शोभना जैन का ब्लॉग: 'दो प्रधानमंत्री’ वाले श्रीलंका में आगे क्या?
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 8, 2018 07:52 AM2018-12-08T07:52:45+5:302018-12-08T07:52:45+5:30
पड़ोसी देश श्रीलंका की राजनैतिक अस्थिरता पर भारत की भी निगाहें हैं क्योंकि पड़ोसी के नाते श्रीलंका भारत की सुरक्षा के लिए भी अहम है।
श्रीलंका में पिछले छह हफ्तों से जारी संवैधानिक संकट गहराता जा रहा है। देश में फिलहाल ‘दो प्रधानमंत्नी’ हैं। आर्थिक संकट और विषम होता जा रहा है। संसद में राजनीतिक दलों के बीच सिर फुटव्वल देखने को मिल रहा है। अल्पसंख्यक समुदाय में चिंता बढ़ती जा रही है। गत 26 अक्तूबर से शुरू हुए राजनीतिक संकट के समाधान के फिलहाल आसार नहीं दिख रहे हैं।
यह सब शुरू हुआ श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्नीपाला श्रीसेना द्वारा लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित प्रधानमंत्नी रानिल विक्रमसिंघे को अचानक हटाकर अपनी पसंद के महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्नी नियुक्त करने से। पड़ोसी देश श्रीलंका की राजनैतिक अस्थिरता पर भारत की भी निगाहें हैं क्योंकि पड़ोसी के नाते श्रीलंका भारत की सुरक्षा के लिए भी अहम है। खास तौर पर ऐसे में जबकि चीन इस क्षेत्न में पैठ बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। इसी पृष्ठभूमि में भारत के विदेश मंत्नालय की स्थायी संसदीय समिति ने अगले हफ्ते भारत श्रीलंका संबंधों पर सरकार का मत जानने के लिए बैठक बुलाई है।
दरअसल सामरिक दृष्टि से अहम श्रीलंका के इस घटनाक्रम पर अमेरिका और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय सहित चीन की नजर भी लगी हुई है। श्रीलंका चीन का कजर्दार भी है। भारत भी श्रीलंका के विकास में मददगार रहा है लेकिन श्रीलंका चीन की ओर अधिक झुकता नजर आया है। दरअसल कुछ समय पूर्व विक्रमसिंघे के एक समर्थक ने तो चीन पर आरोप लगाया कि चीन राजपक्षे के लिए समर्थन जुटाने का काम कर रहा है, जिसका चीन ने जम कर विरोध किया। विक्रमसिंघे चीन की नीतियों से सतर्क रहते हैं।
इस समय श्रीलंका में अजीबो-गरीब स्थिति है, देश में दो प्रधानमंत्नी हैं, राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्नी पद से हटाए गए प्रधानमंत्नी विक्रमसिंघे अपने समर्थकों के साथ अब भी प्रधानमंत्नी के सरकारी निवास ‘टेम्पल ट्री’ में रह रहे हैं। विक्र मसिंघे ने राष्ट्रपति को संविधान को अपनी मर्जी से नहीं चलाने की बात करते हुए उन्हें हिटलर और अन्य तानाशाहों जैसा आचरण नहीं करने को कहा है। दूसरी तरफ राष्ट्रपति श्रीसेना विक्रमसिंघे पर देश को ठीक से नहीं बताने की बात कह कर दो टूक शब्दों में कह रहे हैं कि वह विक्र मसिंघे के साथ काम नहीं करेंगे भले ही उन्हें संसद के सभी 225 सांसदों का समर्थन प्राप्त हो।
अहम बात यह है कि इस संकट के बाद से श्रीसेना-राजपक्षे संसद में रखे छह अविश्वास प्रस्तावों का बहिष्कार कर चुके हैं, विक्रमसिंघे के पक्ष में पारित अविश्वास प्रस्ताव को मानने से इंकार कर चुके हैं। विधान मंडल में चल रही इन गतिविधियों के साथ श्रीसेना के फैसले को खारिज करने के दो अदालती फैसले आ चुके हैं। इसी बीच अदालत ने अब एक बार फिर राजपक्षे और उनकी सरकार को अदालत का फैसला आने तक अपने दायित्व निभाने से अस्थायी रोक लगा दी है। राजपक्षे को 12 दिसंबर तक यह सिद्ध करना होगा कि क्या उनके पास सरकार चलाने का बहुमत है। अब देखना है कि श्रीलंका में अदालती फैसले के बाद स्थिति क्या होगी। अनिश्चितता का दौर आखिर कब खत्म होगा।