विजय दर्डा का ब्लॉग: इस तानाशाह की नकेल कसनेवाला कोई है?

By विजय दर्डा | Published: March 13, 2023 07:28 AM2023-03-13T07:28:17+5:302023-03-13T07:29:39+5:30

शी जिनपिंग तीसरी बार चीन के राष्ट्रपति चुने गए हैं. यह केवल एक देश चीन का अंदरुनी मामला नहीं है क्योंकि जिनपिंग महज राष्ट्रपति नहीं बल्कि एक तानाशाह की भूमिका में हैं. उन्होंने अपने देश में तो विरोध की हर आवाज को कुचला ही है, दुनिया में भी ऐसा ही करना चाहते हैं. हमारे पड़ोस में इस तानाशाह का पलना हमारे लिए बहुत खतरनाक है.

Vijay Darda's blog: Xi Jinping, Is there anyone to crack down on this tyrant? | विजय दर्डा का ब्लॉग: इस तानाशाह की नकेल कसनेवाला कोई है?

चीन के लोगों पर दमन चक्र चला रहे हैं शी जिनपिंग

क्या आपको पता है कि दुनिया में आर्थिक और सैन्य क्षेत्र में अत्यंत तेजी से उभरे चीन के सर्वोच्च नेता शी जिनपिंग ने जिस कम्युनिस्ट पार्टी को दबोच लिया है, उसी पार्टी ने 1962 में उनके पिता शी झोंगक्सुन को जेल में डाल दिया था! शी झोंगक्सुन चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के ताकतवर सदस्यों में शामिल थे लेकिन माओ को अपने इस साथी पर दगाबाजी की आशंका थी. इसलिए प्रताड़ित भी किया और जेल में भी डाला. 

हालात ऐसे बन गए थे कि शी जिनपिंग को उस स्कूल से भी निकाल दिया गया जहां राजनेताओं के बच्चे पढ़ते थे. युवा होने पर शी जिनपिंग को पार्टी की सदस्यता भी नहीं मिल रही थी! लेकिन कमाल देखिए कि अब वो बेताज बादशाह हैं. चालाक तानाशाह हैं. माओ ने तो इसकी कल्पना भी नहीं की होगी! तो क्या शी माओ के कम्युनिज्म को खत्म करने में लगे हैं?

वैसे अपने विरोधियों के प्रति चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का रवैया शुरू से ही दमन वाला रहा लेकिन पार्टी ने यह खयाल जरूर रखा कि कोई व्यक्ति तानाशाह न बन जाए. इसीलिए 1990 के दशक में यह नियम बनाया गया कि कोई भी व्यक्ति दो बार से ज्यादा राष्ट्रपति पद पर नहीं रह सकता. शी जिनपिंग ने बड़ी चालाकी से पार्टी में पैठ बनाई. अपने विरोधियों को निपटाते गए और 2012 में राष्ट्रपति की कुर्सी पर जा पहुंचे. उन्होंने चीनी लोगों के मन में एक तरफ सपना जगाया तो दूसरी तरफ इतना सख्त रवैया अपनाया कि कोई भी व्यक्ति आवाज न उठा सके. वे इतने शक्तिशाली हो गए कि पार्टी भी उनके आगे गौण हो गई. सर्वशक्तिमान पोलित ब्यूरो जिनपिंग के इशारे पर नाचती है.

1989 में जब लोकतंत्र की मांग करने वाले हजारों चीनी युवाओं को तियानानमेन चौक पर तोप से भून डाला गया था उस वक्त शी जिनपिंग काफी दूर फुजियान प्रांत में पार्टी संभाल रहे थे और वहां स्थानीय विद्रोह को कुचलने में उनकी प्रमुख भूमिका थी. कहते हैं कि उनकी क्रूरता ने उन्हें पार्टी में तेजी से आगे बढ़ाया. उस घटना के बाद मैं तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री नरसिंह राव के साथ तियानानमेन चौक पर गया था. जब लोगों से पूछा तो उन्होंने कहा कि कुछ हुआ ही नहीं था. अमेरिकी चालबाजी है यह सब!  

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वह नरसंहार चीन के इतिहास के पन्ने पर है ही नहीं. शी जिनपिंग के शासन में तो इस तरह की घटनाएं और बढ़ी हैं. विरोध करने वाले रातोंरात गायब कर दिए जाते हैं और उनका कुछ पता नहीं चलता! आज इस तानाशाह ने शिनजियांग प्रांत में ‘री-एजुकेशन’ के नाम पर लाखों वीगर मुसलमानों को कैद में डाल रखा है. हांगकांग की स्वायत्तता को तो चीन निगल ही गया है, 2019 के लोकतंत्र के लिए हुए आंदोलन को भी बड़ी क्रूरता और चालाकी से कुचल डाला. 2020 में नेशनल सिक्योरिटी लॉ पास करके लोकतंत्र-समर्थक विरोध प्रदर्शनों को हमेशा के लिए खत्म कर दिया.  

