तालिबानी मानसिकता का विरोध करना जरूरी, विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग

By विश्वनाथ सचदेव | Published: August 25, 2021 02:17 PM2021-08-25T14:17:40+5:302021-08-25T14:18:40+5:30

अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा था. तालिबान के अत्याचार दिल दहलाने वाले थे. महिलाओं के प्रति इनका रवैया, बच्चों के साथ व्यवहार सदियों पुरानी मान्यताओं वाला था.

Taliban capture Afghanistan necessary to oppose the Talibani mentality Vishwanath Sachdev's blog | तालिबानी मानसिकता का विरोध करना जरूरी, विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग

राजधानी काबुल समेत देश के अधिकतर हिस्से पर उनका कब्जा हो गया है.

Highlightsरवींद्रनाथ टैगोर की कहानी  काबुलीवाला  पढ़कर. बहुत प्यारी छवि थी यह. हजारों  गुना ज्यादा डर बीस साल पहले वाले तालिबान की करनी से उपजा था. अफगानिस्तान में फिर एक बार तालिबान का आतंक पसर रहा है.

अपने बचपन की यादों में से एक याद जो अचानक उभर आई है, उसका रिश्ता पठानों से है. मेरा परिवार तब क्वेटा (बलूचिस्तान) में रहता था. तीन-चार साल का रहा होऊंगा मैं. तब मैं काबुल का किला जीतने की बात किया करता था.

सुना है वहां सचमुच एक छोटा-सा किला है- बाला हिस्सार. निश्चित रूप से तब मुझे इस किले के बारे में पता नहीं था. पर काबुल के लोगों के बारे में घरवालों से सुन-सुन कर मुङो शायद यह विश्वास हो गया था कि इतने जालिम लोगों का कोई किला तो जरूर होगा. वहां की एक और बात सुनाती थी हमें हमारी दादी.

जब भी हम अपनी बहन से लड़ते तो दादी कहती थी- ‘‘पापिया पापिया-भैंणा नू न मार/ वंजणा पोसी-आ काबुल-कंधार/ उत्थे पोसी-आ छितरां दी मार.’’ अर्थात हे पापी, बहन को मत मार वरना तुङो काबुल-कंधार जाना पड़ेगा, जहां तेरी जूतों से पिटाई होगी. मतलब यह कि यह कहकर हम बच्चों को डराया जाता था. परिणामस्वरूप पठानों के खूंखार होने की एक छवि बन गई थी मेरे दिमाग में.

कुछ बड़ा हुआ, स्कूल जाने लगा तो एक और छवि बनी थी पठान की- रवींद्रनाथ टैगोर की कहानी  काबुलीवाला  पढ़कर. बहुत प्यारी छवि थी यह. उसके बाद की एक छवि अब से बीस साल पुरानी है- जब अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा था. तालिबान के अत्याचार दिल दहलाने वाले थे. महिलाओं के प्रति इनका रवैया, बच्चों के साथ व्यवहार सदियों पुरानी मान्यताओं वाला था.

बचपन में काबुल-कंधार का नाम लेकर जो डर मन में बिठाया गया था उससे हजारों  गुना ज्यादा डर बीस साल पहले वाले तालिबान की करनी से उपजा था. फिर इन बीस सालों में बदलते अफगानिस्तान ने एक नई छवि बनाई थी- नई रोशनी में नहाये पठानों की. परंतु पिछले एक पखवाड़े ने एक झटके से न जाने कितना पीछे पहुंचा दिया. अफगानिस्तान में फिर एक बार तालिबान का आतंक पसर रहा है.

राजधानी काबुल समेत देश के अधिकतर हिस्से पर उनका कब्जा हो गया है. एक बार फिर से अत्याचार का सिलसिला शुरू होता लग रहा है. अफगानिस्तान से भागकर भारत आने वाले वहां के सिख सांसद के अनुसार  यह भी नहीं कहा जा सकता था कि घंटे भर बाद क्या हालत हो जाएगी! उम्मीद ही की जा सकती है कि दुनिया की प्रगतिशील ताकतें स्थिति को सुधारने की ईमानदार कोशिश करेंगी और यह भी उम्मीद करनी चाहिए कि अफगानिस्तान के सारे पठानों पर अत्याचारी होने का लेबल नहीं लगेगा. सबको एक ही रोशनी में देखना सही नहीं होगा.

किसी का धार्मिक होना  कतई गलत नहीं है. धर्म हमें मनुष्य ही बनाता है. पर धर्म के नाम पर होने वाली ज्यादती को सहना-स्वीकारना गलत होगा. अफगानिस्तान में तालिबान जिस व्यवस्था को लाने के बात कर रहे हैं, वह डराने वाली है. तालिबान वाला मामला भले ही अफगानिस्तान तक ही सीमित हो, पर तालिबानी मानसिकता देशों की सीमाओं तक सीमित नहीं है.

यह मानसिकता कुल मिलाकर मनुष्यता का नकार है. धार्मिक आस्था और विश्वास का स्वागत है, पर धर्म के नाम पर सदियों पुरानी सोच को फिर से लादने की कोशिशों को तो स्वीकार नहीं किया जा सकता. बदलते समय के साथ एक-दूसरे को स्वीकार करने की आवश्यकता को महसूस किया जाना जरूरी है.

तालिबानी आतंकवादी हैं, इसमें कोई शक नहीं, पर धर्म के नाम पर किसी को देशभक्त या देशद्रोही का फतवा देना भी एक तरह से आतंकवाद का ही परिचायक है. सहिष्णुता और विश्व-बंधुत्व का संदेश देने वाले हमारे भारत में धार्मिक कट्टरता के नाम पर भारतीय समाज को बांटने की कोई भी कोशिश स्वीकार नहीं की जानी चाहिए.

आज जबकि अफगानिस्तान या पाकिस्तान जैसे देशों में धार्मिक कट्टरता फिर से सिर उठाती दिख रही है, और हमारे अपने देश में भी धर्म के नाम पर राजनीतिक स्वार्थ साधने वाले भाईचारे की भावना को नष्ट करने में लगे हैं, जरूरी है कि हम न्याय और मानवीय अधिकारों के पक्ष में दृढ़ता के साथ खड़े हों. तालिबानी सोच का मुकाबला उसी तरह की सांप्रदायिक कट्टरता से नहीं किया जा सकता.

यह मुकाबला जरूरी है और उसे पराजित करना भी. लड़ाई किसी धर्म-विशेष के संदर्भ में ही नहीं लड़ी जानी है, यह लड़ाई मनुष्यता को बचाने की है. अपने बचपन में मैं भले ही काबुल-कंधार में पड़ने वाली मार से डरा होऊं, पर आज मैं बड़ा हो गया हूं. मैं जानता-समझता हूं कि तालिबान जो कुछ कर रहे हैं, वह गलत है.

समझना यह भी जरूरी है कि हमारे अपने देश में तालिबानी सोच को पनपने के लिए खाद-पानी नहीं मिलना चाहिए. यह तालिबानी सोच किसी पठान की ही नहीं, किसी की भी हो सकती है. मेरी भी, आपकी भी. इस सोच को हराना मनुष्यता के जीने की एक शर्त है.

Web Title: Taliban capture Afghanistan necessary to oppose the Talibani mentality Vishwanath Sachdev's blog

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