विजय दर्डा का ब्लॉग: चीन-अमेरिका की जंग में हम भी झुलसेंगे!
By विजय दर्डा | Published: August 8, 2022 08:05 AM2022-08-08T08:05:09+5:302022-08-08T08:05:09+5:30
चीन इस वक्त अपने अहंकार में चूर है. उसे लग रहा है कि वह जो चाहेगा वो करेगा. तिब्बत को तो वह निगल ही चुका है. अब ताइवान पर कब्जा उसकी सबसे बड़ी चाहत है. सैन्य दृष्टि से देखें तो यह कोई बड़ी बात नहीं लगती लेकिन यूक्रेन-रूस जंग की दृष्टि से देखें तो यह आसान भी नहीं है. वैसे यह तय है कि चीन और अमेरिका में जंग हुई तो हम भी झुलसेंगे.
अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद चीन आगबबूला है. मुझसे किसी ने पूछा कि ताइवान के मुद्दे पर क्या चीन और अमेरिका के बीच जंग होगी? मैंने साफ तौर पर कहा कि मुझे नहीं लगता कि कोई जंग होगी. देसी भाषा में कहें तो मारामारी चलती रहेगी. युद्ध की आशंका मुझे नहीं लगती. दुनिया इस समय बिजनेस पर चलती है. न चीन जुर्रत करेगा और न अमेरिका जंग चाहेगा. ...लेकिन दुर्भाग्य से यदि ऐसा हुआ तो जंग की आग में दुनिया तो झुलसेगी ही, हिंदुस्तान सबसे ज्यादा झुलसेगा.
चलिए सबसे पहले समझते हैं कि ताइवान का ये मसला है क्या? चीन उसे क्यों हजम करना चाहता है? दूसरे विश्व युद्ध के समय चीन की कम्युनिस्ट पार्टी चीन की सत्ताधारी नेशनलिस्ट पार्टी (कुओमिन्तांग) से जंग लड़ रही थी. 1949 में माओत्से तुंग के नेतृत्व वाली चीनी कम्युनिस्ट पार्टी जीत गई और चीन के मुख्य भाग पर उसका कब्जा हो गया. कुओमिन्तांग समर्थकों ने भाग कर दक्षिणी-पश्चिमी द्वीप ताइवान में शरण ली. तब से ही चीन उसे अपना हिस्सा मानता रहा है.
तिब्बत को निगल जाने के बाद चीन का हौसला बढ़ा लेकिन अत्यंत छोटा होते हुए भी ताइवान ने अपनी अलग लोकतांत्रिक और तकनीकी रूप से समृद्ध पहचान कायम की. इसके ठीक विपरीत चीन में तानाशाही है. वहां मस्जिद और चर्च भी अंडरग्राउंड चल रहे हैं. जमीन के हर टुकड़े को वह खुद में समाहित करना चाहता है.
चीन की ताकत के कारण मुश्किल से दर्जन भर देशों ने ही ताइवान को मान्यता दी है. अमेरिका और भारत जैसे देशों ने ताइवान को मान्यता तो नहीं दी है लेकिन पर्दे के पीछे से संबंध जरूर बना रखे हैं. ताइवान की सुरक्षा के लिए अमेरिका ने एक प्रस्ताव भी पारित कर रखा है. चीन के विरोध के बावजूद ताइवान को हथियार वह बेचता भी रहा है. हांगकांग हाथ में आने के बाद ताइवान पर कब्जे की चीनी चाहत बढ़ती जा रही है.
सैन्य दृष्टि से देखें तो चीन की तुलना में ताइवान की ताकत कोई मायने नहीं रखती है. चीन के पास 20 लाख से ज्यादा सैनिक हैं जबकि ताइवान के पास केवल करीब 1 लाख 63 हजार! मुकाबला है ही नहीं. पिछले साल कई बार चीन के लड़ाकू विमान ताइवान के आकाश में धमकी देने के लिए पहुंचे. लेकिन ताइवान की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि उसे चीन के हाथों अमेरिका, भारत या जापान नहीं जाने देना चाहेंगे. क्वाड का गठन इसीलिए किया गया है. सैन्य दृष्टि से साउथ चाइना सी अमेरिका, भारत और जापान जैसे देशों के लिए बहुत महत्व रखता है. इसलिए यदि चीन ताइवान पर हमले का दुस्साहस करता है तो अमेरिका के कूदने की पूरी संभावना है.
