विजय दर्डा का ब्लॉग: क्या कश्मीर भूलना चाहते हैं पाकिस्तानी ?

By विजय दर्डा | Published: February 6, 2023 07:22 AM2023-02-06T07:22:48+5:302023-02-06T07:22:48+5:30

भूख और महंगाई से तबाह पाकिस्तानी अवाम अब राग कश्मीर नहीं अलापना चाहती. अपने हुक्मरानों और अपने नेताओं से वह सवाल पूछ रही है कि कश्मीर के नाम पर लड़ी गई जंगों में गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और पिछड़ेपन के अलावा क्या मिला? इधर पाक अधिकृत कश्मीर में नारा लग रहा है- 'आर पार खोल दो, कारगिल को जोड़ दो!', हुक्मरान परेशान हैं.

Vijay Darda's Blog: Do Pakistanis want to forget Kashmir | विजय दर्डा का ब्लॉग: क्या कश्मीर भूलना चाहते हैं पाकिस्तानी ?

विजय दर्डा का ब्लॉग: क्या कश्मीर भूलना चाहते हैं पाकिस्तानी ?

आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि पाकिस्तान में सोशल मीडिया पर इन दिनों एक बिल्कुल अलग तरह का अभियान चल रहा है. भारत में बैठकर हमें भले ही यह लगता हो कि पाकिस्तान की पूरी अवाम कश्मीर को पाकिस्तान में मिला लेने को आतुर है लेकिन अब यह हकीकत नहीं रह गई है. पाकिस्तानी अवाम राग कश्मीर पर अब और नहीं झूमना चाहती है. अब तो सोशल मीडिया पर यह सवाल पूछा जाने लगा है कि कश्मीर राग अलापने से और भारत के साथ चार जंगों में पाकिस्तान को मिला क्या? बहुत से लोग तो स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) को भी छोड़ देना चाहिए.

मेरे एक पाकिस्तानी पत्रकार मित्र ने जब अपनी अवाम के इस रुख का मुझसे जिक्र किया तो मेरे लिए भी यह अचंभे वाली बात थी लेकिन मौजूदा वक्त की हकीकत यही है. हाल के दिनों में सोशल मीडिया पर वायरल कई वीडियो मेरे पास आए. पाकिस्तान को भी तरक्की की राह पर ले जाने की तमन्ना रखने वाले ढेर सारे पढ़े-लिखे युवाओं ने एक तरह का अभियान शुरू किया है. ये युवा आम लोगों से भारत और पाकिस्तान को लेकर सवाल पूछते हैं. 

ये सवाल भारत की तेज तरक्की और पाकिस्तान के मौजूदा हालात को लेकर होते हैं. चर्चा में कश्मीर भी उभरता है और वहां की अवाम के जो जवाब मिलते हैं वे नई समझ की ओर इशारा करते हैं. इन वायरल वीडियोज में पाकिस्तानी युवा अपने मुल्क पर गर्व तो करते हैं लेकिन अपनी सरकार और अपनी फौज से यह सवाल भी पूछते हैं कि पिछले 75 वर्षों में कश्मीर का राग अलापने से पिछड़ेपन के अलावा और क्या मिला? 

एक पाकिस्तानी युवा तो गुस्से में पूछ रहा था कि क्या हमारी (पाकिस्तानी) फौज के पास यह ताकत है कि कश्मीर को भारत से छीन ले? दूसरा युवा पूछता है कि कश्मीर का जो हिस्सा हमारे पास है वहां के लोग वास्तव में हमारे साथ रहना चाहते भी हैं या नहीं?

उस पाकिस्तानी युवा की बातों में वाकई दम है. पाकिस्तानी हुक्मरान और वहां की फौज भारत से कश्मीर छीनने की कई कोशिशें कर चुकी है. 1947 से लेकर 1999 तक चार जंगें हो चुकीं और हर बार पाक फौज को धूल चाटनी पड़ती है. 1971 में तो उनके करीब-करीब एक लाख सैनिकों ने भारतीय फौज के सामने हथियार डाले थे. 

एक युवा ने बड़ी सटीक बात कही कि भारत बड़ा मुल्क है, उसकी अर्थव्यवस्था बड़ी है. जंग के हजारों करोड़ का खर्च वह बर्दाश्त कर लेता है लेकिन पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था तो हर बार जमींदोज हो जाती है. जिस पैसे से लोगों का पेट भरना चाहिए था, बच्चों को बेहतर शिक्षा देनी चाहिए थी, बड़े शैक्षणिक संस्थान खोलने चाहिए थे, वो पैसा बारूद में उड़ा दिया गया. आखिर बड़ी ताकतों की उंगलियों के इशारों पर हम कठपुतली की तरह कब तक नाचते रहेंगे? ये बात सही भी है! और जहां तक पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर का सवाल है तो वहां के लोग पाकिस्तान के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. 

