विजय दर्डा का ब्लॉग: ऑस्ट्रेलिया की आग दुनिया के लिए बड़ी चेतावनी
By विजय दर्डा | Published: January 13, 2020 05:57 AM2020-01-13T05:57:08+5:302020-01-13T05:57:08+5:30
आग का असर पड़ोसी देश न्यूजीलैंड तक पहुंच चुका है. वहां के आसमान में नारंगी रंग का धुआं फैल रहा है. इस धुएं ने दक्षिणी द्वीप के ज्यादातर हिस्से को ढक लिया है और पूरी तरह सफेद नजर आने वाले हिमनद अब भूरे रंग के दिखने लगे हैं.
ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स और विक्टोरिया राज्य में लगी आग का स्वरूप कितना भयावह है, इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि चार महीने के भीतर 63 लाख हेक्टेयर के जंगल और नेशनल पार्क स्वाहा हो चुके हैं. इससे पहले आग की इतनी बड़ी घटना नहीं हुई. इसी साल के प्रारंभ में अमेजन के जंगलों में आग लगी थी और न्यू साउथ वेल्स में करीब 9 लाख हेक्टेयर का जंगल जलकर राख हो गया था. इसके बाद आग पर काबू पा लिया गया था. इस बार आग पर काबू पाने में मुश्किल हो रही है. इन जंगलों के आसपास 260 किलोमीटर का इलाका खाली करा लिया गया है क्योंकि हवा के झोंकों के साथ आग लगातार फैलती जा रही है. कभी लगता है कि एक इलाके में आग पर काबू पाने में सफलता मिल रही है तो दूसरे इलाके में आग भड़क उठती है.
सिडनी यूनिवर्सिटी का प्रारंभिक अनुमान है कि इस आग ने जंगलों और नेशनल पार्क में रहने वाले पचास करोड़ से ज्यादा वन्य प्राणियों को नष्ट कर दिया. आग का सबसे बुरा प्रभाव कोआला पर पड़ा है. न्यू साउथ वेल्स के मध्य-उत्तरी इलाके में सबसे अधिक कोआला रहते हैं. खासकर फैसकोलार्कटिडाए प्रजाति का कोआला आखिरी दुर्लभ प्राणी है. अभी यह कहना कठिन है कि क्या यह प्रजाति इस आग में नष्ट हो गई है या कुछ जानवर बच गए हैं? इनका बचना इसलिए भी मुश्किल है कि इनकी चाल अत्यंत धीमी होती है. ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में कभी इनकी संख्या बहुत हुआ करती थी लेकिन 20वीं शताब्दी में दक्षिण ऑस्ट्रेलिया में ज्यादातर कोआला मार दिए गए थे. बाद में जब लगा कि यह प्रजाति ही खत्म हो रही है तो इन्हें संरक्षित करने का अभियान शुरू हुआ. ऑस्ट्रेलिया ने दुनिया के कुछ दूसरे देशों को कोआला की यह प्रजाति दी थी, अब शायद वहीं बचे हों!
इन जंगलों में बड़ी संख्या में कंगारू भी जले हैं. जिन्हें मौका और रास्ता मिला वे शहरों की तरफ भागे लेकिन बहुत से शहर पहुंचे भी तो इतने जल गए थे कि उन्हें बचा पाना मुश्किल था. जंगलों के आसपास रहने वाले लोग भी इस आग के शिकार हुए हैं. हजारों लोग आग से बचने के लिए तटों की ओर भाग गए हैं लेकिन दर्जनों लोग मारे भी गए हैं. हजारों मकान नष्ट हो गए हैं. ऑस्ट्रेलिया के शहरों में भी लोग धुएं से परेशान हैं. सैकड़ों किलोमीटर तक आकाश धुएं से भर गया है. यहां तक कि राजधानी कैनबरा में भी तेजी से वायु प्रदूषण फैला है.
आग का असर पड़ोसी देश न्यूजीलैंड तक पहुंच चुका है. वहां के आसमान में नारंगी रंग का धुआं फैल रहा है. इस धुएं ने दक्षिणी द्वीप के ज्यादातर हिस्से को ढक लिया है और पूरी तरह सफेद नजर आने वाले हिमनद अब भूरे रंग के दिखने लगे हैं.
तो मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर यह आग लगी कैसे और इतनी विकराल कैसे हो गई? दरअसल आग तो कई बार इंसानी हरकतों से भी लगती है और बहुत बार प्राकृतिक घटनाएं भी इसके लिए जिम्मेदार होती हैं. कहीं सूखी झाड़ियों पर यदि आकाशीय बिजली गिर जाए तो आग लग जाती है. चूंकि आग जंगल के कहीं भीतर होती है इसलिए शुरू में इस पर ध्यान नहीं जाता. हवा इस आग को दूसरे इलाकों में भी फैला देती है. अब होता यह है कि आग कुछ ज्यादा फैल जाए तो इससे बनने वाला धुआं बादलों में एकत्रित हो जाता है. इससे आकाशीय बिजली गिरने की स्थितियां पैदा होती हैं. यह बिजली फिर दूसरी जगह आग लगा देती है. अभी पिछले सप्ताह ही एक इलाके में 130 जगह आग लगी हुई थी. ऐसी स्थिति में दमकलकर्मियों का आग तक पहुंच पाना भी मुश्किल हो जाता है. माना जा रहा है कि ऑस्ट्रेलिया में यही स्थिति बनी है.
अब मौसम चूंकि गर्म है तो आग को फैलने का और माकूूल मौका मिल रहा है. वैसे भी ऑस्ट्रेलिया में पिछले सौ साल में औसत तापमान एक डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है. दिसंबर के अंतिम सप्ताह में वहां तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के आसपास था. वैसे भी जंगलों में लगी आग आसपास की हवा को इतना गर्म कर देती है कि वहां और आग भड़कने की पूरी गुंजाइश रहती है. आग यदि कुछ इलाके तक भड़की हो तो पानी का हवाई छिड़काव कारगर हो सकता है लेकिन जब आग विकराल हो तो वह पानी को आग तक पहुंचने से पहले ही वाष्प बना देती है. सितंबर में लगी आग पर चार महीने बाद जनवरी में भी काबू नहीं पाया जा सका है.
कितने बड़े क्षेत्र को आग ने बर्बाद किया है, इसे इस तरह समझा जा सकता है कि यह दक्षिण इंग्लैंड जितना बड़ा इलाका है. वैसे हमें यह समझने की जरूरत भी है कि यह भयावह आग केवल ऑस्ट्रेलिया का मसला ही नहीं है. यह पूरी दुनिया के लिए बड़ी चेतावनी है. हम जिस तरह से धरती को तबाह कर रहे हैं उससे तापमान लगातार बढ़ रहा है. यह खतरनाक संकेत है. आज यह विपदा ऑस्ट्रेलिया पर आई है, कल दूसरे देशों पर भी आएगी. प्रकृति की चेतावनी को समझना जरूरी है अन्यथा इंसान खत्म हो जाएगा!