पाकिस्तान का पीछा नहीं छोड़ रही है हिंसा, ताजा शिकार हुए इमरान खान

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: November 5, 2022 02:28 PM2022-11-05T14:28:07+5:302022-11-05T14:28:07+5:30

पाकिस्तान की जनता और नेताओं को समझने की जरूरत है कि हिंसा को प्रश्रय देने से खुद को भी सिर्फ जख्म ही मिलता है और देश को अगर उन्नति की राह पर आगे बढ़ाना है तो लोकतंत्र को मजबूत करना ही एकमात्र विकल्प है।

Violence is not giving up on Pakistan, Imran Khan is its latest victim | पाकिस्तान का पीछा नहीं छोड़ रही है हिंसा, ताजा शिकार हुए इमरान खान

पाकिस्तान का पीछा नहीं छोड़ रही है हिंसा, ताजा शिकार हुए इमरान खान

पाकिस्तान की राजनीति में खूनी हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है, जिसका ताजा शिकार इमरान खान हुए हैं। यह उनका सौभाग्य ही है कि गोली पैर में लगी जिससे उनकी जान बच गई, वरना हमलावर का इरादा तो उनकी जान लेने का ही था। जिस पाकिस्तान का जन्म ही हिंसा के बल पर हुआ, पिछले सात दशकों से वह उसी हिंसा के अभिशाप का शिकार हो रहा है।

16 अक्तूबर 1951 को पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की एक सार्वजनिक रैली के दौरान गोली मारकर हत्या की गई थी। इसके अलावा हिंसा में अपनी जान गंवाने वालों में पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो, उनके भाई मीर मुर्तजा भुट्टो, चौधरी जहूर इलाही, पंजाब के पूर्व गृह मंत्री शुजा खानजादा और पूर्व अल्पसंख्यक मंत्री शाहबाज भट्टी, खैबर-पख्तूनख्वा (के-पी) विधानसभा सदस्य और एएनपी के बशीर अहमद बिलौर तथा उनके बेटे हारून बिलौर सहित कई अन्य लोग शामिल हैं।

पाकिस्तान में सेना ने भी हिंसा का कम नंगा नाच नहीं किया है। प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को जनरल जिया-उल हक ने तख्तापलट कर हटा दिया था और फिर 1979 में उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया था. बाद में 1979 में जिया की भी एक हवाई हादसे में मौत हो गई, जिसे कुछ लोग राजनीतिक दुश्मनों की साजिश मानते हैं।

बेनजीर भुट्टो के हत्यारों का पता नहीं चल पाया लेकिन माना जाता है कि उनकी मौत के पीछे जनरल परवेज मुशर्रफ का हाथ था। जान लेने की कोशिश मुशर्रफ की भी हुई थी। एक बार उनकी कार जब एक पुल से गुजर रही थी तब उसके नीचे बम विस्फोट हुआ था, लेकिन मुशर्रफ इस हमले में बच गए। भारत को नुकसान पहुंचाने के इरादे से सेना वहां के आतंकवादी संगठनों की मदद करती रही है, लेकिन इन आतंकवादियों ने पाकिस्तान को भी कम छलनी नहीं किया है।

हिंसा-प्रतिहिंसा की आग में पाकिस्तान अपने जन्म के समय से ही जलता चला आ रहा है जिसमें वहां की आम जनता पिस रही है। यह विडंबना ही है कि इसके बावजूद वहां की सेना और शासक आतंकवादियों को पालने-पोसने से बाज नहीं आ रहे हैं। जबकि भारत को नुकसान पहुंचाने की कोशिश में पाकिस्तान खुद ही तबाह हो रहा है।

यही इमरान खान जो सत्ता से हटने के बाद भारत की तारीफ में कसीदे काढ़ चुके हैं और अपने विरोधियों के सामने भारत की नजीर पेश करते हैं, सत्ता में रहते हुए वे भी भारत के खिलाफ कम जहर नहीं उगलते थे। वहां के शासक बुनियादी समस्याओं से जनता का ध्यान बंटाने के लिए भारत के खिलाफ दुश्मनी को बढ़ावा देते हैं। हिंसा से हासिल होने वाली कोई चीज किस तरह हमेशा हिंसा से ही जूझती रहती है, पाकिस्तान इसका ज्वलंत उदाहरण है।

लोकतंत्र वहां केवल नाम का है। सेना ही वहां कभी प्रत्यक्ष तो कभी अप्रत्यक्ष तरीके से शासन करती है। सत्ता खोने के बाद इमरान खान उसी सेना का भंडा फोड़ने की कोशिश में लगे हुए थे और असंभव नहीं है कि इसी के कारण उनकी जान लेने की कोशिश हुई हो। 

बहरहाल, पाकिस्तान की जनता और नेताओं को समझने की जरूरत है कि हिंसा को प्रश्रय देने से खुद को भी सिर्फ जख्म ही मिलता है और देश को अगर उन्नति की राह पर आगे बढ़ाना है तो लोकतंत्र को मजबूत करना ही एकमात्र विकल्प है।

Web Title: Violence is not giving up on Pakistan, Imran Khan is its latest victim

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