फिल्म रिव्यू - 'भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया' खराब विजुअल इफेक्ट के कारण फिल्म कर सकती है आपको नाखुश
By वैशाली कुमारी | Published: August 17, 2021 11:32 AM2021-08-17T11:32:40+5:302021-08-17T11:33:17+5:30
स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक के किरदार में, अजय देवगन ने फिल्म की नैय्या पार लगाने की पूरी कोशिश की है पर वे बहुत हद तक कामयाब नहीं हो पायें हैं।
फिल्म रिव्यू - "भुज: द प्राइड ऑफ़ इंडिया "
अवधि - 1 घण्टा 54 मिनट
निर्देशक - अभिषेक दुनिया
लेखक - रितेश साह, अभिषेक दुधैया
मेन लीड - अजय देवगन,
संजय दत्त
शरद केलकर
सोनाक्षी सिन्हा
एमी विर्क
कहाँ देखें - डिज़्नी प्लस हाटस्टार
IDBM - 5/10
अजय देवगन की बहुप्रतिक्षित फिल्म "भुज द प्राइड ऑफ़ इंडिया " डिज़्नी प्लस हाटस्टार " रिलीज हो चुकी है। तो सबसे पहले बात करते हैं कहानी की। "भुज द प्राइड ऑफ़ इंडिया " साल 1971 भारत-पाकिस्तान के युद्ध पर आधारित है। फिल्म की स्टोरी लाइन भुज का एयर बेस है। फिल्म में पाकिस्तानी एयर फोर्स द्वारा नष्ट किये गये भुज हवाई पट्टी को स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक ( देवगन देवगन ) के कुशल नेतृत्व में, पास के गाँव में रहनें वाली 300 महिलाओं द्वारा बनाने की कहानी दिखाई गयी है। लेकिन फिल्म यहीं से बैकफुट पर चली जाती है। शुरूआती 40 मिनट तो यही डिसाइड करनें में निकल जातें हैं फिल्म की मेन कहानी क्या है? और राइटर-डायरेक्टर फिल्म को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं?
बात करें फिल्म कि तो, पहले ही सीन से फिल्म अपनी 'किरकिरी' करवाना शुरू कर देती है। फिल्म में दिखाये गये कमजोर विजुअल इफेक्ट किसी सस्ते गेम जैसे दिखते हैं। आपको बता दें कि पिछले साल आई अजय देवगन की "तान्हाजी" अपनें स्पेशल विजुअल इफेक्ट की वजह से एक नेक्स्ट लेवल की फिल्म साबित हुयी थी। उस फिल्म के VFX पर अजय देवगन की ही कम्पनी ने काम किया था, और इस फिल्म में भी अजय देवगन की कम्पनी ने VFX पर काम किया। लेकिन शायद कमजोर डायरेक्शन की वजह से सब चौपट हो गया।
"भुज द प्राइड ऑफ़ इंडिया" से जिस तरीके की उम्मीद थी, फिल्म उस पर खरी नहीं उतर सकीं। फिल्म का कमजोर स्क्रीन प्ले अजय देवगन, संजय दत्त, शरद केलकर जैसे कलाकारों के साथ न्याय नहीं कर सका। एक बनी बनाई अच्छी भली कहानी को कमजोर डायरेक्शन और कन्फ्यूज से भरा स्क्रीन प्ले ले डूबा। अजय देवगन की "भुज" जबरदस्ती देशभक्ति दिखाने की नाकाम कोशिश करती रही। फिल्म के हर 10 मिनट में नायक के बार-बार मराठा होने का "ताव" और "मेरे शेर की ऑखों में आँसू" जैसे डायलाग्स काफी बोरिंग लगते हैं।
फिल्म के सीन में जब भुज एयर बेस को पाकिस्तानी एयर फोर्स से छुपकर बनाते हुए दिखाया गया है, तो फिर उस सीन में गाजे-बाजे और ढोल-नगाड़े का कांसेप्ट कतई आपका दिमाग झेल नहीं पायेगा।