गिलगित बाल्टिस्तान में कई हिंसक प्रदर्शन भी हो चुके हैं. भूख और गरीबी ने गिलगित बाल्टिस्तान के पूरे इलाके को तबाह कर दिया है. लोग यह मांग करने लगे हैं कि वे भारत के साथ जाना चाहते हैं, हमें भारत में मिला दो. वहां होने वाले प्रदर्शनों में नारे भी लग रहे हैं- ‘आर पार जोड़ दो, कारगिल को खोल दो’! निश्चय ही पाकिस्तानी युवाओं के सोशल मीडिया अभियान से उनकी आवाज अब दुनिया के सामने आ रही है. इससे खासतौर पर पाकिस्तानी फौज बहुत नाराज है.

पाकिस्तानी युवाओं के इस अभियान से पहले भी इस तरह की बातें अब पेरिस में रह रहे पाकिस्तानी पत्रकार ताहा सिद्दीकी करते रहे हैं. वहां की फौज उन्हें पाकिस्तान विरोधी मानती है इसलिए जब वे पेरिस भाग रहे थे तब उनकी हत्या की कोशिश भी हुई थी. 

पाकिस्तान के जाने-माने पत्रकार और विश्लेषक ताहिर असलम गोरा भी अपनी सच्ची बातों के कारण अब कनाडा में रहने को मजबूर हैं. पाकिस्तान की वरिष्ठ पत्रकार आरजू काजमी भी इसी तरह के सवाल उठाती रही हैं. हालांकि वे अपने चैनल पर यह दर्शाती हैं कि वे इस्लामाबाद में रह रही हैं लेकिन हकीकत में उन्हें भी देश छोड़ना पड़ा है. ये सभी पत्रकार सोशल मीडिया के अपने चैनलों पर लगातार कहते रहे हैं कि पाकिस्तान को यदि तबाही से बचना है तो उसे भारत से दुश्मनी खत्म करनी ही होगी.

वैसे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ स्वयं कह चुके हैं कि भारत के साथ तीन युद्ध के बदले में परेशानी, गरीबी और बेरोजगारी के अलावा कुछ नहीं मिला. यह अलग बात है कि अगले ही दिन फौज के दबाव में उनके ऑफिस ने यू-टर्न ले लिया! 

दरअसल पाकिस्तान की असली समस्या उसकी फौज ही है. जब अटल बिहारी वाजपेयी और नवाज शरीफ दोस्ती की राह पर निकलने की कोशिश कर रहे थे तो मियां मुशर्रफ ने कारगिल में घुसपैठ कर दी. नतीजे के रूप में जंग हुई. पाकिस्तान ने शांति का मौका खो दिया. जब इमरान खान ने भारत से दोस्ती की कोशिश की तो उन्हें लंगड़ी मार दी गई. वे नहीं माने तो सत्ता से उखाड़ फेंका गया! 

भारत में आतंकवाद को पैदा करने से लेकर पालने-पोसने तक में शामिल पाक फौज का वजूद ही भारत विरोध पर टिका है. वह कैसे चाहेगी कि दोस्ती हो जाए! लेकिन उसे अमेरिका की डेलावेयर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर मुकद्दर खान की बात पर जरूर गौर करना चाहिए. खान ने कहा है कि पाकिस्तान इतनी बुरी हालत में है कि भारत जब चाहे उस पर कब्जा कर सकता है. पाकिस्तानियों को भारत का शुक्रगुजार होना चाहिए कि वह पाक की बदहाली का फायदा नहीं उठा रहा है!

मिस्टर खान! आपने सही कहा है. इतिहास गवाह है कि हमारी संस्कृति और हमारी तासीर हमलावर होने की कभी रही भी नहीं है. और न हम पीठ में छुरा भोंकते हैं. फिलहाल तो मैं उस आम पाकिस्तानी की बात से मर्माहत हूं... वह कह रहा था- भारत से हमारे संबंध अच्छे होते तो हमें कम से कम आटा और प्याज के लिए तो लंबी कतार नहीं लगानी पड़ती.

Web Title: Vijay Darda's Blog: Do Pakistanis want to forget Kashmir

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