शशांक द्विवेदी का ब्लॉग: कथित आधुनिक विकास की देन है जल संकट
By शशांक द्विवेदी | Published: March 22, 2022 03:55 PM2022-03-22T15:55:02+5:302022-03-22T15:56:20+5:30
पानी के गंभीर संकट को देखते हुए पानी की उत्पादकता बढ़ाने की जरूरत है. चूंकि एक टन अनाज उत्पादन में 1000 टन पानी की जरूरत होती है और पानी का 70 फीसदी हिस्सा सिंचाई में खर्च होता है, इसलिए पानी की उत्पादकता बढ़ाने के लिए जरूरी है कि सिंचाई का कौशल बढ़ाया जाए.
पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र की मौसम विज्ञान एजेंसी (डब्ल्यूएमओ) ने ‘द स्टेट ऑफ क्लाइमेट सर्विसेज 2021 : वॉटर’ नाम की अपनी नई रिपोर्ट में कहा कि 2018 में विश्व स्तर पर 3.6 अरब लोगों के पास प्रतिवर्ष कम से कम एक महीने पानी की अपर्याप्त पहुंच थी और 2050 तक यह संख्या पांच अरब से अधिक होने की संभावना है. रिपोर्ट के अनुसार पृथ्वी पर केवल 0.5 प्रतिशत पानी ही उपयोग लायक और उपलब्ध ताजा पानी है.
संयुक्त राष्ट्र की मौसम विज्ञान एजेंसी के महासचिव पेटेरी टालस का कहना है कि धरती का तापमान जिस तेजी के साथ बढ़ रहा है, उसकी बदौलत जल की सुलभता में भी बदलाव आ रहा है. जलवायु परिवर्तन का सीधा असर बारिश के पूर्वानुमान और कृषि पर भी पड़ रहा है. उन्होंने इस बात की भी आशंका जताई है कि इसका असर खाद्य सुरक्षा, मानव स्वास्थ्य और कल्याण पर भी हो सकता है.
आंकड़े बताते हैं कि विश्व के 1.6 अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है. पानी की इसी जंग को खत्म करने और जलसंकट को दूर करने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने 1992 में रियो डि जेनेरो के अपने अधिवेशन में 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में मनाने का निश्चय किया था. विश्व जल दिवस की अंतरराष्ट्रीय पहल रियो डि जेनेरो में 1992 में आयोजित पर्यावरण तथा विकास के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में की गई. इसके बाद 1993 में पहली बार 22 मार्च के दिन पूरे विश्व में जल दिवस के मौके पर जल के संरक्षण और रखरखाव पर जागरूकता फैलाने का कार्य किया गया.
भारत में विश्व की लगभग 16 प्रतिशत आबादी निवास करती है. लेकिन उसके लिए मात्न 4 प्रतिशत पानी ही उपलब्ध है. विकास के शुरुआती चरण में पानी का अधिकतर इस्तेमाल सिंचाई के लिए होता था. लेकिन समय के साथ स्थिति बदलती गई और पानी का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर औद्योगिक क्षेत्न में होने लगा. भविष्य में इन क्षेत्नों में पानी की और मांग बढ़ने की संभावना है, क्योंकि जनसंख्या के साथ-साथ औद्योगिक क्षेत्न में भी तीव्र वृद्धि हो रही है.
गौरतलब है कि कई शहरों (बेंगलुरु, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई आदि) में अभी से पानी की किल्लत होने लगी है. दूसरी तरफ गांवों में पेयजल की समस्या भी कम विकट नहीं है. वहां की 90 प्रतिशत आबादी पेयजल के लिए भूजल पर आश्रित है. लेकिन कृषि क्षेत्न के लिए भूजल के बढ़ते दोहन से बहुत से गांव पीने के पानी का संकट डोलने लगे हैं. दुनिया के ज्यादातर इलाकों में पानी की गुणवत्ता में कमी आ रही है और साफ पानी में रहने वाले जीवों की प्रजातियों की विविधता व पारिस्थितिकी को तेजी से नुकसान पहुंच रहा है. यहां तक कि समुद्री पारिस्थितिकी की तुलना में भी यह क्षरण ज्यादा है. इसमें यह भी रेखांकित किया गया है कि 90 फीसदी प्राकृतिक आपदाएं जल से संबंधित होती हैं और इनमें बढ़ोत्तरी हो रही है.
पानी के गंभीर संकट को देखते हुए पानी की उत्पादकता बढ़ाने की जरूरत है. चूंकि एक टन अनाज उत्पादन में 1000 टन पानी की जरूरत होती है और पानी का 70 फीसदी हिस्सा सिंचाई में खर्च होता है, इसलिए पानी की उत्पादकता बढ़ाने के लिए जरूरी है कि सिंचाई का कौशल बढ़ाया जाए. यानी कम पानी से अधिकाधिक सिंचाई की जाए. अभी होता यह है कि बांधों से नहरों के माध्यम से पानी छोड़ा जाता है, जो किसानों के खेतों तक पहुंचता है. जल परियोजनाओं के आंकड़े बताते हैं कि छोड़ा गया पानी शत-प्रतिशत खेतों तक नहीं पहुंचता.
कुछ पानी रास्ते में भाप बनकर उड़ जाता है, कुछ जमीन में रिस जाता है और कुछ बर्बाद हो जाता है. पानी का महत्व भारत के लिए कितना है यह हम इसी बात से जान सकते हैं कि हमारी भाषा में पानी के कितने अधिक मुहावरे हैं. अगर हम इसी तरह कथित विकास के कारण अपने जल संसाधनों को नष्ट करते रहे तो वह दिन दूर नहीं, जब सारा पानी हमारी आंखों के सामने से बह जाएगा और हम कुछ नहीं कर पाएंगे.
लेकिन अब हमें जब यह पता है कि जल संकट का विकट दौर चल रहा है तो यह समझना होगा कि जल का कोई विकल्प नहीं है, मानव का अस्तित्व जल पर ही निर्भर है. जल है तो कल है. हमें यह मानना ही होगा कि जल की आवश्यकता किसी अन्य आवश्यकता से ज्यादा महत्वपूर्ण है. इसके लिए जरूरत है जागरूकता की. एक ऐसी जागरूकता की जिसमें छोटे से छोटे बच्चे से लेकर वरिष्ठ नागरिक भी पानी बचाना अपना धर्म समझो.