मेकर्स ने कमजोर फिल्म को देशभक्ति के चोले में लपेट कर दर्शकों के सामने परोसने की कोशिश की है। इस कोशिश में वे औंधे मुँह गिर गये हैं। और जिस घटना पर एक अच्छी खासी फिल्म बन सकती थी उस कहानी का सत्यानास कर दिया। पता नहीं मेकर्स को ये बात कब समझ आयेगी कि सिर्फ पाकिस्तान का नाम घुसा देने से फिल्म देशभक्ति के पैमाने पर खरी नहीं उतर सकती है। उसके लिये फिल्म का दर्शकों से कनेक्ट होना भी जरुरी है।
ऐक्टिंग की बात करें तो स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक के किरदार में, अजय देवगन ने फिल्म की नैय्या पार लगाने की पूरी कोशिश की है पर वे बहुत हद तक कामयाब नहीं हो पायें हैं। एक सीन में जब "विजय कार्णिक " यानी अजय देवगन अपना चेहरा धोते हैं, तो साफ दिखाई देता है कि खून उनके चेहरे पर पहले नहीं था, बाद में हाथ से डाला गया है। अजय देवगन जैसे मंझे हुए कलाकार तो कतई ऐसी गलती नहीं कर सकते। जाहिर है कि यह कमजोर निर्देशन का ही नतीजा है।
रणछोड़ दास 'पगी' के रोल में संजय दत्त का सिर्फ कुल्हाड़ी से 40-50 हथियारबंद पाकिस्तानी सैनिकों को मारना ऊपर से बाउंस कर गया। यहाँ पर एक बात कहना जरूरी है कि साउथ इंडस्ट्री तो वैसे ही बदनाम है, कांड तो कभी-कभी बालीवुड वाले उनसे बढ़कर कर देते हैं। खैर नोरा फतेही जो कि सीक्रेट एजेंट "हीना रहमान" के रोल में हैं, उनकी ऐक्टिंग देखकर सिर्फ दिल से यही आवाज आती है, कि ये आप रहनें दीजिये। आप सिर्फ T-Series के म्यूजिक एल्बम और आइटम सांग करिये, ऐक्टिंग आप से नहीं हो पायेगी।
खैर रघुवीर रैना का किरदार निभा रहे " शरद केलकर" और फाइटर पायलट बब्बल सिंह गिल का किरदार निभा रहे एम्मी विर्क ने जरूर फिल्म में जान फूंकने की कोशिश की है। गुजराती महिला "सुंदरबन जेठा" के रोल में सोनाक्षी सिन्हा का किरदार काफी फनी और ओवर लग रहा हैं। फिल्म में अजय देवगन की पत्नी मिशा उपेदकर के रोल में "प्रणीता सुभास" फिल्म में आखिर हैं क्यों, ये तो शायद उन्हें भी नहीं पता होगा। बाकी जो बचा था, वो फिल्म के क्लाइमैक्स में उन्होंने रोड रोलर चला कर आपनी स्क्रिप्ट को भी जमीन में गाड़ दिया।
फिल्म के म्यूजिक की बात करें तो कुछ खास नहीं है। फिल्म मे ऐसा कोई गाना नहीं है जिसे आप फिल्म खत्म होने के बाद भी गुनगुनाते रहें। देशभक्ति की थीम पर अगर कोई फिल्म आये, और वह ये भी करने मे नाकाम रहे तो समझो गयी भैंस पानी में।
बहुत कोशिश के बाद भी मैं इस फिल्म में एक भी अच्छी चीज नहीं ढूँढ पाया, सिवाय इसके कि अजय देवगन ने सिर्फ देशभक्ति के नाम पर इस फिल्म में कूदने की हिम्मत दिखाई। खैर अगर आप बहुत ज्यादा फ्री हैं और पड़े-पड़े बोर हो रहे हैं, तो अपना समय, डेटा और एनर्जी खर्च करने का अच्छा विकल्प हो सकती है "भुज"।