्ड सीन को पर्दे पर परोसने से अभिनेत्रिया नहीं कतराती हैं।  हरिश्च्ंद्र के लिए जहां तारा के रोल के लिए सभी ने कई तरह की मांगे रखीं थी कि वो हीरो के साथ सीन नहीं करेंगी, आज के दौर में अभिनेत्री स्क्रिप्ट की डिमांड पर कुछ भी करने को तैयार हैं । निश्चित रूप से ये बदलाव का संकेत नहीं हो सकता है लेकिन धीरे धीरे फिल्मों में महिलाओं को केवल सजावट की वस्तु की तरह न पेश करते हुए उनकी आवाज़ को भी सुना जा रहा है ।

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