विजय दर्डा का ब्लॉग: तालिबान के कब्जे में पाकिस्तान आ गया तो ?

By विजय दर्डा | Published: January 2, 2023 07:58 AM2023-01-02T07:58:57+5:302023-01-02T07:58:57+5:30

हमें लगातार जख्म देने वाला पड़ोसी पाकिस्तान इस वक्त खतरनाक मोड़ पर खड़ा है लेकिन यह हमारे खुश होने की वजह नहीं है. यह पूरी दुनिया के लिए चिंता का सबब है कि तालिबान की तरह किसी दिन तहरीक-ए-तालिबान ने यदि पाकिस्तान पर कब्जा कर लिया तो क्या होगा? सवाल खतरनाक है...

Vijay Darda's Blog: What if Pakistan comes under the control of Taliban? | विजय दर्डा का ब्लॉग: तालिबान के कब्जे में पाकिस्तान आ गया तो ?

तालिबान के कब्जे में पाकिस्तान आ गया तो ?

हम सब जब नई ऊर्जा और जोरदार जज्बे के साथ नववर्ष का स्वागत कर रहे हैं तब मैं एक ऐसे विषय की चर्चा कर रहा हूं जो न केवल चिंता का विषय है बल्कि खौफनाक कल की ओर भी इशारा कर रहा है. नापाक इरादों से सबकी शांति भंग करने वालों की चर्चा से पहले मैं अपने प्रिय पाठकों को नए साल की शुभकामनाएं देता हूं. आप सब स्वस्थ रहें, प्रसन्न रहें और हर चुनौती का सामना करने में सक्षम बनें.

...तो चिंताजनक सवाल यह है कि पाकिस्तान में आतंक का खूनी खेल खेल रहे तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) का यदि वाकई पाकिस्तान की सत्ता पर कब्जा हो गया तो क्या होगा..? सामान्य तौर पर यह अभी जल्दबाजी में किया गया सवाल लग सकता है लेकिन आतंकवाद पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों के जेहन में यह सवाल उभरने लगा है. 

जरा सोचिए कि पूर्वी पाकिस्तान में जब मुल्ला मोहम्मद उमर ने शांति और सुरक्षा के नाम पर तालिबान की स्थापना की थी तब किसने सोचा था कि यह संगठन अफगानिस्तान को अपने कब्जे में ले लेगा? सत्ता जाने के बाद वर्षों तक महाबली अमेरिका से भी टकराने की जुर्रत करेगा और फिर सत्ता में आ जाएगा? 

इसी अफगानी तालिबान की मदद से शक्तिशाली बन चुका तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) आज पाकिस्तान के बड़े कबाइली इलाकों से लेकर शहरों तक में खौफ स्थापित कर चुका है. वजीरिस्तान से लेकर खैबर पख्तूनख्वाह तक उसकी तूती बोलती है. बन्नू इलाके में पिछले महीने ही उसने आर्मी कैंप में कई अधिकारियों को बंदी बना लिया था. 

2007 में बने इस संगठन ने 2009 में मैरियट होटल पर बमों से हमला किया था. इसके बाद सेना के मुख्यालयों से लेकर पेशावर के आर्मी स्कूल पर हमले तक में इसका हाथ रहा है. आपको याद होगा कि उस हमले में 130 से ज्यादा स्कूली बच्चों की मौत हुई थी. और यह संगठन इस खूनी मंजर को खुलेआम कबूल भी करता है. वजीरिस्तान और खैबर पख्तूनख्वाह के कई इलाकों में पुलिस थानों से बाहर नहीं निकलती.

मैंने अपने इसी कॉलम में लिखा था कि आप सांप पालें और इस भ्रम में रहें कि सांप तो केवल पड़ोसी को ही काटेगा, यह हो नहीं सकता. सांप किसी दिन आपको भी काटेगा. यही पाकिस्तान के साथ हो रहा है. जब पहली बार अफगानिस्तान पर तालिबान ने कब्जा किया था तो उसे पाकिस्तान ने फौरन मान्यता दे दी थी क्योंकि ये तालिबान भी तो उसी की कोख से पैदा हुआ था. 