जापान, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के देश भी कूदेंगे ही कूदेंगे! 1996 में जब ताइवान की खाड़ी में तनाव पैदा हुआ था तब अमेरिका ने लड़ाकू विमानों के दो समूह ताइवान की मदद के लिए भेजे थे. अमेरिका कभी नहीं चाहेगा कि ताइवान को जो हथियार उसने बेचे हैं वह चीन के हाथ चला जाए.
ताइवान के पास एक और बड़ा रक्षा कवच है जिसे ‘सिलिकॉन शील्ड’ के नाम से जाना जाता है. दुनिया के ज्यादातर देश ताइवान में बनने वाली एडवांस्ड सेमीकंडक्टर चिप्स पर निर्भर हैं. इनमें चीन भी शामिल है. यदि ये चिप्स बनने की गति धीमी भी हो गई तो दुनिया के लिए संकट की स्थिति पैदा हो जाएगी. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ये चिप्स दुनिया के केवल दर्जन भर देश ही बनाते हैं लेकिन ज्यादातर चिप ताइवान और साउथ कोरिया बनाते हैं. मोबाइल से लेकर विमान और अंतरिक्ष विज्ञान सब इसी चिप पर निर्भर होते हैं. इसी चिप में उपकरणों की आत्मा होती है.
इसके साथ ही इस वक्त चीन की आर्थिक स्थिति अत्यंत खराब है. बैंकिंग सिस्टम तबाह हो चुका है. चीन के कुछ क्षेत्रों में तो बैंक से पैसा निकालने पर पाबंदी लगी हुई है. लोगों के क्रोध से बैंकों को बचाने के लिए सड़कों पर टैंक्स तैनात कर रखे हैं. अंदरूनी तौर पर लोगों में काफी असंतोष है और हालात इससे ज्यादा खराब हुए तो कभी भी विद्रोह की स्थिति बन सकती है. शी जिनपिंग कभी नहीं चाहेंगे कि उन्हें अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए एक और थ्येन आनमन चौक जैसी घटना को दोहराना पड़े. इस चौक पर लोकतंत्र की मांग कर रहे लाखों युवाओं को चीनी टैंक ने भून डाला था.
पी.वी. नरसिम्हा राव के साथ जब मैं चीन गया था तो उस चौक पर भी गया. मैंने चीनियों से उस घटना के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि कुछ हुआ ही नहीं था! अमेरिका ने कहानी गढ़ी! मेरा आकलन है कि ताइवान पर हमले की जुर्रत करना चीन के लिए आसान नहीं होगा. रूस भी उसे ऐसा करने से रोकेगा लेकिन ये दुनिया की कूटनीति है, यहां कोई भविष्यवाणी कभी नहीं की जा सकती. पता नहीं क्या हो जाए! यदि कभी जंग हुई तो चीन को भी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.
यूक्रेनियों ने रूस को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया है. ताइवानी तो उससे भी आगे रहेंगे. जंग पूरी दुनिया को तबाह करेगी क्योंकि अमेरिका और चीन की जंग कोई सामान्य जंग नहीं होगी. धरती से लेकर अंतरिक्ष तक जंग लड़ी जाएगी. पूरी दुनिया को सावधान रहने की जरूरत है. हिंदुस्तान को खासतौर पर सतर्क रहने की जरूरत है क्योंकि अमेरिका और चीन दोनों ही चाहेंगे कि भारत इससे अछूता न रहे. चीन वैसे भी भारत को बहुत परेशान कर रहा है.
पिछले जून से लेकर अभी तक कई बार चीनी लड़ाकू विमानों ने भारत के हवाई क्षेत्र का उल्लंघन किया है. डोकलाम और गलवान में उसने हमें उलझाने की पूरी कोशिश की. वह हमारे कुछ इलाकों को भी निगलना चाहता है लेकिन उसे पता होना चाहिए कि आज का हिंदुस्तान 1962 का भारत नहीं है. मैं अभी-अभी सीमा पर सैनिकों की ताकत को देखकर लौटा हूं. हमारे जवान चीन को भी धूल चटाने के लिए तैयार खड़े हैं. ..फिर भी जंग न हो, यही अच्छा है. रूस और यूक्रेन के बीच जंग से दुनिया को होने वाले नुकसान को हम सब देख रहे हैं. युद्ध अंतत: सबको तबाह करता है. सबको गरीब बना देता है. ये संभलने का वक्त है.