दरअसल चीनी संसद अब पूरी तरह से जिनपिंग का रबर स्टांप बन गई है. बीते शनिवार को ही संसद ने  जिनपिंग के अत्यंत वफादार ली कियांग को वहां का प्रीमियर अर्थात प्रधानमंत्री चुना. आपको बता दें कि चीन की जिस जीरो कोविड नीति के कारण वहां लाखों लोग भुखमरी के शिकार हुए उसे इसी ली कियांग ने तैयार किया था. जीरो कोविड नीति के कारण कितने लोग मरे, यह किसी को पता नहीं है.

राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठे इस तानाशाह की पकड़ का अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि 2017 में शी जिनपिंग के विचारों पर आधारित पुस्तक को संविधान में शामिल कर लिया गया. इससे पहले केवल दो नेताओं माओ और डेंग शियाओपिंग के विचार ही संविधान में शामिल किए गए थे! आज इसने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि जो कुछ भी उसके मुंह से निकलता है वह चीन का कानून बन जाता है. 

चीन के न जाने कितने उद्योगपति इस समय जेल में बंद हैं और कितने देश से बाहर भाग खड़े हुए हैं. चीनी उद्योग को दुनिया भर में नई पहचान दिलाने वाले जैक मा इस वक्त कहां हैं, किसी को पता नहीं है. चीन में इस वक्त आलोचना का हर माध्यम खत्म है. एप्पल डेली और स्टैंड न्यूज जैसे शीर्ष मीडिया संस्थानों को भी खत्म कर दिया गया. मीडिया के नाम पर केवल सरकारी मीडिया बचा है.

मैंने यूं ही नहीं कहा कि ये शख्स एक राष्ट्रपति नहीं बल्कि खतरनाक तानाशाह है! ये अपनी जान के अलावा किसी की जान की परवाह नहीं करता. अमेरिका साफ कह चुका है कि कोविड वायरस चीन ने ही पैदा किया और दुनिया में तबाही मचा दी. वाकई चीन में वही होता है जो शी चाहते हैं. आज लोग वहां मस्जिद और बौद्ध मंदिर भी घर के भीतर छिप कर चला रहे हैं. 

शी जिनपिंग एक तरफ चीन के लोगों पर दमन चक्र चला रहे हैं तो दूसरी तरफ पूरी दुनिया को अपनी मुट्ठी में करने को बेताब हैं. सौ से ज्यादा देश कर्ज के चीन के कुचक्र में फंस चुके हैं. चाहे श्रीलंका हो, पाकिस्तान हो या फिर अफगानिस्तान या मालदीव, हर जगह उसने घुसपैठ कर ली है. उसकी हिम्मत देखिए कि वह अमेरिका को भी आंखें दिखाने लगा है. पिछले सप्ताह ही उसने अमेरिका को धमकाया है कि यदि जरूरत पड़ी तो संघर्ष होगा. आपने पढ़ा ही होगा कि चीन का गुब्बारा जासूसी के लिए अमेरिका के आकाश में उड़ रहा था! जासूसी के लिए तो उसने अमेरिकी विमान प्राप्त करके उसके कल-पुर्जे तक खोल डाले!  

निश्चित रूप से भारत के लिए स्थिति ज्यादा खतरनाक है ही क्योंकि वो हमारा पड़ोसी है और न केवल तिब्बत बल्कि हमारी जमीन भी हड़पे बैठा है. हमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य भी नहीं बनने दे रहा है. दुनिया के लिए खतरे की बात यह है कि उसने यूनाइटेड नेशन की प्रासंगिकता को भी भारी चोट पहुंचाई है. जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत को चरितार्थ कर रहा है. कहीं पैसे के जोर पर, कहीं बंदूक की नोंक पर, कहीं यूएन की सत्ता के जोर पर, कहीं इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन के जोर पर!  आज भी हिंदुस्तान में 60 प्रतिशत से ज्यादा खाद चीन से आता है.

दुनिया के लिए चांडाल बने इस तानाशाह ने चीन की सभ्यता खत्म कर दी, चीन में विद्वानों का नामोनिशान खत्म कर दिया. बस एक बाजार खड़ा कर दिया! वह पूरी दुनिया को अपने रंग में रंगना चाहता है. इस तानाशाह की नकेल कसने वाला क्या कोई है?

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