जैसे-जैसे अफगानिस्तान का तालिबान मजबूत हुआ, पाकिस्तान में टीटीपी मजबूत बना. टीटीपी पहले ही फरमान सुना चुका है कि पाकिस्तान को शरिया कानून के तहत चलाना उसका लक्ष्य है. टीटीपी ने इसके साथ ही पाक के खिलाफ अभियान छेड़ दिया. बड़े हमलों के साथ अधिकारियों की टार्गेट किलिंग भी शुरू हो गई. पाक को भरोसा था कि अफगानी तालिबान टीटीपी को काबू में करने में उसकी मदद करेगा लेकिन हुआ ठीक उल्टा. ऊपर से अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बॉर्डर पर ही तनाव पैदा हो गया.

टीटीपी की ताकत का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इमरान खान की सरकार को यह महसूस हुआ कि टीटीपी के कब्जे वाले इलाके में उससे लड़ना आसान नहीं है इसलिए बातचीत की जाए. कई दौर में अफगानिस्तान में बातचीत हुई. कबाइली नेताओं का जिरगा, उलेमाओं का प्रतिनिधिमंडल और सरकारी अधिकारी भी इसमें शामिल हुए. 

इसमें आईएसआई के तत्कालीन डायरेक्टर जनरल फैज हमीद भी शामिल थे. इसके बाद एक महीने के संघर्ष विराम की घोषणा हुई. फिर इस संघर्ष विराम को अनिश्चितकाल के लिए बढ़ा दिया गया लेकिन इसी बीच अफगान तालिबान के एक प्रमुख नेता उमर खालिद खुरासानी की हत्या हो गई. 

कुछ महीनों की शांति के बाद अचानक टीटीपी ने संघर्ष विराम तोड़ दिया और हमले शुरू कर दिए. सितंबर के बाद से अभी तक टीटीपी 130 से ज्यादा हमले कर चुका है. हर हमले की यह खुलेआम जिम्मेदारी भी लेता है.

अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद पाकिस्तान में टीटीपी का स्वरूप भी तेजी से बदला है. पहले उसमें कई गुट थे. वे गुट आपस में भी उलझते थे लेकिन अब उन सभी छोटे गुटों का विलय हो गया है. इसमें अफगानी तालिबान ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. टीटीपी अब नूर वली महसूद के नेतृत्व में पहले से ज्यादा ताकतवर है और हथियारों की भी कोई कमी नहीं है. पाकिस्तानी फौज के खिलाफ उसने अपनी ताकत दिखाई भी है. 

हालांकि पाकिस्तानी फौज बड़ी है और उसके पास युद्ध लड़ने का अनुभव भी है इसलिए टीटीपी के लिए रास्ता आसान तो बिल्कुल नहीं है लेकिन किसी दिन अफगान तालिबान इसके साथ आ गया तो क्या पाकिस्तानी फौज स्थिति को संभाल पाएगी? मैं केवल फौज की बात इसलिए कर रहा हूं क्योंकि वहां लोकतंत्र नहीं है जहां जनता के प्रतिनिधि फैसला ले सकें. जो कोशिश करता है, फौज उसे बाहर का रास्ता दिखा देती है.

पाकिस्तान में फौज निर्मित दूसरे दर्जनों आतंकी संगठन चल रहे हैं जिनका इस्तेमाल वह भारत के खिलाफ करता रहता है. ये आतंकी भी यदि एक मकसद के साथ टीटीपी के साथ हो गए तो? हालांकि तत्काल ऐसा होना संभव नहीं लगता लेकिन भविष्य की कोख में क्या पल रहा है, किसे मालूम? यदि ऐसी स्थिति बनती है तो यह हमारे हिंदुस्तान के लिए तो खतरनाक होगा ही, पूरी दुनिया के लिए खौफनाक वक्त लेकर आएगा. 

इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि अभी तक दुनिया के किसी भी आतंकी संगठन की पहुंच परमाणु बम तक नहीं है. टीटीपी केवल पाकिस्तान की समस्या नहीं है..! आतंकी केवल आतंक ही पैदा नहीं करते बल्कि विकास में बाधा बनते हैं. दुआ के साथ भरोसा करें कि आतंकियों का मकसद कभी कामयाब न हो..!

Web Title: Vijay Darda's Blog: What if Pakistan comes under the control of Taliban?

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